‘क्रिकेटर’बना ‘छात्र नेता’
अक्षत श्री.
लखनऊ। एक किसान का बेटा,जो क्रिकेटर बनना चाहता था,यही सपना लेकर उसने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में दाखिला लिया। दाखिला भी मिल गया और पढ़ाई के साथ-साथ अंतराष्ट्रीय क्रिकेट टीम में शामिल होने का सपना भी देख रहा था, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। विश्वविद्यालय में अपने सहपाठी के चुनाव में सचिन प्रचार-प्रसार कर रहे थें,तभी उनके सहपाठी ने इनकी भाषाई पकड़ देख उनके पक्ष में भाषण देने की जिम्मेदारी सौंप दी। फिर क्या था,सचिन बैसला के बोल और छात्रों की हाजिर-जवाबी ने उनके सहपाठी को चुनाव में जीत का स्वाद चखा दिया। बस,यहीं से उन्होंने विश्वविद्यालय के चुनाव में खड़ा होने और छात्रों की जायज समस्याओं के लिये लडऩे का संकल्प लिया। सचिन बैसला भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ से वर्ष 2023-24 में संयुक्त सचिव रहे। इन्होंने करीब 25 हजार वोटों से चुनाव जीता और अपनी जीत डंका बजाया। आपको बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय का चुनाव किसी विधान सभा चुनाव से कमतर नहीं होता। चुनाव हुआ और सचिन बैसला जीत कर दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त सचिव बने। चलिये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर सचिन बैसला क्या हैं। पेश है ‘द संडे व्यूज’ से खास बातचीत।
सवाल: दिल्ली विश्वविद्यालय आने से पहले आपका पारिवारिक परिवेश कैसा था ? राजनीति या समाज सेवा के क्षेत्र में परिवार का कोई सदस्य था? क्या इत्तेफाकन आपकी इंट्री छात्र राजनीति में हुयी ?
जवाब: मेरे परिवार में पिताजी बागपत-लोनी बार्डर पर ढींढ़ार गांव किसानी करते थे। उनका अलग स्ट्रगल रहा,फिर वे नोयडा आ गये। अपना काम शुरु किया। राजनीति से दूर-दूर कोई लेना नहीं रहा। किसानी परिवार से थे वहीं पर मेरा खेत,घर सब कुछ आज भी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में क्रिकेट की वजह से आया। क्रिकेट के लिये दिल्ली विश्वविद्यालय में बहुत स्कोप था। पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता था। मैं,सिर्फ क्रिकेट खेलकर आगे बढऩे की सोच रहा था। मुझे याद है, फास्ट बॉलर होने की वजह से कई बार अपने कॅालेज की टीम को जीत का स्वाद चखाया, आगे बढ़ाया। उसी समय मेरे मित्र रामअनुजन कॅालेज से चुनाव में खड़े हुये। मेरे मित्र को क्लास में जाकर छात्र-छात्राओं के बीच स्पीच देने में दिक्कत हो रही थी। बहुत दिनों तक मैंने स्पीच देने की कमान संभाली। फस्र्ट ईयर के स्टूडेंट नये होते हैं इसलिये मैंने खुद को मनीष बताकर चुनाव में क्लास टू क्लास जाकर स्पीच दिया। परिणाम ये रहा कि मेरा मित्र चुनाव जीत गया और छात्रों के बीच चर्चा में आ गया। उसके बाद मेरे साथ और ग्रुप के लोग मुझे सेकेण्ड ईयर में सेंट्रल काउंसिल (सीसी) की पोस्ट पर चुनाव लडऩे का दबाव बनाया और जीत भी गया। इस तरह मैं राजनीति में आ गया। देखिये,हर इंसान बड़ा काम करने के लिये सोचता है। कुछ को समय से पहले सब कुछ मिल जाता है और कुछ को मिलने में लंबा वक्त लगता है। मेरा मानना है कि आदमी को धैये से काम लेना चाहिये और यही मैंने किया। आज मैं जिस जिंदगी को जीना चाहता था,जी रहा हूं। यदि बढ़कर कुछ और मिला तो उसे भी स्वीकार करूंगा,नहीं मिला तो कोई बात नहीं….
सवाल: तो फिर आपका क्रिकेटर बनने का सपना खत्म हो गया ?
जवाब: क्या बात करते हैं…। एक बात तो जान लीजिये कि जिसने भी एक बार क्रिकेट खेल लिया,फिर उसे बुढ़ापे में भी नहीं छोड़ सकता। आज भी ग्राउंड में कि सी को क्रि केट खेलते देखता हूं तो अंदर का क्रिकेटिया जोर मारने लगता है क्योंकि मैं अपनी टीम का पेस बॉलर था। सवाल: दिल्ली विश्वविद्यालय में देश के हर कोने से छात्र-छात्राएं आती हैं,उन सबने आपको वोट देकर संयुक्त सचिव चुना था,जो अपने आपमें बड़ी बात है…। चुनाव से जुड़े कुछ किस्से बताए जो आपको हमेशा याद रहेंगे? जवाब: सबसे पहले तो मैं बताऊं। मेरा इलेक्शन लडऩा ही बड़ा वाक्या रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय में 25 वर्ष की उम्र तक ही प्रत्याशी चुनाव लड़ सकता है। वर्ष 2019 में मैंने चुनाव लडऩे का मन बनाया लेकिन संगठन ने टिकट नहीं दिया। इसी बीच कोविड की लहर आ गयी और लगभग डेढ़ वर्ष बाद जब डीयू खुला तो मेरी उम्र 25 वर्ष हो गयी थी,इसलिये मैं तो चुनाव में किसी सूरत में खड़ा हो ही नहीं सकता था। बावजूद इसके मैं कोविड में भी छात्रों की समस्याओं को दूर करता रहा। मैंने सोचा जो होगा देखा जायेगा। मेरे काम को देख सब कहने लगे कि जब ये चुनाव नहीं लड़ सकता तो क्यों बेवजह सबकी मदद करता रहता है। लगता है पागल हो गया है लेकिन कहते हैं ना कि होनी को कुछ और ही मंजूर था। दिल्ली विश्वविद्यालय ने चुनाव से 10-15 दिन पूर्व एक नोटिफिकेसन निकाला जिसमें लिखा था कि कोविड की वजह से चुनाव लडऩे क इच्छुक जिन छात्रों की उम्र सीमा निकल गयी है,उनके लिये उनके लिये 3 वर्ष की छूट दी जाती है। फिर क्या था, मानों ईश्वर ने मेरे नि:स्वार्थ मेहनत और ईमानदारी से किये गये काम का ईनाम दे दिया। मैं चुनाव लड़ा और बंपर वोट से जीतकर संयुक्त सचिव बना।
हां एक वाक्या और है,जो दिलो-दिमाग में हमेशा छाया रहेगा। चुनाव के दौरान मेरे साथी दिन में प्रचार करते थें और रात में पोस्टल लगाने का काम। यही काम अन्य प्रत्याशी के सहयोगी भी करते थे। एक बार रात में ही दो गुटों के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ गयी। एक गुट ने दूसरे प्रत्याशी के गाड़ी पर हमला कर तहस-नहस कर देते हैं। अगले दिन दूसरे गुट ने तोडफ़ोड़ करने वाले गुट की करोड़ों की गाड़ी में आग लगा देते हैं। ये मामला काफी चर्चा में इसलिये रहा कि विपक्ष ने सीधे-सीधे मेरे ऊपर आरोप लगा दिया जबकि मैं या मेरे साथी इस घटना में शामिल नहीं थें।
सवाल: विश्वविद्यालय में एक ही बार चुनाव लडऩे का नियम है। क्या ये उचित है ?
जवाब: नहीं। किसी पद पर प्रत्याशी जब चुनाव जीतता है तो उसे ये समझने में ही पांच से छ: माह लग जाता है कि उसे क्या करना है। बाकी शेष बचे माह कुछ सुधार करने छात्रों की ढेरों समस्याओं को दूर करने की योजनाएं बनाने में ही निकल जाता है। कायदे से इस नियम को हटा देना चाहिये ताकि छात्र दुबारा किसी पद पर खड़ा हो सके और छात्रों की जायज मांगों के लिये संघर्ष कर सके।
सवाल: कहा जाता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय का चुनाव एक विधान सभा के चुनाव से भी बड़ा होता है…उसको तो आपने जीत लिया। अब आगे की क्या रणनीति है ?
