जन्म – 14 अक्टूबर सन् 1884 ई. दिल्ली
देहावसान – 4 मार्च सन् 1939 ई. फ़िलाडेल्फ़िया
लखनऊ। लाला हरदयाल जी ने ‘ग़दर पार्टी’ की स्थापना की थी। विदेशों में भटकते हुए अनेक कष्ट सहकर लाला हरदयाल जी ने देशभक्तों को भारत की आज़ादी के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित किया। लाला हरदयाल ने दिल्ली और लाहौर में उच्च शिक्षा प्राप्त की। देशभक्ति की भावना उनके अन्दर छात्र जीवन से ही भरी थी। मास्टर अमीर चन्द, भाई बाल मुकुन्द आदि के साथ उन्होंने दिल्ली में भी युवकों के एक दल का गठन किया था। लाहौर में उनके दल में लाला लाजपत राय जैसे युवक सम्मिलित थे। एम.ए. की परीक्षा में सम्मानपूर्ण स्थान पाने के कारण उन्हें पंजाब सरकार की छात्रवृत्ति मिली और वे अध्ययन के लिए लंदन चले गए। लंदन में लाला हरदयाल जी भाई परमानन्द, श्याम कृष्ण वर्मा आदि के सम्पर्क में आए। उन्हें अंग्रेज़ सरकार की छात्रवृत्ति पर शिक्षा प्राप्त करना स्वीकार नहीं था। उन्होंने श्याम कृष्ण वर्मा के सहयोग से ‘पॉलिटिकल मिशनरी’ नाम की एक संस्था बनाई।
इसके द्वारा भारतीय विद्यार्थियों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का प्रयत्न करते रहे। दो वर्ष उन्होंने लंदन के सेंट जोंस कॉलेज में बिताए और फिर भारत वापस आ गए। हरदयाल जी अपनी ससुराल पटियाला, दिल्ली होते हुए लाहौर पहुँचे और ‘पंजाब’ नामक अंग्रेज़ी पत्र के सम्पादक बन गए। उनका प्रभाव बढ़ता देखकर सरकारी हल्कों में जब उनकी गिरफ़्तारी की चर्चा होने लगी तो लाला लाजपत राय ने आग्रह करके उन्हें विदेश भेज दिया। वे पेरिस पहुँचे, श्यामकृष्ण वर्मा और भीकाजी कामा वहाँ पहले से ही थे।
लाला हरदयाल ने वहाँ जाकर ‘वन्दे मातरम्’1 और ‘तलवार’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। 1910 ई. में हरदयाल सेनफ़्राँसिस्को, अमेरिका पहुँचे। वहाँ उन्होंने भारत से गए मज़दूरों को संगठित किया। ‘ग़दर’ नामक पत्र निकाला. ग़दर पार्टी की स्थापना 25 जून, 1913 ई. में की गई थी। पार्टी का जन्म अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के ‘एस्टोरिया’ में हुआ था।
“अंग्रेजी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से हुआ।”
ग़दर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष सोहन सिंह भकना थे। इसके अतिरिक्त केसर सिंह थथगढ उपाध्यक्ष, लाला हरदयाल महामंत्री, लाला ठाकुरदास धुरी संयुक्त सचिव और पण्डित कांशीराम मदरोली कोषाध्यक्ष थे। ‘ग़दर’ नामक पत्र के आधार पर ही पार्टी का नाम भी ‘ग़दर पार्टी’ रखा गया था।
“ग़दर’ पत्र ने संसार का ध्यान भारत में अंग्रेज़ों के द्वारा किए जा रहे अत्याचार की ओर दिलाया।”
नई पार्टी की कनाडा,चीन, जापान आदि में शाखाएँ खोली गईं। प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ होने पर लाला हरदयाल ने भारत में सशस्त्र क्रान्ति को प्रोत्साहित करने के लिए क़दम उठाए। जून 1915 ई. में जर्मनी से दो जहाज़ों में भरकर बन्दूक़ें बंगाल भेजी गईं, परन्तु मुखबिरों के सूचना पर दोनों जहाज़ जब्त कर लिए गए।
हरदयाल ने भारत का पक्ष प्रचार करने के लिए स्विट्ज़रलैण्ड, तुर्की आदि देशों की भी यात्रा की। जर्मनी में उन्हें कुछ समय तक नज़रबन्द कर लिया गया था। वहाँ से वे स्वीडन चले गए, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के 15 वर्ष बिताए। 1939 ई. में वे भारत आने के लिए उत्सुक थे। उन्होंने अपनी पुत्री का मुँह भी नहीं देखा था, जो उनके भारत छोड़ने के बाद पैदा हुई थी, लेकिन यह न हो सका, वे अपनी पुत्री को एक बार भी नहीं देख सके। भारत में उनके आवास की व्यवस्था हो चुकी थी, पर देश की आज़ादी का यह फ़कीर 4 मार्च, 1939 ई. को कुर्सी पर पर बैठे बैठे विदेश में ही सदा के लिए पंचतत्त्व में विलीन हो गया।