लोकसभा चुनाव : यूपी होमगार्ड विभाग के भ्रष्ट डीआईजी के हवाले उत्तराखण्ड का चुनाव ?
डीआईजी संजीव शुक्ला के कारनामे
1: इनकी सत्यनिष्ठा संदिग्ध है.
2: तीन वर्ष से अधिक समय से वार्षिक प्रवृष्टि खराब है.
3: कमांडेंट,कानपुर रहने के दौरान चुनाव में बाराबंकी भेजे गये जवानों से दो दिन का पैसा हड़पने का आरोप.
4: पूर्व विभागीय मंत्री,वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ फर्जी शिकायती पत्र भेजने का आरोप.
5: आपदा दल के कर्मचारी पर पिस्टल लेकर दौड़ाने का गंभीर आरोप.
शेखर यादव
। चुनाव आयोग की ‘सख्ती’ के बावजूद शासन ने एक ऐसे डीआईजी को उत्तराखण्ड चुनाव में ‘स्टेट प्रभारी’ बनाकर भेजा है जिसकी सत्यनिष्ठा हमेशा से संदिग्ध रही है…जिस पर कानपुर में कमांडेंट रहने के दौरान चुनावी ड्यूटी में भेजे जाने वाले होमगार्डों का पैसा हड़पने का गंभीर आरोप हो… जिस अधिकारी को 3 वर्ष से अधिक समय से वार्षिक प्रवृष्टि खराब मिल रही हो…। इतना ही नहीं, जो विभाग से ‘स्क्रीन आउट’ किये जाने योग्य माना जाये, जिस पर पूर्व के विभागीय मंत्री, वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने का गंभीर आरोप हो,जो आपदा दल वालों पर पिस्टल लेकर दौड़ जाये,जिसकी वजह से अन्य अधिकारियों के भी सरकारी पिस्टल जमा करा लिया जाये…। क्या ऐसे अफसर को उत्तराखण्ड चुनाव का स्टेट हेड बनाकर भेजा जाना चाहिये ? वो अधिकारी कोई और नहीं, होमगार्ड विभाग में आगरा परिक्षेत्र के डीआईजी संजीव शुक्ला हैं। होमगार्ड विभाग के डीआईजी, आगरा परिक्षेत्र संजीव शुक्ला को उत्तराखण्ड का ‘स्टेट हेड’ बनाकर भेजना विभाग के सभी अधिकारियों को रास नहीं आ रहा है। वजह साफ है क्योंकि ये चुनाव से जुड़ा मसला है, जो हमारे देश को ‘भावी प्रधानमंत्री’ चुनकर देने जा रहा है। ‘सैल्यूट’ करते हैं ऐसे अधिकारियों को जिन्हें कोई लेना-देना नहीं कि कौन अधिकारी वर्दी पहनकर लंबे समय से क्या गुल खिला रहा है लेेकिन जब देश की बात आयी तो सभी ने अपनी खामोशी तोड़ ‘द संडे व्यूज़’ तक अपनी बात पहुंचाने की हिम्मत जुटायी। देश को सशक्त प्रधानमंत्री दिलाने की मुहिम में ‘द संडे व्यूज़’ होमगार्ड विभाग के अधिकारियों के साथ है और हमारी टीम के साथी ‘कलम’ से ‘सच’ लिखने की ही कोशिश करते रहेंगे, भले ही शासन ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई करे या ‘मौन धारण’ करे…।
शासन की नियमावली की बात करें तो 50 वर्ष से अधिक उम्र होने पर अधिकारियों व कर्मचारियों की ‘स्क्रीनिंग’ होती है, इस दौरान जिन अधिकारियों व कर्मचारियों को 5 वर्ष से खराब प्रवृष्टियां मिली हो तो उसे ‘बर्खास्त’ यानि ‘स्क्रीनिंग’ कर विभाग से बाहर कर दिया जाता है। शासन स्तर पर फाईलों में नियमावली तो बना दी गयी लेकिन हकीकत कुछ और बयां कर रही है, तभी तो ऐसे डीआईजी को खुद शासन ने ही उत्तराखण्ड चुनाव में ‘स्टेट हेड’ बनाकर भेज दिया और साहेब वहां जाकर भी ‘गुलदस्ता-गुलदस्ता’ खेल रहे हैं। सवाल यह है कि क्या विभाग के पास कोई और डीआईजी या सीनियर ऑफिसर नहीं है,जिसे उत्तराखण्ड चुनाव का स्टेट हेड बनाकर भेजा जाये ? चौंकाने वाली बात यह है कि आगरा से बीओ सुरेश तिवारी को 1355 होमगार्ड लेकर शामली चुनाव कराने गया