रघु ठाकुर
नई दिल्ली। राहुल गांधी का वास्ता निरंतर विवादों से रहता है। कुछ इसलिये कि एक राजनैतिक समूह उन्हें निरंतर विवादास्पद बनाये रखना चाहता है। इसलिये वे अपने स्वभाव के चलते बहुत दूर तक विवाद पैदा करने से नहीं बच पाते। कई बार ऐसा लगता है कि वे बहुत शीघ्रता में हैं। एक दृष्टिकोण से यह शीघ्रता स्वाभाविक भी है क्योंकि अगले चुनाव तक वे शायद 60 की उम्र तक पहुंच जाएंगे। और अगर वह चूकते हैं तो फि र राजतिलक दूर की कौड़ी बन जायेगा। हालांकि हमारे देश में सत्ता की कोई उम्र नहीं होती, अब तो इस मामले में भारत विश्व गुरु जैसा बन गया है। जिन देशों में पहले राष्ट्राध्यक्षों या प्रधानमंत्री की उम्र सीमा 40-50 के अंदर होती थी ,थरू अमेरिका, रूस आदि अब इन देशों में भी उम्र सीमा 70 के पार पहुंच चुकी है। अभी राहुल जी नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अमेरिका के दौरे पर गये और वहा उन्होंने जो कहा था, जो मुलाकातें की हैं, उनको लेकर देश में काफ़ी चर्चा भी चली और प्रतिक्रियाएं भी हुईं। एक तो उनकी मुलाकात अमेरिका सीनेट की एक महिला मेम्बर से हुई। वे लगातार भारत के खिलाफ बोलती रहीं और वह जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी समर्थक भी हैं।
यह सुविदित तथ्य है कि जम्मू -कश्मीर के अलगाववादी संगठन अमेरिकी तंत्र से समर्थन पाते रहे हैं और उन्हें अमेरिका में रहकर अपने एजेंडा को बढ़ाने के लिये सभी अवसर और सुविधाएं मिलती हैं। लगभग एक दशक पूर्व तो भारत और दुनिया के कई देशों के पत्रकारों को लगभग प्रति वर्ष जम्मू-कश्मीर को अलग करने वाले संगठन निमंत्रण देकर बुलाते थे, उनके खर्च उठाते थे, उन्हें भेंट देेते थे, और उन्हें वापिस जाकर क्या प्रचारित करना है इसके आंकड़े भी देते थे। ऐसा कहा जाता है कि यह अलगाववादी संगठनों के पीछे सीआईए की भूमिका होती है। अमेरिकी राजनयिक का यह तरीका रहा है कि वे समस्याओं को पैदा कराते हैं फिर उनके नाम पर व्यापारिक राजनैतिक सौदे कराते हैं और अगर सौदा न पटे तो फि र संबंधित देश में अस्थिरता पैदा करने में उन संगठनों का इस्तेमाल करते हैं। बहरहाल श्री राहुल गांधी ने भारतीय संसद में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद जो दौरा किया, इसमें उन्होंने जो बातें कहीं हैं, उनमें से कुछ निम्नानुसार हैं- ये बिन्दु भी भारतीय मीडिया में अलग-अलग आये हैं और उनके संपूर्ण भाषण का कोई विवरण एक मुश्त मुझे पढऩे को नहीं मिला।- 1. दैनिक जनसत्ता के 11 सितंबर के अनुसार उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में भारत के लोकतंत्र को पूरी तरह नुकसान पहुंचाया गया। 2. उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि आरक्षण खत्म करने के बारे में कांग्रेस तब सोचेगी जब देश में आरक्षण के लिहाज से निष्पक्षता होगी। देश के वित्तीय आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि आदिवासियों को 100 रुपये में से 10 पैसे, दलितों को 100 रुपये में से 5 पैसे और अन्य पिछड़ा वर्ग को 100 रुपये में से लगभग इतने ही पैसे मिलते हैं। सच्चाई यह है कि उन्हें उचित भागीदारी नहीं मिल रही है। 