जन्म दिवस पर विशेष- संवेदनशील एवं कर्मयोगी व्यक्तित्व पं. वृंदावन मिश्र


  दिव्या श्री.

लेखिका,संपादक पं. वृंदावन मिश्र की पोती हैं

श्री मिश्र बलिया से हाई स्कूल की परीक्षा पास कर कलकत्ता चले गये। कलकत्ता से इंटरमीडिएट परीक्षा उच्च कोटी से प्राप्त कर चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई शुरु कर दी। दो वर्ष तक शिक्षा नियमित चलती रही परन्तु नियति के चक्र का निर्देश कुछ और ही था। आजादी का आंदोलन आगे बढ़ रहा था। कलकत्ता में लोकमान्य तिलक का नारा स्वतंत्रता हमारा जन्मशिद्ध अधिकार है,ने पं.वृंदावन मिश्र को आंदोलित कर दिया। बीज तो पहले से ही था,क्योंकि पं.मिश्र का परिवार 1857 के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की हर संभव मदद करने के आरोप पर पहले ही ब्रिटिश सरकार का कोपभाजन बन चुका था,जिसमें इस परिवार की जमींदारी का एक भाग यानि 800 बीघा जमीन 1857 के बाद ही ब्रिटिश सरकार द्वारा डुमराव के राजा को दे दी गयी थी

उस दौर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को उत्तर प्रदेश सरकार ने नैनीताल के तराई इलाके में बड़े-बड़े भूखण्ड आवंटित किये। पं. मिश्र को भी 30 एकड़ जमीन आवंटित की गयी लेकिन उन्होंने जमीन लेने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। जानकारों को मालूम होगा कि उत्तर प्रदेश में स्व.चरण सिंह के नेतृत्व में राजस्व मंत्री रहते हुये भूमिधर कानून लागू हुआ था। गांव में ऐसे 70 प्रतिशत भूमिहीन किसान थें जो सिकमी के रुप में खेती करते थे। भूमिधर कानून लागू होने के बाद से सारे भूमिहीन जो लगान देकर खेती करते थे,भूमिधर हो गये या मालिक बन गये। उस स्थिति में काश्तकारों एवं भूमिहीन किसानों के बीच संघर्ष तेज हो गया था। हजारों दीवानी एवं फौजदारी के मुकदमें शुरु हो गये। फलत: काश्तकारों के एक वर्ग ने द्वेषवश अनेकों फौजदारी के मुकदमें श्री मिश्र के खिलाफ चलाये। श्री मिश्र कभी अदालत नहीं गये। जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपराधियों की लिस्ट में श्री मिश्र का नाम देखा,पूरे केस को फर्जी बताकर खारिज कर दिया।

श्री मिश्र एक सनातनी परिवार के सदस्य होते हुये भी सामाजिक स्तर पर कोई भेदभाव नहीं रखते थे। जातिगत,सांप्रदायिक द्वेष से रहित श्री मिश्र हमेशा कमजोर एवं असहायों के समर्थक बने रहें। ऐसे व्यक्तित्व का अनुसरण कर समाज को आदर्श रुप दिया जा सकता है।


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