लेकिन आगरा में तैनात इंस्पेक्टर सुरेश कुमार चक और डीटीसी,आगरा में तैनात इंस्पेक्टर दिलीप कुमार फौजदार को चुनावी डयूटी में क्यों नहीं भेजा ? दो इंस्पेक्टर होने के बावजूद एक अदने से बीओ के हवाले 1355 जवानों को चुनाव में भेजना सही है ? बरेली, डीटीसी के इंस्पेक्टर धीरज राणा और ललित मोहन उपाध्याय को क्यों नहीं चुनावी डयूटी पर लगाया गया ? सीधी बात करें तो इस विभाग में जिसने दिखाया लक्ष्मी की माया,उसे हर हाल में बख्श दिया जाता है फिर चाहें वो अपराधियों को बहाल करे या फिर…।
उत्तराखण्ड चुनाव में यूपी के तेज-तर्रार अधिकारी पहुंच गये हैं। बता दें कि हमेशा से विवादों में रहने वाले डीआईजी, आगरा परिक्षेत्र संजीव शुक्ला होमगार्ड के मूवमेंट के समय कहीं नहीं रहे, जबकि उन्होंने स्वयं सभी जिला कमांडेंट को निर्देशित किया था कि जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर उनसे झंड़ी दिखाकर ही होमगार्ड को रवाना कराया जाये। मुख्यालय पर तैनात अधिकारियों,कर्मचारियों ने बताया कि 14 अप्रैल को शुक्ला जी लखनऊ में अपने आवास विक्रांत खंड गोमती नगर में रहे। 15 अप्रैल की सुबह 9 बजे लखनऊ से चले, शाहजहांपुर के कमांडेंट रमेश कुमार से चाय- नाश्ता और…लेते हुये बरेली संतोष कुमार के पास पहुंच कर लंच लिये। अधिकारियों ने बताया कि बरेली, बदायूं के कमांडेंट आर. के. पाठक से बड़ा … लिये।
अधिकारियों ने बताया कि डीटीसी, बरेली के निरीक्षक धीरज राणा और ललित मोहन उपाध्याय से निर्वाचन से छोडऩे के एवज में मोटी रकम लिये, फिर मुरादाबाद पहुंचकर रात्रि विश्राम किये। मुरादाबाद अभिलेश नारायण सिंह और संभल के कमांडेंट ज्ञान प्रकाश से लंबा हिसाब- किताब किया गया। खा-पीकर रात रात भर चौडिय़ा कर सोये। 16 अप्रैल की सुबह हरिद्वार में फोटो सेशन हुआ और सायंकाल देहरादून में फोटो बाजी हुयी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या होमगार्ड विभाग में कोई और अधिकारी नहीं है, जिसे चुनाव के दौरान प्रभारी बनाकर बाहर भेजा जाये? आखिर क्यों ऐसे भ्रष्ट, दागी अधिकारी को निर्वाचन जैसे महत्वपूर्ण समय में लगाया जाता है,जिस अधिकारी का स्थायी रुप से इंक्रीमेंट रूका हो, जिसकी वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने का एक बार आदेश जारी किया गया हो, जिसकी सत्यनिष्ठा सदा से संदिग्ध रही हो, जो निर्वाचन में होमगार्डों का पैसा हड़पने का दोषी रहा हो,जब ये कानपुर के कमांडेंट थे तो चुनावी ड्यूटी में बाराबंकी जवानों को भेजा था। इन्होंने होमगार्डों का दो दिन का पैसा काट लिया था जिस पर जमकर बवाल हुआ था लेकिन मामला दबा दिया गया। तीन वर्ष से जिसकी वार्षिक प्रवृष्टि खराब मिन रही हो, जो विभाग से स्क्रीन आउट किए जाने योग्य हो,जो विभाग के बड़े अधिकारियों की शिकायत करने का आदी हो, जो राज्य आपदा दल वालों को पिस्टल से मारने के लिए दौड़े, जिसके पिस्टल बाजी के कारण अन्य अधिकारियों की भी पिस्टल जमा करा ली जाये…। आखिर ऐसे अधिकारी में ऐसे डीआईजी में कौन सा नगीना जड़ा है जिसे देख शासन के अफसरानों ने आंख मूंदकर उत्तराखण्ड का स्टेट हेड बनाकर भेज दिया ?
इस बारे में जब डीआईजी संजीव शुक्ला से संपर्क करने की कोशिश की गयी तो कॉल नहीं मिला।