विजय विक्रम सिंह ( लेखक- सदस्य पूर्वांचल विकास बोर्ड उत्तर प्रदेश सरकार हैं)
लखनऊ। 14 मार्च 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास के बाहरी हिस्से में आग लग गई। उस समय जस्टिस वर्मा शहर में नहीं थे। जब फायर ब्रिगेड कर्मचारी और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, तो उन्हें स्टोररूम में आंशिक रूप से जली हुई नकदी के ढेर मिला। इस घटना ने कानूनी हलकों में हलचल मचा दी जिसके बाद सीजेआई ने घटना की विस्तृत जांच करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। जस्टिस वर्मा ने आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि उन्हें बदनाम किया जा रहा है। मि लार्ड यही तो हमारे देश का बेचारा नेता भी कहता है, लेकिन सब उसकी धज्जियां उड़ाने लग जाते हैं। धरना-प्रदर्शन, विधानसभा, लोक सभा, सड़क से सदन तक विरोध होता है, और जब तक वो जेल नहीं पहुंच जाता तब तक उसकी खैर नहीं होती। एक अधिकारी अगर नेता के मनमुताबिक काम न करे तो नेता लोग झूठे मनगढ़ंत आरोप लगाकर उसे हटवा देते है लेकिन कोई उसकी नहीं सुनता, लेकिन हमारे सुप्रीम कोर्ट में कितनी अच्छी व्यवस्था है कि न्यायमूर्ति के साथ भी बहुत सुंदर न्याय किया गया हैं, हालांकि अभी तक न्याय मूर्ति महोदय के ऊपर 2 तीन आरोप ही लगे हैं, ये कोई बड़े आरोप नहीं हैं। हमारे सिस्टम में तो जब तक ठीक – ठाक लूट का पैसा इकठ्ठा न कर लो आप प्रधान नहीं बन पाओगे… पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली याचिका को “समय से पहले” बताते हुए खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि तीन सदस्यीय पैनल मामले की जांच कर रहा है और जांच पूरी होने के बाद एफआईआर दर्ज करने पर फैसला लिया जाएगा। जज साहब यही व्यवस्था हमारे देश के आम लोगों के लिए हो जाती तो बड़ी कृपा होती, कम से कम विचाराधीन कैदी के रूप में सनी देओल का डायलॉग तो न सही होता कि तारीख पे तारीख कब तक मिलती रहेगी जज साहब…सही बता रहा हूँ कालिख पुत जाती सनी देओल के मुंह में फिर गदर एक प्रेम कथा बना ही न पाते…।

खैर… याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 20 मार्च को इस घोटाले के सामने आने के बाद कोई गिरफ्तारी या जब्ती नहीं की गई भाई गिरफ्तारी कैसे होगी सब जब जल गया सब खाक में मिल गया तो फ़िर गिरफ्तारी कैसी……. जस्टिस वर्मा का दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर हुआ है, ये वहीं कॉलेजियम व्यवस्था हैं जिसने सुप्रीम कोर्ट ,हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के चयन को एकाधिकार प्राप्त हैं जो संविधान और लोकतन्त्र की मूल भावना के खिलाफ है कि राजा का बेटा राजा नहीं होगा, क्योंकि अब लोकतंत्र हैं, बिना चुनाव जीते विधायक का बेटा खुद से विधायक नहीं होगा, बिना परिक्षा पास किए आई.ए.एस का बेटा आई.एस. नहीं बनेगा लेकिन जज का बेटा जज होगा, और इसी कॉलेजियम की व्यवस्था का परिणाम है कि देश के बहुत सारे जजों की तीन तीन पीढ़ियां जज बनी हैं और आगे भी बनेगी। ये न्यायमूर्ति आंखों में पट्टी बांधे न्याय की देवी के सामने बैठ के तथाकथित न्याय कर रहे है और अब तो न्याय की देवी के आंख की पट्टी भी खुलवा दी गई हैं, अब आप देखिए खुला खेल फर्रुखाबादी … पूज्य देवी जी जो आपकी तराजू हैं, … वैसे जब हम मंदिर में कुछ चढ़ाते हैं तो मैने देखा है कि मूर्ति कुछ ग्रहण नहीं करती है,थोड़ा सा लडडू लेकर बाकी वापस कर देते हैं, उसी तरह ये भी न्यायमूर्ति हैं, तो मुझे नहीं लगता जो मिलता है उसमें से कुछ लेते नहीं होंगे, अगर लेते तो नोटो की गड्डी पड़ी क्यों रहती, उसे ठिकाने लगा देते मी लार्ड । आप सही कह रहे है ये आपको बदनाम करने की साजिश है।