एक ऐसे समय जब कश्मीर में आतंकवाद अंतिम सांसें लेता दिख रहा है तब अनंतनाग की घटना सतर्क करने वाली है। यह घटना यही बता रही है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी किसी भी तरह कश्मीर को अशांत रखने के लिये हाथ-पांव मार रहे हैं। इसी कारण वे उन इलाकों में सक्रिय हो रहे हैं जो लंबे समय से उनकी गतिविधियों से मुक्त थे। अनंतनाग में जिस आतंकवाद विरोधी अभियान में हमारी सेना के दो बड़े अधिकारी और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक उपाधीक्षक ने अपने प्राणों की आहुति दी, उसे केवल अंजाम तक ही नहीं पहुंचाया जाना चाहिये, बल्कि आतंकियों का खात्मा करके ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया जाना चाहिये, जिससे वे भविष्य में इस तरह का दुस्साहस न कर सकें। अनंतनाग में आतंकियों से लड़ते हुये सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धौंचक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं बट का बलिदान देश के लिये एक बड़ी क्षति है। ये तीनों ही अफसर अपनी दिलेरी के लिये जाने जाते थे और उन्होंने अतीत में कई आतंकवाद विरोधी अभियानों को सफलतापूर्वक संचालित किया। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिये और आतंकियों का चुन-चुनकर सफाया करने के साथ ही पाकिस्तान को नये सिरे से सबक सिखाया जाना चाहिये, क्योंकि जिस आतंकी गुट के आतंकियों के घात लगाकर किये गये हमले में हमारे बहादुर अफसर वीरगति को प्राप्त हुये, वह भले ही स्वयं को स्थानीय बताता हो, लेकिन उसे पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर का हर तरह का सहयोग एवं समर्थन हासिल है।

वास्तव में इस आतंकी गुट को खड़ा करने का काम लश्कर ने ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के सहयोग से किया है, ताकि यह कहा जा सके कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उससे उसका कोई लेना-देना नहीं। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि अनंतनाग के जंगलों में छिपे आतंकी पाकिस्तान के इशारे पर जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान कोई बड़ी घटना अंजाम देने की फिराक में रहे होंगे।एक ऐसे समय जब कश्मीर में आतंकवाद अंतिम सांसें लेता दिख रहा है, तब अनंतनाग की घटना सतर्क करने वाली है। यह घटना यही बता रही है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी किसी भी तरह कश्मीर को अशांत रखने के लिये हाथ-पांव मार रहे हैं। इसी कारण वे उन इलाकों में सक्रिय हो रहे हैं, जो लंबे समय से उनकी गतिविधियों से मुक्त थे। वे दक्षिण कश्मीर के साथ जम्मू संभाग में भी अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे हैं। इसका पता इससे चलता है कि इस वर्ष अभी तक राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती जिलों में लगभग 26 आतंकी मारे जा चुके हैं। आतंकी सीमा पार से घुसपैठ के लिये भी नए रास्ते चुन रहे हैं। स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर के साथ पंजाब से लगती पाकिस्तान सीमा पर और चौकसी बढ़ाने की आवश्यकता है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के दबे-छिपे समर्थकों के खिलाफ अभियान भी और तेज किया जाना चाहिये। इस पर भी फिर से ध्यान देना होगा कि आतंकियों के सफाए के किसी अभियान में सुरक्षा बलों को क्षति न उठानी पड़े। नि:संदेह ऐसे अभियान जोखिम भरे होते हैं, लेकिन इस पर और सावधानी बरतनी होगी कि अपने वीर जवानों को खतरों से कैसे बचाया जा सके? अतीत में आतंक विरोधी कुछ अभियान ऐसे रहे हैं, जिनमें आतंकियों का शीघ्र सफाया करने के प्रयत्न में हमारे जवानों को क्षति उठानी पड़ी। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकवादियों से मुठभेड़ में सेना के दो अधिकारियों, एक पुलिस अधिकारी व शुक्रवार को एक घायल जवान की मौत राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है। मुठभेड़ में कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष और डीएसपी हुमायूं भट की मौत बताती है कि आतंकवादियों से मुकाबले के दौरान जहां खुफिया तंत्र को दुरस्त करने की जरूरत है, वहीं रणनीति को अधिक धारदार व पुख्ता बने। दोनों ही सेना के अधिकारी आतंकवाद विरोधी इकाई का नेतृत्व करने वाले अनुभवी व सेना पदक का सम्मान पाने वाले थे। जाहिर है कि यह अॅाप्रेशन खुफिया सूचनाओं पर आधारित था, लेकिन कहीं न कहीं रणनीति के क्रियान्वयन में चूक हुयी है। पहले सूचना दी गयी थी कि आतंकियों ने जंगल में अपना ठिकाना बना रखा है, लेकिन उन्होंने पहले ही घात लगाकर सुरक्षाबलों की संयुक्त टीम को निशाना बना लिया। इसी चूक के चलते ही हमारे सैन्य अधिकारी व जवान आतंकवादियों के जाल में फंस गये। नि: संदेह, भविष्य में आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिये मानक संचालन प्रक्रियाओं यानी एसओपी के क्रियान्वयन में अधिक सतर्कता की जरूरत होगी। हालांकि, सेना ने वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर में ऐसे ऑपरेशनों के लिये अपने एसओपी में संशोधन किया था, जिसमें मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों को आत्मसमर्पण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता था। इसमें भटके हुए युवाओं को जान बचाने का मौका दिया जाता था लेकिन इस नीति ने सेना के जवानों के लिये लक्ष्य को कठिन बना दिया। नि:संदेह, ऐसी मुठभेड़ पे पहले मिली हुई सूचनाओं का गहन सत्यापन जरूरी होता है। आतंकवादियों व उनकी मदद करने वाले स्थानीय लोगों की चौबीस घंटे की निगरानी जरूरी होती है। हालांकि, इस घटना से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी पर लाने की कोशिशों को झटका लगेगा। हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिये तैयार है। फिर भी इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बावजूद पहले से बहुत विलंबित चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से नहीं रोका जाना चाहिये। बहरहाल, सेना व पुलिस के अधिकारियों की शहादत हमें सबक देती है कि अब खुफिया तंत्र की खामियों को दूर करने और अॅापरेशनों की मानक संचालन प्रक्रिया को मजबूत बनाने की जरूरत है। जिससे सेना के अधिकारी व पुलिसकर्मी पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों का बेहतर ढंग से मुकाबला कर सकें। नि:संदेह, हाल के दिनों में घाटी में आतंकी घटनाओं में कमी आयी है, लेकिन अभी भी आतंकी नेटवर्क को पूरी तरह धवस्त करने की जरूरत है। कुछ समय पहले कुलगाम में हुयी एक मुठभेड़ के दौरान भी सेना के तीन जवान शहीद हुये थे। दरअसल, इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी के बाद ही काउंंटर अभियान प्रारंभ किया गया था। इससे पहले मई में राजौरी में सैनिकों पर व पुंछ में सेना के ट्रक पर भी हमला हुआ था। यद्यपि पहले के मुकाबले में आतंकी हमलों की वारदात कम हुयी हैं, लेकिन ये घटनाएं बताती हैं कि सेना के अभियान में अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। यह भी तार्किक है कि पहले की तरह आतंकवादी अपने अभियानों को आसानी से अंजाम देने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर हमें सीमा पार से संचालित आंतक के नेटवर्क को पूरी तरह ध्वस्त करने की जरूरत है। वैसे यह भी हकीकत है कि अब सीमा पार से आने वाले आतंकियों को स्थानीय आबादी का पहले जैसा सहयोग सहजता से नहीं मिल पा रहा है। जिसके चलते आतंकवादी जंगलों में ठिकाना बना रहे हैं, जिसका मुकाबला करने में सेना को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जिसके लिये प्रमाणिक खुफिया सूचनाएं जुटाने और सेना व पुलिस में बेहतर तालमेल बनाये जाने की जरूरत है। तभी पाक प्रायोजित आतंकवाद पर नकेल कसी जा सकेगी। साथ ही आतंकवादियों से मुठभेड़ में अपने जवानों को बचाने के लिये आधुनिक तकनीक व ड्रोन आदि का प्रयोग करना भी जरूरी हो गया है। तभी घाटी में आतंकवाद अंतिम सांसे लेता नजर आएगा। जिससे केंद्र शासित प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गति मिल सकेगी।