इस तमाशे को बंद करें, चुनाव आयोग पर विपक्षी नेताओं और राहुल गांधी की निराधार आपत्तियां


शंभू प्रसाद

नई दिल्ली। यह तमाशा तभी बंद हो सकता है जब सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप करे। उसे करना भी चाहिये क्योंकि बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन का पूरा मामला उसके संज्ञान में है और वह सत्यापन को सही मानकर उसकी सुनवाई भी कर रहा है। अब तो चुनाव आयोग ने यह भी कह दिया कि बिना सूचना और कारण के किसी का नाम मतदाता सूची से नहीं हटेगा। चुनाव आयोग की ओर से बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर विपक्षी नेताओं और विशेष रूप से राहुल गांधी की निराधार आपत्तियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अब तो वे चुनाव आयोग पर भाजपा के लिये धांधली कराने के नये सनसनीखेज आरोप सामने लेकर आ गये हैं। उन्होंने अपने इन आरोपों को एटम बम की संज्ञा दी, लेकिन वैसा कुछ धमाका तो हुआ नहीं, जैसा वे दावा कर रहे थे। जहां चुनाव आयोग चुनावों में धांधली के राहुल गांधी के आरोपों को झूठ बताने में लगा हुआ है, वहीं राहुल एवं कुछ अन्य विपक्षी नेता आयोग को गलत बताने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुये हैं। यह संभवत: पहली बार है कि संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग के खिलाफ विपक्ष ने आसमान सिर पर उठा रखा है।

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस काम में नेता विपक्ष राहुल गांधी सबसे आगे हैं। उनकी ओर से बेंगलुरु लोकसभा चुनाव में धांधली के जो तथाकथित प्रमाण दिये गये, उन्हें चुनाव आयोग ने न केवल सिरे से खारिज किया, बल्कि राहुल गांधी से यह भी मांग की कि वे अपने दावे के पक्ष में या तो शपथपत्र दें अथवा अपने झूठे आरोपों के लिये देश से माफ ी मांगें। चुनाव आयोग ने उन्हें चेतावनी भी दी है और कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी ने तो एक महिला के दो बार वोट डालने के उनके दावे को चुनौती देते हुये उनसे प्रमाण भी मांगे हैं। इसमें संदेह है कि राहुल गांधी अपने दावे के पक्ष में कोई प्रमाण देने का काम करेंगे। उन्होंने अपने दावों के पक्ष में यह कहते हुये शपथपत्र देने से इंकार किया कि उन्होंने संसद में संविधान की शपथ ले रखी है। यदि ऐसा है तो राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट से क्षमा याचना करते समय उन्होंने हलफ नामा क्यों दिया था? क्या इसलिये कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की ओर से तो ठोस कार्रवाई किये जाने का भय था, लेकिन चुनाव आयोग की किसी कार्रवाई की उन्हें तनिक भी परवाह नहीं? इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिये कि चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का जो प्रारूप जारी किया है, उस पर नौ दिन बाद भी किसी राजनीतिक दल ने अपनी कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई है। स्पष्ट है कि विपक्षी दल जनता को बरगलाने के लिये झूठे आरोपों के सहारे चुनाव आयोग को बदनाम करने में लगे हुये हैं। यह तमाशा तभी बंद हो सकता है जब सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप करे। उसे करना भी चाहिये क्योंकि बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन का पूरा मामला उसके संज्ञान में है और वह सत्यापन को सही मानकर उसकी सुनवाई भी कर रहा है। अब तो चुनाव आयोग ने यह भी कह दिया कि बिना सूचना और कारण के किसी का नाम मतदाता सूची से नहीं हटेगा। क्या यह उचित नहीं होगा कि अब सुप्रीम कोर्ट अपनी सक्रियता दिखाये और चुनाव आयोग एवं विपक्षी दलोंए खासकर राहुल गांधी को आवश्यक निर्देश दे? चुनाव आयोग की ओर से बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर विपक्षी नेताओं और विशेष रूप से राहुल गांधी की निराधार आपत्तियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अब तो वे चुनाव आयोग पर भाजपा के लिए धांधली कराने के नये सनसनीखेज आरोप सामने लेकर आ गये हैं। उन्होंने अपने इन आरोपों को एटम बम की संज्ञा दी, लेकिन वैसा कुछ धमाका तो हुआ नहीं, जैसा वे दावा कर रहे थे। जहां चुनाव आयोग चुनावों में धांधली के राहुल गांधी के आरोपों को झूठ बताने में लगा हुआ है, वहीं राहुल एवं कुछ अन्य विपक्षी नेता आयोग को गलत बताने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुये हैं।


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