योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। इन दिनों की सूबे की सियासत में ‘आपरेशन सिंदूर’ से ज्यादा ‘डीएनए’ को लेकर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव व प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक के बीच छिड़ी जंग से सियासी पारा चढ़ा हुआ है। अखिलेश यादव और बृजेश पाठक के बीच राजनीतिक तकरार कोई नहीं है। सांसद निर्वाचित होने से पहले जब अखिलेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे तब भी उनके डिप्टी सीएम की सदन के भीतर कई बार तीखी नोंक-झोक होती रहती है। लेकिन, इस बार ‘डीएनए’ को लेकर दोनों पार्टियों के नेताओं से कार्यकर्ता तक एक दूसरे के खिलाफ आक्रामक हैं। आपसी कहासुनी और बयानबाजी के बाद लड़ाई एफ आईआर तक ही सीमित नहीं रही बल्कि पोस्टरों तक आ गयी है।

विधानभवन और उसके बाद दोनों के बीच होर्डिग्स वार में एक दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप लगाने का क्रम जारी है। इस बारे में अखिलेश यादव के आये पहले बयान पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हस्तक्षेप किया था। सीएम ने सोशल मीडिया पर सपा की अभद्र भाषा की निंदा की और सार्वजनिक चर्चा में शिष्टाचार बनाये रखने का आग्रह किया। डीएनए को लेकर शुरू हुई लड़ाई में अब भारतीय जनता पार्टी, अखिलेश यादव से माफी मांगने की जिद पर अड़ी है तो सपा के कार्यकर्ता भी बृजेश पाठक के विभाग की कार्यशैली को लेकर उनकी पोल-पट्टी खोलने की बात कह रहे हैं। सपा कार्यकर्ताओं द्वारा बृजेश पाठक को घेरने के लिये नई रणनीति बना रहे हैं। ये लोग भाजपा के भीतर बैठे पाठक विरोधियों की मदद से उन्हे घेरने के लिये कील- कांटा तैयार कर रहे है।
दोनों ओर से जितनी तल्खी है, उसे देखकर नहीं लगता कि यह मामला इतनी आसानी से शांत होने वाला है। विवाद डीएनए पर शुरू हुआ था, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने भी इस मुद्दे पर अखिलेश यादव पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आरोप-प्रत्यारोपों के बीच बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने सड़कों तक माहौल बना दिया है। पाठक के बचाव में उतरे कार्यकर्ता यह बताने में लगे हैं कि समाजवादी पार्टी के लोग गुंडागर्दी और गाली-गलौज करते हैं। भाजपा के लोग चाहते हैं कि अखिलेश यादव किसी कीमत पर पाठक जी से माफ़ी मांगे। पाठक के समर्थन में भाजपा के नेता- कार्यकर्ता जिलों में सपा प्रमुख के खिलाफ न सिर्फ एफ आईआर ही नहीं करा रहेंं, बल्कि उनका पुतला भी फूंक रहे हैं। हालांकि, बयानों और विरोध- प्रदर्शनों को देखते हुये सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा युद्व विराम का ऐलान किया गया, बावजूद इसके भाजपा कार्यकर्ता इतनी आसानी से मानने को तैयार नहीं है। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने डीएनए के बहाने मुजफ्फ रनगर दंगों से लेकर अखिलेश राज से जुड़ी कई विवादों का जिक्र कर दिया है। उन्होंने अतीक अहमद से लेकर मुख्तार अंसारी जैसे माफियाओंं को संरक्षण देने का आरोप भी ठोंका। आखिर में सवाल इत्ता सा है कि आखिर डीएनए को ही मुद्दा क्यों बनाया गया ? आखिर सपा के मुखिया अखिलेश यादव बृजेश पाठक की किस डीएनए की जांच कराना चाहते हैं ?
बता दें कि जिस तरह ज्योतिष में व्यक्ति की कुंडली देखकर किसी भी व्यक्ति के भूतकाल से लेकर उसके भविष्य की घटनाओं को बताने का दावा किया जाता है, ठीक उसी तरह डीएनए से किसी भी व्यक्ति के माता-पिता से लेकर उसकी पुरानी पीढिय़ों, बीमारियों और मजबूती के बारे में पता लगाया जा सकता है। इसके लिये डॉक्टर पूरी एक रिपोर्ट बनाते हैं, जो पूरी तरह से सही होती है। वैज्ञानिक रूप से इस पर शक नहीं किया जा सकता। फिर,डीएनए का राजनीतिकरण कर आखिर अखिलेश यादव क्या हासिल करना चाहते हैं ? डीएनए की जो परिभाषा है, उसके आधार पर यदि माननीय सभी राजनैतिक दलों के बड़े पदाधिकारियों के डीएनए पर खिल्ली उड़ाने लगेंगे तो इससे जहां उनका कद कमतर आंका जाने लगेगा वहीं राजनैतिक करियर भी प्रभावित हो सकता है।
जहां तक बृजेश पाठक की बात है तो प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक भाजपा में आने से पहले किसी समय बसपा का बड़ा ब्राम्हण चेहरा हुआ करते थे। बसपा की मुखिया मायावती के भरोसेमंद लोगों में उनका शुमार था। बसपा के टिकट पर वे उन्नाव से निर्वाचित होकर संसद पहुंचे। फिर बसपा ने उन्हे राज्यसभा भी भेजा। बसपा से मोहभंग हुआ तो भाजपा का दामन थाम लिया। ब्राम्हण चेहरा होने का उन्हे तात्कालिक लाभ मिला, वे भाजपा के टिकट पर 2017 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते और योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री बने। 2022 में दूसरी बार जीतने पर उन्हे डिप्टी सीएम बनाया गया। इस समय वे भाजपा में ब्राम्हणों का एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। बसपा में आने से पूर्व लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे।