लोकसभा चुनाव : यूपी होमगार्ड विभाग के ‘भ्रष्ट’ डीआईजी के हवाले उत्तराखण्ड का चुनाव ?


लोकसभा चुनाव : यूपी होमगार्ड विभाग के भ्रष्ट डीआईजी के हवाले उत्तराखण्ड का चुनाव ?

डीआईजी संजीव शुक्ला के कारनामे

1:  इनकी सत्यनिष्ठा संदिग्ध है.

2:  तीन वर्ष से अधिक समय से वार्षिक प्रवृष्टि खराब है.

3: कमांडेंट,कानपुर रहने के दौरान चुनाव में बाराबंकी भेजे गये जवानों से दो दिन का पैसा हड़पने का आरोप.

4: पूर्व विभागीय मंत्री,वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ फर्जी शिकायती पत्र भेजने का आरोप.

5: आपदा दल के कर्मचारी पर पिस्टल लेकर दौड़ाने का गंभीर आरोप.

  शेखर यादव

उत्तराखण्ड चुनाव में यूपी के तेज-तर्रार अधिकारी पहुंच गये हैं। बता दें कि हमेशा से विवादों में रहने वाले डीआईजी, आगरा परिक्षेत्र संजीव शुक्ला होमगार्ड के मूवमेंट के समय कहीं नहीं रहे, जबकि उन्होंने स्वयं सभी जिला कमांडेंट को निर्देशित किया था कि जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर उनसे झंड़ी दिखाकर ही होमगार्ड को रवाना कराया जाये। मुख्यालय पर तैनात अधिकारियों,कर्मचारियों ने बताया कि 14 अप्रैल को शुक्ला जी लखनऊ में अपने आवास विक्रांत खंड गोमती नगर में रहे। 15 अप्रैल की सुबह 9 बजे लखनऊ से चले, शाहजहांपुर के कमांडेंट रमेश कुमार से चाय- नाश्ता और…लेते हुये बरेली संतोष कुमार के पास पहुंच कर लंच लिये। अधिकारियों ने बताया कि बरेली, बदायूं के कमांडेंट आर. के. पाठक से बड़ा … लिये।

अधिकारियों ने बताया कि डीटीसी, बरेली के निरीक्षक धीरज राणा और ललित मोहन उपाध्याय से निर्वाचन से छोडऩे के एवज में मोटी रकम लिये, फिर मुरादाबाद  पहुंचकर रात्रि विश्राम किये। मुरादाबाद अभिलेश नारायण सिंह  और संभल के कमांडेंट ज्ञान प्रकाश से लंबा हिसाब- किताब किया गया। खा-पीकर रात रात भर चौडिय़ा कर सोये। 16 अप्रैल की सुबह हरिद्वार में फोटो सेशन हुआ और सायंकाल देहरादून में फोटो बाजी हुयी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या होमगार्ड विभाग में कोई और अधिकारी नहीं है, जिसे चुनाव के दौरान प्रभारी बनाकर बाहर भेजा जाये? आखिर क्यों ऐसे भ्रष्ट, दागी अधिकारी को निर्वाचन जैसे महत्वपूर्ण समय में लगाया जाता है,जिस अधिकारी का स्थायी रुप से इंक्रीमेंट रूका हो, जिसकी वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने का एक बार आदेश जारी किया गया हो, जिसकी सत्यनिष्ठा सदा से संदिग्ध रही हो, जो निर्वाचन में होमगार्डों का पैसा हड़पने का दोषी रहा हो,जब ये कानपुर के कमांडेंट थे तो चुनावी ड्यूटी में बाराबंकी जवानों को भेजा था। इन्होंने होमगार्डों का दो दिन का पैसा काट लिया था जिस पर जमकर बवाल हुआ था लेकिन मामला दबा दिया गया। तीन वर्ष से जिसकी वार्षिक प्रवृष्टि खराब मिन रही हो, जो विभाग से स्क्रीन आउट किए जाने योग्य हो,जो विभाग के बड़े अधिकारियों की शिकायत करने का आदी हो, जो राज्य आपदा दल वालों को पिस्टल से मारने के लिए दौड़े, जिसके पिस्टल बाजी के कारण अन्य अधिकारियों की भी पिस्टल जमा करा ली जाये…। आखिर ऐसे अधिकारी में ऐसे डीआईजी में कौन सा नगीना जड़ा है जिसे देख शासन के अफसरानों ने आंख मूंदकर उत्तराखण्ड का स्टेट हेड बनाकर भेज दिया ?

इस बारे में जब डीआईजी संजीव शुक्ला से संपर्क करने की कोशिश की गयी तो कॉल नहीं मिला।


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