अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने भगवान राम के जन्म स्थान का समतलीकरण तो कर दिया है लेकिन इस स्थल के करीब स्थित एक शिलापट और कसौटी के स्तंभ को यथावत रखा है. भगवान राम के जन्म स्थान से ठीक पूरब दिशा में 30 मीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल एक टीले जैसा दिखता है. इस स्थल पर कसौटी के काले कलर के खंबे के साथ एक शिलावट स्थापित है. कहा जा रहा है कि राम मंदिर ट्रस्ट ने भी फिलहाल इस स्थल से स्तंभ और शिलापट को न हटाने का निर्णय लिया है. यह स्थल भगवान राम जन्म स्थान होने को प्रमाणित करता है। पत्थर पर स्पष्ट शब्दों में जन्म भूमि लिखा गया है। इस शिलापट को अभी नहीं हटाया गया है। जबकि राम जन्मभूमि परिसर में निर्माण स्थल और उसके आसपास का समतलीकरण होने के बाद पूरी तरह परिसर का नवीनीकरण हो गए हो चुका है।
वही रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि श्री राम जन्मभूमि परिसर में समतलीकरण के दौरान जो भी अवशेष मिले हैं वे बेहद महत्वपूर्ण और हमारी प्राचीनता का प्रतीक हैं। इससे हमें ज्ञान होता है कि जो अवशेष मिल रहे हैं वे प्राचीन मंदिर के हैं. रामलला पहुंचने वाले श्रद्धालु इन अवशेषों को देखकर भगवान राम के जन्म स्थान पर प्राचीन मंदिर होने के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। इससे उन्हें राम मंदिर की प्राचीनता की स्थिति का आभास होगा। कसौटी के खंभे शिवलिंग और समतलीकरण के दौरान जो अन्य वस्तुएं निकली है वे सभी प्राचीनता के बोधक हैं।जितना महत्वपूर्ण रामलला का दर्शन है उससे कम महत्त्व के अवशेषों का दर्शन नहीं हैं क्योंकि ये वही राम मंदिर के हैं, जिसे देखकर लोग आकर्षित होते थे. आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि श्री राम जन्म पत्र में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि रामलला के दर्शन करने के साथ श्रद्धालु प्राचीन मंदिर के अवशेषों का भी दर्शन कर सकें।रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है कि श्री राम जन्मभूमि में स्थापित शिलापट श्री रामलला विराजमान स्थल को चिन्हित करता है। उन्होंने बताया कि अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा द्वारा राम जन्म स्थान को चिन्हित किया गया था. 9 नवंबर 2019 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी इस शिलापट का जिक्र है. यह भगवान राम के जन्म स्थान होने का प्रमाण देता है. जिसके चलते शिलापट और उसके पास स्थित खंभे को अब तक नहीं हटाया गया. इस शिलापट से ठीक 20 फीट की दूरी पर भगवान राम का जन्म स्थान है. इसी स्थान पर भूमि पूजन किया गया है. इसलिए अभी तक इस शिलापट को नहीं हटाया जा सका है।