जवाब: देखिये, विधान सभा चुनाव लडऩा आसान है लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय का चुनाव लडऩा बेहद कठिन है क्योंकि इसके अधीन 53 कॉलेज आते हैं। जब आप प्रत्याशी बनते हैं तो सभी की बातों को सुनना,समझना और सबसे बड़ी बात की उन्हें भरोसे में लेना होता है। सभी राज्यों क स्टूडेंट होते हैं,सभी की सोच और उम्मीदें अपने प्रत्याशी से ज्यादा होती है इसलिये हाईलेबर प्रेशर होता है। लेकिन,एक बात है कि जो इस दौर का सामना कर निकल गया उसे दुनिया के किसी कोने में चला जाये,हर प्रॉब्लम को चुटकियों में खत्म कर सकता है।
सवाल: आपने 551 छात्रों को नि:शुल्क दिल्ली से अयोध्या दर्शन के लिये भेजा। आखिर ये सोच कैसे आयी और इस भव्य कार्यक्रम को कैसे सफल बनाया ?
जवाब : मैं खुद दिल्ली विश्वविद्यालय में लंबे समय तक छात्र रहा। यहां से प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं गोवा,मनाली ट्रीप जाती थी। मैंने सोचा कि जब स्टूडेंट गोवा,मनाली जा सकते हैं तो क्यों ना इन्हें धार्मिक स्थलों पर ले जायें,क्योंकि इस समय यूपी में हमारी सोच और विचार से मिलती-जुलती सरकार है। इसलिये अयोध्या में प्रभू श्री राम मंदिर का दर्शन कराने का ट्रिप बनाया जिसमें 551 छात्रों को नि:शुल्क लाकर दर्शन कराया गया। इसमें सबसे बड़ी भूमिका सरकार के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह,मंत्री राकेश सचान सहित विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री ने निभाया। आपको बताऊं कि राम मंदिर परिसर में जब हमलोग पहुंचे तो इतनी आत्मिक शांति और अद्भूत अनुभव हुआ,जिसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। यही हाल छात्रों का भी रहा। छात्र आज भी मिलते हैं तो इस धार्मिक ट्रिप कराने के लिय शुक्रि या बोलते हैं। सच बोलूं तो यही जिंदगी का असली मजा है…।
सवाल: दिल्ली विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश के छात्रों की संख्या अन्य किसी राज्यों से आने वाले छात्रों की संख्या से अधिक है। आपने यूपी के छात्रों के रहने के लिये दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रावास बनाने का ज्ञापन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपा था। उस पर क्या प्रगति है ?
जवाब: दिल्ली विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में यूपी,पूर्वांचल के छात्र हैं। आप यूं समझ सकते हैं कि डेढ़ लाख छात्रों की संख्या है,जिसमें से लगभग 50-60 हजार छात्र-छात्राएं यूपी के हैं। दिल्ली में पश्चिमी क्षेत्र के छात्र तो किसी तरह अपने नाते-रिश्तेदारों या जानने वालों के यहां रह लेते हैं लेकिन यूपी के छात्रों के लिये पीजी या किराये का मकान ही सहारा होता है। दिल्ली वैसे भी महंगा शहर है इसलिये गरीब, मध्यम वर्ग के परिजनों को अपने बच्चों को पढ़ाने में आर्थिक संकटों से जूझना पड़ता है। इसीलिये जब मैं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला तो मैंने एक प्रस्ताव रखा कि यदि दिल्ली में पूर्वांचल के छात्रों के रहने के लिये यदि हॉस्टल बन जाये तो छात्रों के लिये बड़ी मेहरबानी होगी। इस पर मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि आने वाले समय में जो उचित होगा किया जायेगा…
सवाल: छात्र राजनीति कितना जरुरी है, पुराने आंदोलनों में भी छात्रों ने महती भूमिका निभायी है…। क्या आज के दौर में हर छात्र को राजनीतिक रुप में जागरुक रहना चाहिये? छात्रों के लिये आपकी क्या सलाह रहेगी ?
