संजय श्रीवास्तव
लखनऊ। अहमदाबाद हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद एयर इंडिया की उड़ान 171 के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से सबका ध्यान एक बार फिर विमानन कंपनी, नियामक और देश में नागरिक विमानन की व्यापक स्थिति की तरफ चला गया है। यह विमान रनवे से दो किलोमीटर दूर एक मेडिकल हॉस्टल पर जा गिरा। मगर अभी तक यह पता नहीं है कि यह विमान दुर्घटना का शिकार कैसे हुआ? बेहतर यही होगा कि इस विषय में कोई अटकल लगाने के बजाय जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जाये। यह भी आवश्यक है कि ये रिपोर्ट प्रासंगिक अधिकारियों द्वारा पारदर्शी ढंग से तैयार की जाये और इसे समय पर जारी किया जाये। इस जांच की नोडल एजेंसी एयरक्राफ्ट एक्सिडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (एएआईबी) को बनाया गया है जो केंद्रीय नागर विमानन मंत्रालय की ही शाखा है।

भारत ने 2012 में एक स्वतंत्र जांच एजेंसी का गठन किया था, इसने जो इकलौती बड़ी जांच की वह थी एयर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ान संख्या 1344 के 2020 में कोझिकोड हवाई अड्डे पर लैंडिंग के समय दुर्घटनाग्रस्त होने की। दुनिया भर में अधिकांश जांचें वैश्विक विशेषज्ञों की सहायता से की जाती हैं, अक्सर इसमें उस देश से भी सहयोग लिया जाता है जहां वह उड़ान जा रही होती है। चूंकि इस मामले में विमान लंदन के गैटविक हवाई अड्डे पर उतरना था और उसमें सवार 50 से अधिक यात्री ब्रिटिश नागरिक थे इसलिये यूनाइटेड किंगडम की विमान दुर्घटना जांच एजेंसी ने पहले ही चार लोगों को सहायता के लिये नियुक्त कर दिया है। दुर्घटनाग्रस्त विमान बनाने वाली कंपनी बोइंग ने भी कुछ लोग भेजे हैं। अभी तक की यह दूसरी ऐसी बड़ी हवाई दुर्घटना है, जिसकी जांच एएआईबी कर रही है। इससे पता चलता है कि विमानन उद्योग के बेहद तेज विस्तार के बावजूद भारत में उड़ान कितनी अधिक सुरक्षित हैं।
1970 और 1980 के दशक में कई विमान देश में हादसों के शिकार हुये और भारतीय विमानन उद्योग आतंकी हमलों समेत तमाम चुनौतियों से जूझता रहा। 21वीं सदी में निजी विमानन कंपनियों का विस्तार हुआ और यात्रियों की संख्या में भी काफी वृद्धि दर्ज की गयी। इसके साथ ही बड़ी विमान दुर्घटनाओं तथा मौत के मामलों में काफी कमी आयी है। देश के विमानन क्षेत्र ने कड़ी मेहनत से अच्छी खासी प्रतिष्ठा अर्जित की है मगर वह तभी बरकरार रह पायेगी, जब इस दुर्घटना की जांच सहज और विश्वसनीय तरीके से हो और विमानन कंपनियों तथा प्राधिकारियों की सिफारिशों को स्वीकार तेजी से उनका क्रियान्वयन किया जाये। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि एयर इंडिया कई मोर्चों पर मुश्किलों से जूझती रही मगर 1982 में मुंबई में लैंडिंग के वक्त दुर्घटनाग्रस्त होने के अलावा उसके विमान (आतंकी वारदात को छोड़कर) किसी बड़ी दुर्घटना के शिकार नहीं हुये । यह रिकॉर्ड दुनिया की कई बड़ी विमानन कंपनियों के जैसा ही है, परंतु इसकी किफायती सेवा एयर इंडिया एक्सप्रेस का प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब रहा है।

इस बीच देश में निजी विमानन के 30 सालों में किसी बड़ी निजी विमान सेवा को बड़ी दुर्घटना नहीं झेलनी पड़ी है। ये सवाल पूछे जाने चाहिये और पूछे जायेंगे कि एयर इंडिया की सेवाओं का आंतरिक पुनर्गठन होने और उसका निजीकरण होने के बाद सुरक्षा को शीर्ष प्राथमिकता दी गयी है या नहीं ? इन सवालों के जवाब शायद जांच से निकलें और इसमें पूरा सहयोग करना कंपनी के हित में होगा। अन्य देशों की कुछ घटनाओं मसलन 2016 में इजिप्टएयर की उड़ान 804 जैसे मामलों में जांच में विलंब हुआ, विवाद हुये और राजनीतिक प्रतिबंध देखे गये। भारत में इस जांच में ऐसी दिक्कत नहीं आनी चाहिये।
सरकार ने 2030 तक देश के भीतर हवाई यातायात दोगुना करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इस दौरान 50 और हवाई अड्डे तैयार करने हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये सुरक्षा प्रक्रियाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये। ऐसे में एएआईबी के काम पर बारीक नजर रखनी होगी और उसे भी जितनी जल्दी संभव हो सके एक व्यापक और सटीक रिपोर्ट तैयार करनी होगी।