भाजपा का विपक्षी दलों में सेंधमारी का अभियान



संजय पुरबिया

लखनऊ। 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग दो माह तक चलने वाले चुनाव प्रचार में सत्ता की प्रमुख दावेदार भाजपा कई स्तरों पर कार्य कर रही है। इसमें से प्रमुख हैं-अपनी जीत का लगातार दावा कर विपक्षी दलों के मनोबल को कमजोर करना। दूसरा विपक्ष पर झूठे आरोपों की झड़ी लगाना और तीसरा विपक्षी दलों में सेंधमारी करना। चौथा-विपक्षी दलों को ई.डी., सी.बी.आई., इनकम टैक्स के माध्यम से उन्हें जेल भेजना, नोटिस देना, पूछताछ कर समय नष्ट करना, छापे डालना। कई महीनों से प्रधानमंत्री से लेकर भाजपायी मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, पार्टी पदाधिकारियों की फ़ौज लगातार अबकी बार 400 पार का दावा कर रही है। सबसे अधिक सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा का नारा है 80 में 80 अर्थात भाजपा प्रदेश की सारी 80 सीटें जीतेगी और विपक्ष का खाता भी नहीं खुलेगा। 400 पार का लगातार जाप विपक्ष के मनोबल को कमजोर करने तथा मतदाता को यह बताने के लिये किया जा रहा है कि जब भाजपा जीत ही रही है तो विपक्ष को वोट देने से क्या लाभ ?

यह देखकर हिटलर की याद आती है। जर्मनी जब युद्ध में हारकर पीछे हट रहा था तो हिटलर व उसकी सरकारी मशीनरी भाषणों तथा मीडिया के माध्यम से जनता में धुआंधार प्रचार करती थी कि जर्मनी की फ़ौजें आगे बढ़ रही हैं तथा शत्रु देशों के भू-भाग पर कब्जा कर रही हैं। यह प्रचार इतना जोरदार था कि जर्मनी की जनता को यह विश्वास हो गया था कि हिटलर अपराजेय है। जब सोवियत रूस की फ़ौजों ने जर्मनी की राजधानी बर्लिन को घेर कर कब्जा कर लिया। तभी वहां की जनता को विश्वास हुआ कि हिटलर की पराजय हो चुकी है। 400 के पार के नारे में भाजपा की सबसे बड़ी मददगार गोदी मीडिया है। समाचार पत्रों में अधिकांश खबरें भाजपा नेताओं की छपती हैं। खबरिया चैनल के एंकर तो पूरी ताकत लगाकर भाजपा के दावों की पुष्टि करते हैं और इसके लिये तमाम प्रकार के तर्क पेश करते हैं। शहर-शहर घूमकर जनता से वादा करने के नाम पर भाजपा के दावों की पुष्टि करते हैं। भाजपा के नेता विपक्ष पर झूठे आरोप की झड़ी लगा देते हैं क्योंकि भाजपा हिटलर के प्रचारमंत्री गोयवेल्स के इस कथन में विश्वास करती है कि एक झूठ को 100 बार दोहराओ तो वह सत्य बन जायेगा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस की देशभक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है और राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश शासन से सहयोग करने वाली भाजपा कीे मातृ संस्था आर.एस.एस. को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी व देशभक्त बताया जाता है। कांग्रेस को मुस्लिम लीग से जोड़ा जाता है जबकि जनसंघ (भाजपा का पूर्व नाम) के संस्थापक अध्यक्ष डॅा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनायी थी, इसकी चर्चा तक नहीं करते। कांग्रेस राम मंदिर की विरोधी है, का झूठा राग अलापा जाता है जबकि रामजन्मभूमि का ताला राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में खुला था। भाजपा का ऊपर से नीचे तक हर नेता कांग्रेस के बारे सतही व हल्की भाषा का प्रयोग करने से नहीं हिचकता। जहां तक परिवारवाद के आरोपों का सवाल है, खुद भाजपा अपने पूर्व मंत्रियों, सांसदों के पुत्र, पु़ित्रयों को टिकट दे रही है तथा अपना दल (एस) लोकजनशक्ति पार्टी (आर) निषाद पार्टी, सुभासपा जैसे परिवारवादी दलों को चिपकाये घूम रही है।

