संजय पुरबिया
लखनऊ। ‘एक बेचारा काम के बोझ का मारा’…और ‘कंबल ओढ़कर घी पीने’ जैसी कहावत होमगार्ड विभाग में ही चरितार्थ होती है। इस विभाग के अफसरों को मालूम है कि नेतागिरी करो, लोकभवन, सचिवालय की परिक्रमा कर लो बस हो गयी नौकरी…। सोचिए, विभागीय आईजी विवेक सिंह पर एक नहीं 4 अधिकारियों की जिम्मेदारी है,जिसे वे खिंच-खिंच कर निभा रहे हैं। एक तरफ विवेक सिंह तर्क देते हैं कि ‘मैं तो कहता हूं कि मुझसे डीआईजी-मुख्यालय, डीआईजी -सीटीआई, डीआईजी- बुंदेलखण्ड झांसी और डीआईजी- पुलिस का अतिरिक्त भार ले लिया जाये लेकिन कोई मेरी सुनता ही नहीं…।’ वहीं मुख्यालय के अफसर इनके तर्क पर ‘मुस्करा’ भर देते हैं…कहते हैं कि ‘गुरु जी कुछ अफसर कंबल ओढ़कर घी पीने का पूरा आनंद उठा रहे हैं’…। अब ‘कंबल ओढ़ कर घी’ कैसे पीया जाता है ये तो मुझे नहीं मालूम लेकिन अफसरों के ‘कातिल मुस्कान’ से लग जाता है कि जिस पर जितने पोस्ट की जिम्मेदारियां होती है, उसे उतना ही फायदा होता है। देखने की बात होगी कि आईजी साहेब को कब अतिरिक्त बोझ से ‘मुक्ति’ मिलेगी….

झांसी के होमगार्ड प्रशिक्षण केन्द्र में सुरजन कुक ने कल दो इंस्पेक्टरों द्वारा पिटाई करने के बाद जहर खाकर आत्महत्या कर लिया। सच्चाई क्या है इसका पता तो पुलिस की जांच के बाद पता लगेगा। झांसी के होमगार्ड प्रशिक्षण केन्द्र के मंडलीय कमांडेंट विद्याभूषण शर्मा का कहना है कि 15,16,17 को विभागीय मीटिंग में गये थे। डीआईजी-बुंदेलखण्ड का पद रंजीत सिंह के रिटायरमेंट के बाद से खाली चला आ रहा है। डीआईजी का काम लखनऊ मुख्यालय पर बैठे आईजी-होमगार्ड विवेक सिंह देख रहे हैं। सोचने की बात है कि जो आईजी मुख्यालय पर बैठकर यहां के ट्रेनिंग सेंटरों की खान-पान सहित अन्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त नहीं कर पाते वो भला लखनऊ में बैठकर झांसी ट्रेनिंग सेंटर की व्यवस्था का कैसे आंकलन करते होंगे ?
चौंकाने वाली बात तो ये है कि डीआईजी-मुख्यालय से ही प्रमोट होकर विवेक सिंह आईजी बने हैं लेकिन इनसे अभी तक डीआईजी-मुख्यालय का कार्यभार नहीं लिया गया है। क्यों? इतना ही नहीं,डीआईजी-बुंदेलखण्ड,डीआईजी-सीटीआई और डीआईजी-पुलिस जैसे बड़े पदों की जिम्मेदारी भी विवेक सिंह को सौंप दिया गया। खास बात ये है कि विवेक सिंह को शासन ने अभी तक लिखित रुप से पत्र जारी नहीं किया है कि आप ही सभी चारो डीआईजी के पदों का कार्यभार देखेंगे…। मौखिक रुप से हवा में सब कुछ चल रहा है…। ये गंभीर बात है क्योंकि एक ही अफसर से काम कराने का मतलब ही है कि ऊपर बैठे लोगों का कोई ना कोई स्वार्थ होगा…. क्या स्वार्थ है, इसका सही जवाब तो शासन में बैठे अफसरान ही दे सकते हैं….।
नाम न छापने एवं बड़ी कुर्सी के लिये चाहत,प्रेम रखने वाले एक अधिकारी ने अपनी भड़ास निकालते हुये कहा कि भईया आखिर विवेक सिंह में कितनी काबिलियत है कि इनके नाजुक कंधों पर एक नहीं,पूरे चार डीआईजी के पदों का कार्यभार सौंप दिया गया है। क्या अन्य डीआईजी और मंडलीय कमंाडेंट ग्रेड 2 नकारा हैं? हालांकि इस बारे में कुछ अर्से पहले आईजी विवेक सिंह से बात की गयी जिस पर उनका जवाब था कि मैं हमेशा कहता हूं कि मुझसे अन्य पदों की जिम्मेदारी ले ली जाये लेकिन मेरी कोई सुनता ही नहीं है। इनका तर्क सही है क्योंकि आखिर एक अधिकारी इतनी सारी जिम्मेदारियां कैसे उठा सकता है? खैर,बात जो भी हो, डीआईजी के सभी कुर्सी पर जब तक अधिकारी नहीं बैठेंगे,झांसी के ट्रेनिंग सेंटर की तरह घटनाएं होती रहेंगी क्योंकि वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी के अहसास से ही निचले स्तर के अधिकारी एवं कर्मचारी सही तरीके से अपने ड्यूटी को अंजाम देते हैं।