अयोध्या। मिल्कीपुर उपचुनाव के महासमर का शोर बुधवार को हुए मतदान के बाद अब थम सा गया है। यहां की जनता किसे अपना रहनुमा चुनेगी, इसका फैसला आठ फरवरी को होगा। हालांकि चुनाव परिणामों का ऊंट चाहे जिस करवट बैठे, हर हाल में मिल्कीपुर की जनता नए कीर्तिमान गढ़ेगी।
मिल्कीपुर में होने वाले विधानसभा चुनाव लगभग हर बार चर्चा में रहता है। 1967 से ही इस सीट पर हुए चुनाव में भाकपा से हैट्रिक लगाकर मित्रसेन यादव ने 70 से 90 के दशक में रिकॉर्ड बनाए थे। छह बार इस सीट पर समाजवादी परचम लहराकर सपा ने एक और रिकॉर्ड बनाया। 17 साल पहले पिता के सांसद रहते हुए इस सीट से बेटा विधायक बना तो एक और रिकॉर्ड बना। वहीं लगभग हर उपचुनाव में मात खाते हुए भाजपा का भी एक रिकॉर्ड रहा है।
राम मंदिर निर्माण के बाद भी फैजाबाद लोकसभा सीट हारने के बाद हुआ यह उपचुनाव शुरू से ही चर्चा में रहा। बुधवार को मतदान के बाद यहां चुनावी शोर थम गया, जिसके परिणाम को मिल्कीपुर समेत प्रदेश व देश को भी इंतजार है। वहीं यहां की जनता किसी भी सूरत में एक बार फिर नये कीर्तिमान गढ़ने की तैयारी में है।
जी हां, यहां का राजनीतिक परिदृश्य कुछ ऐसा ही बना है। यदि भाजपा के सिर पर जीत का ताज सजता है तो पहली बार किसी उपचुनाव में भाजपा का झंडा गड़ने का कीर्तिमान बनेगा। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार का भी बदला लेने का रिकॉर्ड भी बनेगा। इसके अलावा अब तक हुए चुनावों में तीन बार अपने पाले में सीट लाने, पहली बार चुनाव लड़ने पर विधायक बनने समेत कई अन्य रिकॉर्ड भी भाजपा के नाम होंगे।
वहीं, सपा जीतती है तो पिता के सांसद रहते बेटे के विधायक बनने के 17 साल पुराना रिकॉर्ड टूटेगा। अब तक के हुए सभी उपचुनाव जीतने, अब तक हुए सभी चुनावों में सातवीं बार जीत का सेहरा बांधने, पहली ही बार में विधानसभा पहुंचने, लोकसभा चुनाव के बाद मिल्कीपुर में भी वर्चस्व कायम रखने, सत्ता के खिलाफ चुनाव जीतने समेत कई रिकॉर्ड भी सपा के खाते में होंगे।