मोदी शाह को सिर्फ कांग्रेस, सपा, राजद का परिवारवाद याद रहता है अपने इर्द- गिर्द बैठे लोगों का परिवारवाद याद नहीं रहता। विपक्षी दलों के नेताओं को हर तरह चुनाव प्रचार करने से रोकने के लिये ई.डी., सी.बी.आई., इन दिनों जितना सक्रिय है उतनी कभी नहीं थी। हर दिन बड़ी संख्या में विपक्षी नेताओं के घरों पर छापे डाले जा रहे हैं, पूछताछ के बहाने उनका समय नष्ट किया जा रहा है, बिना आरोप सिद्ध हुये जेलों में डाला जा रहा है। इस प्रकार विपक्ष को चुनाव प्रचार का समान अवसर देने से वंचित किया जा रहा है। आश्चर्य है कि निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव का दम भरने वाले चुनाव आयोग को यह नहीं दिखायी पड़ता, क्योंकि वह भी पिजरें का तोता बन गया है? इतना सब करने के बाद भी भाजपा को क्या अपनी जीत का पूरा विश्वास नहीं है, इसलिये विपक्षी दलों में सेंधमारी करने के लिए उसने पूरी ताकत लगा दी है। राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर ज्वाइनिंग कमेटियां बनायी गयी हैं जिसमें ई.डी., सी.बी.आई. इनकम टैक्स के माध्यम से हांका लगाकर विपक्षी दलों के लोगों को भाजपा में शामिल कराया जाता है। भाजपा में वे भय के कारण शामिल होते हैं परन्तु यह डंका पीटा जाता है कि वे मोदी व भाजपा की लोकप्रियता के कारण भाजपा में शामिल हो रहे हैं। जिस दल को वे छोड़ते हैं उसके बारे में सुनियोजित बयान दिलाया जाता है तथा वे मीडिया पर अपने हृदय परिवर्तन की कहानी बताते हैं। विपक्ष के बड़े नेताओं को ही सेंधमारी से भाजपा में शामिल नहीं कराया जा रहा है बल्कि बूथ स्तर पर यह काम हो रहा है। यहां पर विपक्षी दलों के बूथ स्तर के एक लाख कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल कराने की योजना है।

पार्टी का दावा है कि पिछले दो महीनों में 70 हजार से अधिक लोगों को भाजपा में शामिल कराया गया है। बड़ी संख्या में नगर पालिका व नगर पंचायत अध्यक्षों के साथ पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा का आकलन है कि यदि जमीनी स्तर से ऊपर तक के एक लाख विपक्षी दलों के नेता कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो जायेंगें और एक कार्यकर्ता यदि विपक्षी दलों के 100 समर्थक मतदाताओं को भी भाजपा में खींच लाता है तो एक करोड़ वोट उसके पाले में आ जायेंगे तथा उसका 80 में 80 का लक्ष्य पूरा हो सकेगा। पर भाजपा यह भूल रही है कि चांदी के सिक्कों पर बिकने वाले विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर जनता कितना विश्वास करेगी।

उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोट देकर उसका नौवां उम्मीदवार जिताने वाले सपा विधायक मनोज पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, विनोद चतुर्वेदी, राकेश पाण्डेय, आशुतोष मौर्य, पूजा पाल जो आज भी तकनीकी रूप से सपा विधायक हैं अब यह लोग अपनी पत्नियों, पिता भाई और परिवार के अन्य सदस्यों को भाजपा में भेज रहे हैं। ऐसे गरिमा विहीन अनैतिक आचरण करने वालों पर जनता कितना विश्वास करेगी और उनके कहने पर भाजपा को वोट देगी, इसकी गारंटी नहीं है। अगर इन विधायकों में लोकलज्जा बची होती तो उन्हें यह काम स्वामी प्रसाद मौर्या की भांति त्यागपत्र देकर करना चाहिये। सपा से त्यागपत्र देकर विधिवत भाजपा में शामिल हो गये होते। उन्हें सपा एम.एल.सी. स्वामी प्रसाद मौर्य से सबक सीखना चाहिए जो कि पार्टी छोडऩे के साथ ही एम.एल.सी. पद से त्यागपत्र देने में नहीं हिचके। यह तो विधायक ठहरे लेकिन रालोद नेता जयंत चौधरी ने तो भाजपा के साथ हो गये लेकिन राज्यसभा से इस्तीफ ा तक नहीं दिया और जिन विधायकों केा साथ लिये घूम रहे हैं वह तो सपा-रालोद गठबंधन की सीटों से जीतकर गये हैं। इसके पहले की विधानसभा में रालोद के पास तो एक विधायक था वह भी बीच में ही भाजपा में चले गये थे। जयंत चौधरी को उन विधायकों के भी इस्तीफे दिला देने चाहिये । तब लगता कि उनमें कितनी नैतिकता बनी हुयी है।

प्रश्न यह है कि यदि नरेन्द्र मोदी की चुनाव में लहर चल रही है तो विपक्षी दलों में सेंधमारी की जरूरत क्यों है? लहर में तो निर्वाचन क्षेत्र की जनता के लिये अनजाने उम्मीदवार भी लोकप्रिय नेता के नाम पर चुनाव जीत जाते हैं।1977 की जनता लहर को कोई भांप नहीं पाया लेकिन जनता ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका। 1971 व 1980 के लोकसभा चुनाव में इन्दिरा लहर में कांग्रेस को विपक्षी दलों में सेंधमारी की जरूरत नहीं पड़ी और इन्दिरा के नाम पर कांग्रेस (इ) ने लोकसभा में दोनों बार 350 से अधिक सीटें जीत लीं। यह भी सही है कि कांग्रेस व सपा भी कभी कुछ न कुछ सेंधमारी कर रही है पर उसके पास ई.डी, सी.बी.आई., इनकम टैक्स जैसे नुकीले धारदार हथियार नहीं है, जिसके सहारे वह मजबूत दीवाल (पार्टी) में सेंधमारी लगा सके। 2024 का लोकसभा चुनाव यह भी तय करेगा कि भाजपा द्वारा अपनायी जा रही चुनावी रणनीति समाप्त होगी या भविष्य में और अधिक धारदार हो जायेगा।


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