हालांकि इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने इस फैसले का विरोध करते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी थी, जिसे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के आश्वासन के बाद फिलहाल रोक दिया…। बार एसोसिएशन का कहना है कि वे भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे किसी भी न्यायाधीश को स्वीकार नहीं करेंगे।
सही बात है, वकील साहबान लोग आप लोग इनसे तो सही ही हैं, आप लोगों की आत्मा जगी इसके लिए बधाई हैं, खैर मैंने अभी किसी सुप्रीम कोर्ट में वकील लोग कैसे कार्य करते हैं नहीं देखा है, लेकिन अपने यहां तहसील, जिले और हाइकोर्ट में देखे हैं। गजब का भाई चारा होता है एक खीरे में चार- पांच वकील आराम से खा लेते हैं,100 ग्राम भुजा में आराम से 10 वकीलों को भुजा चबाते हुए देखा है। और वकील साहब लोग जब अपने मुवक्किल को मुकदमे के बारे में बतियाते हुए किसी टीन सेड के नीचे चाय समोसे खाने और पान खाने के लिए आते हैं तो बस यही बिल भरवा देते है, और पान का बीड़ा मुंह में दबाते हुए कहते है, अरे चार पांच रजनी गंधा ले लेना उसमें भी कुछ वकील साहब तो सिर्फ खैनी से ही काम चला लेते हैं, शायद उनके पास किसी तरह जीवन यापन करने वाले आते हैं, इसलिए वकील साहब भी अपना पेट भर कर संतुष्ट हो जाते है,लेकिन आज तक मेरी तहसील में किसी वकील के घर नोट का अंबार नही मिला है।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने शनिवार को एक निजी समारोह में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। हालांकि जस्टिस वर्मा को उनके खिलाफ आंतरिक जांच जारी रहने तक कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठता में जस्टिस वर्मा छठे स्थान पर हैं। अमूमन जहां जजों की शपथ सार्वजनिक समारोह में होती है, वहीं जस्टिस वर्मा ने सीजेआई की अनुमति से अपने चेंबर में ही शपथ ली।
थोड़ा बहुत पढ़ा-लिखा हूं और थोड़ा बहुत इधर- उधर से सुनता हूं तो पता है कि न्यायिक कार्य के लिए ही शपथ दिलाई जाती हैं प्रशासनिक कार्य के लिए नहीं, लेकिन मैं पूरी तरह आपके साथ हूँ, शपथ तो इस देश में कितने लोग खाते हैं लेकिन कितना लूटते है…। हम बच्चे भी बचपन में विद्या कसम, राम कसम, गंगा किरिया, झड़ूले बाबा की कसम, पहलवान वीर बाबा की कसम खाते थे और गिल्ली – डंडा में बेइमानी मिट्ठूग्राम में बेईमानी, गेनतड़ी में बेईमानी करते थे। एक्चुली हम लोग कसम उतारने का तरीका जानते थे, कसम भसम मंगर के दिन खतम, बस यही बोल के फिर शुरू हो जाते थे, आप भी यही याद करके शुरू हो जाना…। बगल में वसूली भाई (पेशकार साहब) बैठे ही हैं, आप को कुछ बोलना थोड़ी हैं।
जज साहब अंत में यही कहूंगा कि मैं नहीं जानता कि कोर्ट की कॉलेजियम व्यवस्था का ये निर्णय सही था या गलत था लेकिन जिस समय जस्टिस वर्मा शपथ ले रहे थे उस समय न्याय की देवी की आंख में आंसू जरूर आए होंगे, इतना जरूर जानता हूँ कि आप के इस निर्णय ने न्याय पालिका पर देश के करोड़ों जनमानस का जो अटूट विश्वास है, उसे जरूर नुकसान पहुंचाया है। उसकी भरपाई जरूर होनी चाहिए…। आम जनमानस की आखिरी उम्मीद होता है न्यायालय, अगर घर के बड़े गलत काम में लिप्त हो जाते हैं तो उस घर के बच्चे आवारा हो जाते हैं…। ये जो भारत माता का घर रूपी मंदिर है इस घर के आप लोग पुरखा हो आप से यही प्रार्थना हैं इतने ऊंचे पदों पर पहुंचने पर तो मन को साधिए…। लोकतंत्र की आत्मा आप में बसती हैं।