किन चेहरों के दम पर होगा प्रचार
पांच साल में बढ़े सात करोड़ से ज्यादा मतदाता
ब्यूरो, दिल्ली। चुनाव आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है। मतदान सात चरण में होने हैं। लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तारीखों का भी एलान हो गया है। 8 फरवरी को जारी मतदाता सूची के मुताबिक इस चुनाव में 96.88 करोड़ मतदाता हिस्सेदारी करेंगे। इनमें 49.72 करोड़ पुरुष, 47.15 करोड़ महिला और 48 हजार से ज्यादा अन्य मतदाता हैं। मतदाताओं का लिंगानुपात 948 है, यानी, हजार पुरुष मतदाताओं पर 948 महिला मतदाता हैं। कुल आबादी में मतदाताओं का प्रतिशत 66.76% है। 1.84 करोड़ मतदाता ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। वहीं, 20 से 29 साल के मतदाताओं की संख्या 19.74 करोड़ है। 1.85 करोड़ मतदाताओं की उम्र 80 साल से ज्यादा है, इनमें 2,18,791 मतदाता ऐसे हैं जो 100 की उम्र पार कर चुके हैं। 2019 के मुकबाले मतदाताओं की संख्या में छह फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 89.6 करोड़ मतदाता थे। पांच साल में मतदाताओं की संख्या में 7.28 करोड़ का इजाफा हुआ है। पुरुष मतदाता 46.5 करोड़ से बढ़कर 49.72 हो गए हैं। यानी पुरुष मतदाताओं की संख्या में 3.22 करोड़ का इजाफा हुआ है। वहीं, महिला मतदाताओं की संख्या 43.1 करोड़ से बढ़कर 47.15 करोड़ हो गई है। पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं संख्या में ज्यादा इजाफा हुआ है। पांच साल में 4.05 करोड़ महिला मतदाता बढ़ीं हैं।
चुनाव के बड़े मुद्दे
राम मंदिर: इस चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा छाया रहेगा। एक तरफ भाजपा भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का श्रेय ले रही है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद लगातार भाजपा के नेता से लेकर मंत्री तक लगातार अयोध्या के दौरे कर रहे हैं। भाजपा के नेता अलग-अलग इलाकों से श्रद्धालुओं को दर्शन कराने के लिए ले जा रहे हैं। इस मुद्दे का भाजपा को लाभ नहीं मिले इसकी पूरी कोशिश विपक्ष की होगी। यही वजह है कभी कोई नेता मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल उठाता है तो कभी कोई नेता कहता है कि अब अयोध्या जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या घटकर कुछ हजार में रह गई है।
विकास: सत्ताधारी भाजपा पिछले दस साल में हुए विकास के मुद्दे को भी चुनाव के दौरान जमकर उठाएगी। बीते दस साल में बिजली, सड़क, पानी से लेकर तकनीक तक के क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियों को चुनाव के दौरान जमकर प्रचारित करेगी। वहीं, विपक्ष विकास के दावों को खोखला बताने के लिए महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाएगा।
परिवारवाद: चुनाव तारीखों की घोषणा से पहले ही राजनीतिक दलों के बीच परिवारवाद के मुद्दे पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। एक तरफ भाजपा विपक्ष को परिवारवादी पार्टियों का गठबंधन बता रही है। दूसरी ओर विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के परिवार पर सवाल उठा दिया। हालांकि, भाजपा ने इसे भी अपने पक्ष में करने के लिए ‘मोदी का परिवार’ नाम से सोशल मीडिया कैंपेन तक शुरू कर दिया।
भ्रष्टाचार: भाजपा विपक्ष को इस मुद्दे पर पूरे चुनाव के दौरान घेरती नजर आएगी। चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के घरों पर छापे में मिली नोटो की गड्डियों का जिक्र खुद प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में करते रहे हैं। वहीं, विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि छापे सिर्फ विपक्ष के नेताओं पर पड़ते हैं। जो भ्रष्टाचारी भाजपा में शामिल हो जाता है उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। चुनाव के दौरान इस तरह के नेताओं के नाम विपक्ष की ओर से भी लगातार लिए जाएंगे।
बेरोजगारी: बेरोजगारी का मुद्दा भी विपक्ष चुनाव के दौरान जमकर उठा सकता है। भर्ती परिक्षाओं में होने वाले पेपर लीक का मुद्दा भी चुनाव के दौरान विपक्ष द्वारा उठाया जाएगा। वहीं, सत्ता पक्ष पेपर लीक के बाद सरकारों द्वारा की गई कार्रवाई को गिनाएगा।
जातिगत जनगणना: राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव तक विपक्ष के ज्यादातर नेता जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठाते रहे हैं। चुनाव के दौरान भी विपक्ष इस मुद्दे पर सत्ताधारी भाजपा को घेरने की कोशिश करेगा। वहीं, भाजपा इस मुद्दे पर लगातार कहती रही है कि देश में केवल चार जातियां होती हैं। ये जातियां गरीब, किसान, महिला और युवा हैं। चुनाव के दौरान भी कुछ इसी तरह के दावे प्रतिदावे किए जाएंगे