जवाब: छात्र राजनीति तो बेहद जरूरी है। आखिर छात्रों की समस्याओं को कौन सुनेगा? कहावत है कि बच्चे मन के सच्चे…। जब छात्र चुनाव जीत कर आता है तो उसके दिमाग में यही होता है कि कै से छात्रों की समस्याओं को प्रशासन से लड़कर पूरा कराऊं, क्योंकि वो खुद उन प्रॉब्लम से दो-चार हो चुका होता है। नये छात्र प्रतिनिधि दिमाग नहीं लगाता,वो सीधे आर-पार की लड़ाई के लिये तैयार रहता है। वो एक्टिविस्ट होकर बिंदास अंदाज में जो सच होता है,बोल देता है ना कि घाघ नेताओं की तरह दिमाग लगाता है, इसलिये छात्रों को हर हाल में राजनीति में आना चाहिये।
सवाल: उत्तर प्रदेश में छात्र राजनीति पर अर्से से रोक लगायी गयी है। इसे हटना चाहिये या नहीं ?
जवाब: जी ये तो बिल्कुल उचित नहीं है लेकिन इसके पीछे ये भी जानना जरूरी है कि आखिर यूपी के विश्विद्यालयों,कॉलेजों में छात्र राजनीति पर रोक क्यों लगायी गयी है ? मैं जितना जानता हूं उसके हिसाब से यूपी के विश्विद्यालयों में चुनावी हिंसा की घटनाएं बहुत होती है,जो उचित नहीं है।
सवाल: छात्र राजनीति पर रोक से छात्रों का क्या नुकसान हो रहा है और विश्वविद्यालय प्रशासन को क्या फायदा है ?
जवाब: छात्र राजनीति पर रोक से प्रशासन को कोई नुकसान नहीं होता लेकिन इससे छात्रों का काफी नुकसान हो रहा है। नेता रहते हैं तो वे छात्र की आवाज बनकर प्रशासन के सामने खड़े हो जाते हैं। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय का एक वाक्या बताऊं…यहां पर फीस में एकदम से वृद्धि कर दी गयी,जिससे छात्र परेशान थे लेकिन प्रशासन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। स्टूडेंट मेरे पास आये और मैं प्रशासन के पास गया तो उन्हें जवाब भी देना पड़ा और फीस वृद्धि कम कर दी गयी। छात्र नेता होने से ये फायदा होता है। इसी तरह कई मामले होते हैं, जिसे छात्र नेता ही दूर करा सकता है, इसलिये मनबढ़ प्रशासन को राईट टाईम करने के लिये छात्र नेताओं का होना बहुत जरुरी है।
सवाल: जब आप चुनाव लड़ रहे थे, उस वक्त दिल्ली विश्वविद्यालय में एक नारा सुपर हिट रहा ‘एक ही फैसला,सचीन बैसला’…। ये आईडिया किसका था ?
जवाब : हंसते हुये…ये सब साथियों के साथ बैठकर लिया गया निर्णय है। आपने मोदी जी का नारा देखा होगा…अबकी बार मोदी सरकार…। चुनाव से पूर्व तय किया गया कि छोटा ही सही,ऐसा नारा तैयार किया जाये जो छात्रों की जुबान पर आ जाये। तभी बना ‘एक ही फैसला,सचीन बैसला’…।
सवाल: छात्र राजनीति तो हो गयी अब आगे की क्या प्लानिंग है?
जवाब: भईया,यहां तक का सफर संगठन ने तय किया था,अब आगे भी संगठन जो जिम्मेदारी देगा,उसे पूरा करुंगा।
सवाल: छात्रों के लिये क्या संदेश देना चाहेंगे ?
जवाब: मेरा मानना है कि आप कोई डिग्री ले लो,किसी भी सब्जेक्ट से पढ़ाई कर लो लेकिन जब तक अपने मां-बाप का सम्मान नहीं करोगे,सब व्यर्थ है। यदि आप पढ़ाई में कमजोर हैं लेकिन आपके मां-बाप आपसे संतुष्टï हैं तो आप दुनिया जीत लेंगे। क्योंकि जब ये लोग गर्व से कहते हैं ना कि फलां मेरा बेटा है,उस वक्त जुबां से दुआएं ही निकलती है….