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लेखक-विजय श्रीवास्तव , सहायक आचार्य(अर्थशास्त्र विभाग, लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय)
सह लेखक- आशुतोष चतुर्वेदी
वर्ष २०१८ की अगस्त की 16 तारीख भारत के इतिहास मे एक दुखद स्थान रखती है | भारत के राष्ट्रीय राजनीति के पितामह कहे जाने वाले महान नेता, प्रखर वक्ता, पत्रकार, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई ने नश्वर शरीर का त्याग किया था | उनके निधन के पश्चात कोई विरला ही होगा, जो शोक संतृप्त ना हुआ हो | उनके धुर विरोधी भी उनकी अंतिम यात्रा में नम आँखों के साथ सम्मिलित हुए थे | आज अटल जी गए 2 साल हो चुके हैं , किंतु उनके व्यक्तित्व ,कृतित्व और उनके राजनैतिक योगदान पर अभी भी नवीन दृष्टिकोण से चिंतन किया जा सकता है|
वाजपेई जी की राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका को नए आयामों से समझा जा सकता है | जहां दक्षिणपंथी विचारकों के लिए वे ‘राष्ट्रवाद’ और हिंदुत्व के पुरोधा था| वहीं दूसरी ओर वामपंथी विचारधारा के ‘नरम हिंदुत्व’ का चेहरा लिए एक ‘मुखौटा’ थे| राजनीतिक और आर्थिक विचारकों के लिए उनकी राजनीति ‘गांधीवादी समाजवाद’ से प्रभावित थी | तो विदेश नीति पर विद्वानों ने उन्हें ‘नया नेहरूवादी’ कहा है| साहित्य के कुछ पंडित उन्हें एक कुशल और भावुक कवि की संज्ञा देते हैं, जो कि उनकी राजनैतिक वैचारिकी और से बहुत ज्यादा अलग है| वाजपेई जी एक जन प्रतिनिधि के तौर पर भी आज के नेताओं के लिए आदर्श साबित हो सकते हैं | उन्होंने राजनीति के उथल पुथल और भ्रष्ट दौर में भी वह सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार जीता था | हिंदी और हिंदीवादी हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा पर भरोसा करने के बाद भी वे कई सेकुलर और क्षेत्रीय दलों के लिए स्वीकार थे |
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वर्ष 1990 से 1996 तक ,जब भारतीय जनता पार्टी कई राजनीतिक दलों के लिए उसके उग्र हिंदुत्व के कारण अछूत थी , तब वाजपेई जी ने वर्ष 1998 और 99 में विरोधी विचारधारा वाले दलों को लेकर एक स्थाई सरकार बनाई और गठबंधन की राजनीति को एक नया आयाम दिया| भारतीय राजनीति में जब भारतीय जनता पार्टी को पंथनिरपेक्ष दलों ने राजनीतिक मान्यता नहीं दी, तब अटल जी ने फारूक अब्दुल्ला के साथ गठन करके अल्पसंख्यकों के मन में भी एक नरम रवैया तैयार करने में सहायता प्रदान की | अटल जी कई सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे| राष्ट्र धर्म, स्वदेश और वीर अर्जुन नामक पत्रिकाओं का संपादन भी करते थे| उन्होंने संघ में रहते हुए भी उग्र राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं किया| राजनीति के पंडित उन्हें ‘नई सोच का नेहरूवादी’ भी कहते थे| लगभग 50 दशकों के संसदीय और राजनीतिक जीवन में उन्होंने भारतीय राजनीति की कई उतार चढ़ावों का सामना किया और स्वयं इन उतार-चढ़ाव के परिणामों के साक्षी बने| वे जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में थे, आपातकाल में अपने प्रिय साथी एल के आडवाणी के सहभागी थे और राष्ट्र जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेताओं में थे | उन्होंने वर्ष 2002 के गोधरा दंगों के समय ‘मोदी’ को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी | उनके ही प्रधानमंत्री काल में भारत ने पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध किया और विजय प्राप्त की| अमेरिका द्वारा भारत पर प्रतिबंध लगाने पर भी वे विचलित नहीं हुए और भारत को परमाणु शक्ति बनने में एक नया आयाम प्रदान किया |
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अटल बिहारी वाजपेई ने हिंदी को जनमानस की भाषा और राजनीतिक समाज की भाषा बनाने में अतुलनीय योगदान दिया | वे विरले बौद्धिक चिंतकों में से थे, जिन्होंने भारत का नेतृत्व करते हुए सयुंक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया | अटल जी की इस वाचन परम्परा को उनके बाद उनके कई कनिष्ठों ने ह्रदय से अपनाया | सुषमा स्वराज भी अटल की शैली की वचन परंपरा की वक्ता थी | अटल बिहारी बाजपेई ने क्षेत्रीय राजनीति से प्रारंभ करके राष्ट्रीय राजनीति राजनीति में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया | वे हिंदी पट्टी के पट्टी के अकेले ऐसे जन नेता थे, जो उत्तर से दक्षिण भारत तथा पूर्व से पश्चिम भारत तक आदरणीय स्थान रखते थे| वह गुजरात से राज्यसभा पहुंचे, उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और दिल्ली से लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया और उन्होंने अपने अपने युवा काल में बंगाल के कम्युनिस्टों के साथ भी काम किया|
अटल ने कभी भी सत्ता के मोह में राजनीतिक नैतिकता से समझौता नहीं किया, चाहे वो वर्ष 1996 में उनकी तरह दिन की सरकार रही हो या फिर वर्ष 1999 में १३ महीने की सरकार | राजनीतिक विरोध को उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत विरोध नहीं बनने दिया| संसद की कई ऐसी घटनाएं हैं जब , सरकर से नाराज विपक्षी सांसद अटल से मिलकर आते तो चेहरे पर हास्य और संतुष्टि लेकर आते थे | वे विनोदपूर्ण राजनैतिक विरोध के एक सर्वमान्य प्रतिमान थे | वर्ष 1999 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार जब जयललिता द्वारा गिरा दी गई , तब भी वे व्यक्तिगत तौर पर उनके खिलाफ नहीं गए | उनका संसद में दिया गया वर्ष 1996 का भाषण आज भी राजनीतिक शुचिता की एक अमिट पहचान है | जिसमें उन्होंने कहा “सरकारें आएंगी जाएंगी लेकिन यह देश रहना चाहिए यह लोकतंत्र रहना चाहिए”| अटल के अनुयायियों को उनकी इस बात का ख्याल रखना चाहिए | गठबंधन की राजनीति में उन्होंने ‘आया राम गया राम’, खरीद फरोख्त और जोड़-तोड़ को कभी भी प्राथमिकता नहीं दी| अपनी इसी राजनीतिक शुचिता के कारण अटल ‘भारत रत्न’ अटल बने| आज भारतीय जनता पार्टी और अन्य दलों को सत्ता हथियाने के लिए जिस तरीके के राजनीतिक अपवित्र साधनों का इस्तेमाल करना पड़ता है ,अटल जी के रहते हुए यह कभी संभव नहीं हो सकता था | इससे अटल जी की राजनीतिक विरासत को खतरा है| सबको साथ लेकर चलना और विरोधियों को भी चातुर्य से विनोद पूर्ण, उत्तर देना ही राजनीति की असली पहचान है| हम आशा कर सकते हैं कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी राजनेता ‘गांधीवादी समाजवादी’ सोच की उनकी राजनीतिक विरासत को संजो कर रखेंगे और उन्हें सच्ची लोकतांत्रिक श्रद्धांजलि देंगे|