आज का युवा: “ना घर का, ना घाट का”


लखनऊ। आशुतोष पाण्डेय। यूपी में समूह ख और समूह ग की सरकारी नौकरियों के लिए नियमों के बदलने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। नए प्रस्ताव के अनुसार, प्रदेश में इन समूहों की नई भर्तियां अब संविदा के आधार पर होंगी, जिन्हें 5 वर्ष में हुए मूल्यांकन के आधार पर नियमित किया जाएगा। सरकार इससे भले ही कर्मचारियों की गुणवत्ता बढ़ाने का दावा कर रही हो, लेकिन बड़ी बात ये है कि विपक्ष और प्रतियोगी इसका विरोध कर रहे हैं।

समाजवादी पार्टी के नेता मनोज सिंह काका का कहना है कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात राज्यों की पहचान हुआ करती थी लेकिन अब तक अपने यूपी में पहले महीने से पूरी सैलरी मिलती थी अब नही मिलेगी। जानते है क्यो?

क्योकि अब उत्तर प्रदेश को तथाकथित मेरिटधारी लोग मिल गए है जो सीधा आपकी नौकरी पर डाका डाल रहे है। ये अखिलेश यादव की सरकार होती तो कदाचित सम्भव नही था पर अब तो सरकार सब कुछ बेचने वालों की है !!

उन्होंने कहा कि ये दमनकारी शोषणकारी नीति युवाओं के प्रतिभा को शोषण करने हेतु बनाया जा रहा है युवाओं को रोंजनदारी का मज़दूर बनाने की नीति है युवाओ के सपनों से खिलवाड़ है ,योगी सरकार से अपील है फ़ैसला वापस लिया जाय !! रोज़गार ख़त्म करके योगी जी ने ये साबित किया है उनको युवाओं को भविष्य से कोई लेना देना नही है !! पाँच साल काम करके जब उम्र ख़त्म हो जायेगी तो सरकार आपको नौकरी से निकाल देगी “न युवा घर का रहेगा न घाट का रहेगा“।

हर व्यवस्था का निजीकरण संविदाकरण करने वाली योगी सरकार और मोदी जी की सरकार को भी अपनी सरकार का निजीकरण और संविदाकरण करके किसी के हाथो बेच देना चाहिए हो सके उससे कुछ देश और प्रदेश का भला हो जाय ..हो सके सरकार के बिकने से GDP ठीक हो जाए ,बेरोज़गारी ख़त्म हो जाय,रुपया मज़बूत हो जाय,अपराध कम हो जाय और हो सके ये भी हो जाय कि सरकार जब बिक जाए तो हमारी सीमाएं सुरक्षित हो जाए !!


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