संजय श्रीवास्तव
लखनऊ। फरवरी खत्म होने की कगार पर है। मार्च शुरु होते ही मौसम का ‘मिजाज’ तो बदलता है साथ ही सरकारी विभाग के अफसरों के तेवर में भी ‘गर्मी’, ‘बऊराहट’, ‘छल-कपट’ कर कुर्सी हथियाने की होड़ सी मचने लगती है। मंत्री से लेकर विभागाध्यक्ष की ‘चरण वंदना’, दुलारा ‘बबुआ’ बन ‘यस सर’ करने की कला में माहिर खिलाड़ी मुंहमांगी कीमत अदाकर मनचाही ‘कुर्सी’ पर काबिज हो जाते हैं। अरे भईया, देखियेगा ट्रांसफर सीजन जैसे-जैसे करीब आयेगा जितने महा पाखंड़ी अधिकारी हैं, सब ‘श्रवण कुमार’ बन जायेंगे। सभी के एप्लीकेशन में मां-बाप की सेवा का हवाला इतना होगा कि यदि स्वर्ग में श्रवण कुमार देख लें तो बेचारे शर्मा जाये…।

ट्रासफर सीजन का असर दिखना शुरु हो गया है। अब बात करें होमगार्ड विभाग की तो यहां क्या कहना। एक से एक ‘महापुरोधा’ विराजमान हैं। काम कर राजनीति में रोटियां सेंकने, यस सर,यस सर कह पूरी जिंदगी नौकरी काटने के बाद भी लगे हैं गोटियां बिछाने में। ‘द संडे व्यूज़’ के सीरीज में बताने की कोशिश करुंगा कि इस विभाग के कुछ अफसर होमगार्ड मुख्यालय पर दो कुर्सी से लेकर कमांडेंट ,लखनऊ की कुर्सी पर कितने अधिकारियों ने जोड़-तोड़ शुरु कर दी है। इसी का असर है कि अफसरों ने अपने-अपने मोहरों को सेट कर गोटियां बिछानी शुरु कर दी है।
होमगार्डों के माध्यम से फर्जी शिकायतें कराने से लेकर गंभीर शिकायतों का अंबार शुरु होने जा रहा है लेकिन ‘द संडे व्यूज़’ वही लिखेगा जो सच हो, चाहें कलम की धार में सरकार के मंत्री हों या फिर बड़े अफसर…। मुख्यालय पर तैनात एसएसओ की कुर्सी और कमांडेंट, लखनऊ की कुर्सी गिराने का खेल शुरु हो गया है…। ‘द संडे व्यूज़’ सिलसिलेवार बतायेगा कि कुर्सी हथियाने के लिये अफसरों ने होमगार्डों का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है। वेट एण्ड वाच…