राम मंदिर के निर्माण से भारत के विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त: परमहंस दास


अयोध्या। रामनगरी अयोध्या में सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की दीर्घायु की कामना के साथ अनुष्ठान किया गया. यह अनुष्ठान मठ आचार्य पीठ तपस्वी छावनी में संपन्न हुआ. छावनी में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बेहतर स्वास्थ्य की कामना के साथ यज्ञाहुति डाली गई. इस मौके पर तपस्वी जी की छावनी के जगद्गुरु स्वामी परमहंस आचार्य ने कहा कि जब हमने राममंदिर निर्माण की मांग को लेकर आमरण-अनशन किया था. तब हम सरकार से पूछते थे कि मंदिर कब बनेगा। तो जवाब मिलता था कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इसलिए रामजन्मभूमि के लिए सरकार अब भी कुछ नहीं कर सकती है।

जगद्गुरु स्वामी परमहंस आचार्य-तपस्वी जी छावनी 

वही जगद्गुरु स्वामी परमहंस आचार्य ने कहा कि जब 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों भव्य राम मंदिर निर्माण की नींव रखी गई तो वह समय सभी देशवासियों के लिए सतयुग और रामराज्य की शुरुआत रही. परमहंस दास ने कहा कि राम मंदिर निर्माण से भारत के विश्वगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा. अयोध्या विवाद पर फैसले का सर्वाधिक श्रेय सेवानिवृत्त मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई का रहा है। उन्हीं के निर्णय से देश के इतने बड़े विवाद को समाप्त किया जा सका. वहीं परमहंस दास ने बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को राम मंदिर भूमि पूजन में शामिल न करने पर सवाल उठाया।उन्होंने कहा कि राम मंदिर भूमि पूजन कार्यक्रम में उनका नाम तक नहीं लिया गया और न ही उनकी कोई चर्चा की गई. इसलिए उनके सम्मान में सत्यमेव जयते महायज्ञ का आयोजन किया गया।साथ ही राम मंदिर के लिए शहीद हुए कारसेवकों की आत्म-शांति व उनके संकल्प पूर्ण होने पर आहुतियां डाली गईं। परमहंस दास ने कहा कि विहिप प्रमुख रहे स्व. अशोक सिंहल, स्व. परमहंस रामचंद्र दास और स्व. महंत अवैद्यनाथ जैसे महापुरूषों और बड़ी संख्या में कारसेवकों के संघर्ष के कारण मंदिर निर्माण की स्थिति बन पाई।रामजन्मभूमि के प्रति उनके किए गए बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. आज जब उनका संकल्प पूरा हुआ तो आचार्य पीठ तपस्वी जी की छावनी से इस सभी की आत्म शांति के लिए सत्यमेव जयते यज्ञ में आहुति डाली गई. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण और प्रज्ञा ठाकुर का राममंदिर आंदोलन में बड़ा योगदान रहा, लेकिन जब सम्मान मिलने का समय आया तो इन्हें बुलाया नहीं गया. यह सबसे बड़ी भूल है।


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