‘ईमानदारी’ और गरीबों के ‘मददगार’ आईएएस का नाम है ‘डॅा. हीरालाल’


सहकारिता विभाग के आयुक्त एवं निबंधक बनें डॅा. हीरालाल

संजय श्रीवास्तव

लखनऊ। हीरालाल-आईएएस,गरीबों के मददगार,अपने कर्मचारियों की ईमानदारी को परखने और उनका हौसला बढ़ाने,सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले शख्यियत का नाम है। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक छोटे से गांव बागडीह में इनका जन्म हुआ। बचपन ग्रामीण परिवेश की कमी और कठिनाईयों में बिता लेकिन सोच हमेशा से गरीब,कमजोर वर्ग के लोगों की मदद की रही। यही वजह है कि आईएएस बनने के बाद भी उनके अंदर जरा भी अहंकार नहीं झलकता। आईएएस के कमरे में जाने से कर्मचारियों के पसीने छूट जाते हैं लेकिन हीरालाल के यहां बेखौफ होकर कर्मी अपनी समस्याओं को लेकर जाते हैं। सभी को मालूम है कि साहेब तक बात पहुंचा देंगे तो तत्काल फोन की घंटी घनघनाएंगे और पीडि़तों की समस्या जड़ से खत्म हो जायेगी। हीरालाल इस समय सहकारिता विभाग में आयुक्त एवं निबंधक के पद पर कार्यरत हैं।

हीरालाल की ईमानदारी,कड़ी मेहनत और अधिकारियों,कर्मचारियों के मददगार की कहानियां सुन जब ‘द संडे व्यूज़’ की टीम उनके कार्यालय पहुंचीतो वहां पर जिले से आयी एक महिला कर्मचारी अपनी समस्या को लेकर पहुंची। हीरालाल ने तत्काल जिले के अधिकारी को फोन घुमाया और निर्देश दिया कि इनके साथ ना-इंसाफी मत करो,तुरंत इनका जायज काम कर अवगत कराओ…। इसी तरह,जिले के ही दो नवयुवक सहकारिता विभाग के मुद्दों को लेकर पहुंचे…। उनका आरोप था कि उनकी अधिकारी नहीं सुन रहे हैं,जबकि वे समिति के लिये पात्र हैं…हीरालाल जी ने संबंधित अधिकारी को निर्देश दिया कि काम ईमानदारी से करो तो सब ठीक है वर्ना…। खास बात ये है कि एक सीनियर आईएएस कितनी गंभीरता से अपने मातहतों की समस्याओं को लेते हैं और मौके पर ही उनका निस्तारण करते हैं। बस यही बात हीरालाल जी को नौकरशाहों की भीड़ में अलग दिखाती है। इतना सरल व्यक्ति वही हो सकता है जिसने गरीबी को करीब से देखा और भोगा हो…।

बता दें कि डॉ. हीरा लाल की यात्रा कड़ी मेहनत, ईमानदारी और आजीवन सीखने की शक्ति को दर्शाती है। हीरा लाल का जन्म जुलाई 1967 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक बहुत छोटे से गाँव बागडीह में हुआ था। उन्होंने अपना बचपन ग्रामीण परिवेश की कमी और कठिनाइयों में बिताया। उन्होंने चुपचाप जीवनयापन के संघर्ष के ऐसे सबक सीखे जो संपन्न लोग अपने पूरे जीवन में कभी नहीं सीख पाते। कक्षा पाँच तक, उन्होंने सिहारी नामक एक बहुत छोटे से ग्रामीण इलाके में प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई की और अपनी छठी से आठवीं कक्षा की शिक्षा पूरी करने के लिये वे रसूलपुर नामक एक गहरे ग्रामीण इलाके में चले गये। हीरा लाल इस अवधि को अपने जीवन का स्वर्णिम काल मानते हैं, क्योंकि यही वह समय था जब उन्होंने कठिन जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना किया और कठिन समय में जीवित रहने की कला सीखी। इंटरमीडिएट, यूपी बोर्ड की पढ़ाई के दौरान उनके अंदर यह तीव्र इच्छा पैदा हुई कि हमारे आसपास की दुनिया बदलनी चाहिये और जीवन शारीरिक और मानसिक रूप से आसान होना चाहिये। केवल इच्छा से कोई लाभ नहीं है। इसलिये, उन्होंने शिक्षा के माध्यम से शक्ति प्राप्त करने का निर्णय लिया।

उन्होंने 1989 में जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, यू.एस. नगर, उत्तरांचल से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. की डिग्री पूरी की। लेकिन समाज की सेवा करने और आम जनता को लाभ पहुंचाने की उनकी गहरी रुचि ने उन्हें आईटी बीएचयू वाराणसीए यूपी से एम.टेक. की पढ़ाई बीच में ही छोडऩे और एनटीपीसी लिमिटेड, 1993 में और बाद में यू.पी. सिविल सेवा1994 में में शामिल होने के लिये मजबूर कर दिया। सिविल सेवा में उनके प्रवेश ने उन्हें अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिये नया उत्साह और जोश दिया जो अब काफी बड़ा हो चुका था। अब, उनके पास लोगों की सेवा करने और उनके जीवन में बदलाव लाने के लिये संसाधन, शक्ति और मशीनरी थी। उन्होंने इस मंच का पूरा फ ायदा उठाया और दूसरों की मदद करना और अपने काम का आनंद लेना शुरू कर दिया।

16 साल से अधिक समय तक काम करने के बाद उन्होंने एक छलांग आगे बढ़ाई। अपनी क्षमताओं को मजबूत करने और अपने कौशल और ज्ञान को तेज करने के लिये वह सार्वजनिक प्रशासन, संघर्ष समाधान और अंतर्राष्ट्रीय और गैर-सरकारी संगठनों के नेतृत्व पर एक साल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिये यूएसए गये। वह मई 2010 में भारत वापस लौटे और अपने कर्तव्यों को फिर से शुरू किया। इसके अलावा, उन्होंने 2015 में आईसीटी सक्षम सुशासन के क्षेत्र में अपना डॉक्टरेट अनुसंधान शुरू किया। उन्होंने 2020 में उत्तर प्रदेश के संदर्भ में सुशासन प्राप्त करने में आईसीटी की भूमिका चुुनिंदा सरकारी कार्यक्रमों का एक अध्ययन शीर्षक से अपनी पीएचडी पूरी की। उन्होंने मार्च 1993 में एनटीपीसी में इंजीनियर के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने जुलाई 1994 में पीसीएस और 2010 में आईएएस के रूप में काम करना शुरू किया।

उन्होंने जीओयूपी में कई पदों पर काम किया है जैसे प्रबंध निदेशक, यूपी लघु उद्योग निगम कानपुर, विशेष सचिव संस्कृति और निदेशक संस्कृतिय प्रबंध निदेशक यूपी डेस्को, विशेष सचिव ग्राम्य विकास, क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक फैजाबाद मंडल, विशेष सचिव श्रम और विशेष सचिव होमगार्ड। वे डेढ़ साल तक बांदा के जिलाधिकारी रहे। उन्हें उनके अभिनव कार्यों और लीक से हटकर काम करने की शैली के लिये कई पुरस्कार मिले। वह एक सामाजिक नेता की तरह काम करते हैं।

उन्हें शौक के तौर पर गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों की मदद करना अच्छा लगता है। उनका अहंकार रहित, सरल अंदाज और जरूरतमंदों से जुडऩे और उनकी मदद करने की उत्सुकता उनकी मुख्य ताकत है।


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