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लेखक – विजय श्रीवास्तव (लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और सामाजिक नीति के व्याख्याता)
सह लेखक- आशुतोष चतुर्वेदी
आजादी की ७४वीं वर्षगांठ पर आज जब लोकतंत्र के चौथे स्तब्ध मीडिया की भूमिका पर कई तरह के प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं ? और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा सोशल मीडिया भी विचारों की अभिव्यक्ति में एक महत्ती भूमिका निभा रहा है, हमें स्वंतंत्र भारत के महान राष्ट्र निर्माता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विचारों और उनके कथनों को जरूर समझना और पढ़ना चाहिए। ये लेख नेहरू जी द्वारा प्रेस की आजादी पर कह गए कुछ महत्वपूर्ण सूक्त वाक्यों का एक सूक्ष्म विश्लेषण और संकलन है।
भूख और स्वतंत्रता :
नेहरू का स्पष्ट: तौर पर मानना था कि भूखे पेट आजादी का कोई औचित्य नहीं है यही कारण है कि उन्होंने गरीबी उन्मूलन को पंचवर्षीय योजनाओं में प्राथमिकता दी थी। आज सतत विकास लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन और व्यक्तिगत आजादी दोनों शामिल हैं। “जीवन की स्वतंत्रता किसी भी अन्य प्रकार की स्वतंत्रता की अपेक्षा बहुत जरूरी है गरीबी या अन्य कारणों से अच्छा जीवन बिताने की क्षमता ना हो तो अन्य प्रकार की स्वतंत्रता निरर्थक हैं। भूखा आदमी स्वतंत्र नहीं हो सकता कोई सब महान दार्शनिक ही भूखा रहकर भी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार की बात सोच सकता है सामान्यतः भूखा आदमी भोजन की बात सोचता है ना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पता कोई देश विकसित है या अपेक्षित इसके अनुसार समस्या के आकार और रूप में कोई फर्क पड़ता जाता है।”
विज्ञापन और स्वतंत्रता :
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गांधी की तरह वे भी अखबारों में विज्ञापनों की भरमार के धुर विरोधी रहे। उनका मानना रहा कि विज्ञापनों से पत्रकारिता की मूल आत्मा ही मर जाती है।
“जनमाध्यम के उपयोग बहुत कुछ लोगों की दशा और उनके आर्थिक विकास और शैक्षणिक अवस्था पर निर्भर होता है। एक अच्छे माध्यम का भी बहुत पूरे उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग किया जा सकता है हाल में एक प्रश्न उठा कि विज्ञापन के माध्यम का लोगों के दिमाग का वृक्ष विकृत करने के लिए उपयोग किया जाना उचित है या नहीं। जनमाध्यम उपयोगी होने के साथ-साथ खतरनाक विच्छेद हो सकते हैं क्योंकि निजी लाभ के लिए उनका दुरुपयोग किया जाना संभव है शिक्षा शिक्षा का व्यापक विस्तार करके और सामाजिक कल्याण के काम करके ही बचा जा सकता है।”
चुनाव और स्वतंत्रता :
चुनाव के दौरान प्रत्याशियों की आजादी के लिए वे कुछ पाबंदियों के हिमायती थे। अभिव्यक्ति के नाम पर वे व्यक्तिगत चरित्र हनन को कभी स्वीकार नहीं करते थे।
“चुनावों के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में कुछ नियम और विनियम हैं। जिनके बारे में मैं बताना चाहता हूं लेकिन उम्मीदवारों द्वारा जारी किए गए कुछ पोस्टरों को देखकर मैं दुखी हो गया। इनमें से कुछ पोस्टर नींद आत्मक सुरुचिपूर्ण और अत्यंत आपत्तिजनक थे। बेकसूर मतदाताओं पर अवश्य उनका गलत प्रभाव पड़ा होगा किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता को उचित नहीं ठहरा सकती।”
सहनशीलता और स्वतंत्रता :
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नेहरू का मानना था कि देश के बहुलतावादी ढांचे की अस्मिता को बचाये रखने के लिए नागरिकों, संगठनों और सरकारों का सहनशील होना आवश्यक है। आज जिस तरह का हिंसक परिवेश है ऐसे समय में नेहरू का सहनशीलता और आजादी के बीच के संबंध को कालांतर में समझना उनकी दूर दृष्टिता को ही दिखाता है।
“ सहनशीलता दूसरों के विचार के प्रति सहनशील होने को कहते हैं। जो लोग हमसे हम से सहमत हो, उन्हीं के विचारों के प्रति नहीं, बल्कि उन लोगों के विचारों के प्रति भी जो हमारा विरोध करते हैं उसे हमसे इतना एक मानसिक स्थिति है। यह इसलिए जरूरी है कि दुनिया में तरह तरह के विचार रखने वाले लोग हैं। विचारों की विविधता के कारण जीवन और भी उत्तेजक बन जाता है सत्य तक कोई भी एक व्यक्ति नहीं पहुंच सकता और ना ही कह सकता है कि वह जानता है कि सत्य क्या है, यदि सभी क्षेत्रों में सूचना जिसमें वितरित और कभी-कभी परस्पर विरोधी सूचनाएं भी शामिल है प्राप्त हो तो यह जाने की संभावना अधिक रहती है कि वास्तव में सत्य क्या है, जो समस्या का एकमात्र एक जानने पर संभव नहीं हो सकता। सूचना की स्वतंत्रता की अवधारणा को यथासंभव स्वतंत्र और विविधता पूर्ण होना चाहिए।”
व्यवस्था और स्वतंत्रता:
सरकारी संस्थाओं की स्वायत्ता पर वे मुखर हैं ! उन पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप वो अनुचित मानते है। आज के राजनीतिक वैमनस्य में जो संस्थाओं का दुरपयोग होता है, उसे वे पहले ही भांप गए थे।
“हम सभी लोग प्रेस की स्वतंत्रता की बात करते हैं जनतांत्रिक व्यवस्था का थोड़ा भी अनुभव रखने वाले सभी लोग विभिन्न प्रकार के व स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं। यदि कोई छोटी-छोटी गलत बात भी हो रही हो तो वे उसके दबाने के बजाय उसका घटित हो जाना बर्दाश्त कर लेंगे, क्योंकि गलत चीज को दबाने पर उसके साथ साथ कोई अच्छी चीज भी दब सकती है और अच्छी चीज को दबाना बुरा काम है। इसलिए अच्छी चीज के प्रसार के लिए इसलिए कि अंतत: वे पूरी चीजों पर विजय पा सके बुरी चीजों को एक हद तक बर्दाश्त करना चाहिए।”
सेंसरसिप और स्वतंत्रता:
नेहरू का मत था “धन ,बल और कुछ साधन के नाम पर अखबार नहीं चलाया जा सकता और गलत अख़बार गलत विचारों का प्रसार प्रचार कर सकता है। पर ये गलत क्या है ? इसका निर्धारण पत्रकारिता के सिद्धांतों को करने दीजिये।
“प्रेस की स्वतंत्रता के सिद्धांत की आड़ में क्या किसी व्यक्ति को सभी प्रकार की गलत बातें कहने और करने के लिए अख़बार निकालने की आजादी मिलनी चाहिए? स्पष्टत: यदि धन उपलब्ध हो और पर्याप्त ग्राहक जुटा सकें , तो कोई भी व्यक्ति कुछ भी निकाल सकता है। इस प्रकार वह सभी प्रकार के हानिकारक विचारों का प्रसार करके बहुत अनिष्ट कर सकता है।”