3. उन्होंने कहा कि आरएसएस धर्म, भाषाओं और समुदायों को अन्य की तुलना में कमतर मानता है और इसी बीच में उन्होंने दर्शकों में पहली पंक्ति में बैठे एक सिख व्यक्ति से संवाद करते हुए कहा, लड़ाई इस बात की है कि क्या एक सिख को भारत में पगड़ी या कड़ा पहनने का अधिकार है? वह गुरुद्वारे जा सकता है? ऐसी ही लड़ाई सभी धर्मों के लिए है? 4. उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस वस्तुत: यही कहता है कि कुछ राज्य दूसरे राज्य से कमतर हैं। कु छ धर्म, समुदाय और भाषायें एक दूसरे धर्म, समुदाय से कमतर हैं। जहां तक उनका पहला कथन का संबंध है नि:संदेह देश में मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों पर राज्य की दखल बढ़ी है। जांच एजेंसियों का दलीय पक्षपात के आधार पर भाजपा सरकार ने दुरुपयोग किया है। उससे देश में एक भय व्याप्त हुआ है। जाँच एजेंसियों के दुरुपयोग पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा टिप्पणी की गई है कि सीबीआई को तोता बनकर पिंजरे में रहने की जगह बाहर निकलना चाहिये। गुप्तचर संस्थाओं का दुरुपयोग हो रहा है हालांकि 10 वर्ष के पूर्व की सरकारों द्वारा भी दुरुपयोग होता रहा है, यह भी सही है, परंतु मूल प्रश्न है कि क्या अपने देश के आंतरिक हालात की चर्चा विदेशों में जाकर, उनके मंचों पर जाकर, होना चाहिये, यह परंपरा हमारे देश में नहीं रही है। डॉ. राममनोहर लोहिया, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के आलोचक थे परंतु उन्होंने अपनी अमेरिकी यात्रा में उनकी चर्चा नहीं की, बल्कि जब वहां की प्रेस ने उनसे इस बारे में टिप्पणी मांगी तो उन्होंने कहा कि यह हमारे देश का आंतरिक मसला है। इसके लिये मैं अमेरिका नहीं आया हूं। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका यात्रा में भारत सरकार के खिलाफ टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था। डॉ. लोहिया तो इससे एक कदम आगे जाकर अमेरिका में अमेरिका की व्यवस्था को ललकारा और उनके रंगभेद नीति के विरुद्ध न केवल सार्वजनिक रूप से कहा था बल्कि उनके नियमों को तोड़कर आंदोलन किया व गिरफ्तारी दी थी। जिस अमेरिका में जाकर राहुल जी भारतीय लोकतंत्र के बारे में अपनी शिकायत दर्ज करा रहे हैं उस अमेरिका में स्वत: लोकतंत्र की स्थिति क्या है। आज अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और राष्ट्रपति पद के वर्तमान प्रत्याशी ट्रंप और वर्तमान राष्ट्रपति जो वाइडेन के बीच जिस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हो रहा है वह कुछ अर्थों में भारत से भी बदतर है। पिछले दशक में अमेरिकी लोकतंत्र जिसे लोग एक जमाने में एक आदर्श लोकतंत्र मानते थे यद्यपि इस पूंजीवादी लोकतंत्र का आज सारी दुनिया में हास्य का विषय बना हुआ है परंतु राहुल जी ने अमेरिकी लोकतंत्रय की खामियों की चर्चा करने की बजाय अपने देश के लोकतंत्र की खामियों को बताने के लिए जो मंच चुना वह उचित नहीं कहा जा सकता है। आरक्षण के बारे में राहुल जी की राय इस अर्थ में सच्चाई के करीब है कि आरक्षण को चतुराई या चालाकी के साथ खत्म करने का या अप्रभावी करने के तरीके सरकारें चुन रहीं हैं। हालांकि उनसे यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि आपकी पार्टी ने मंडल कमीशन के रपट का 1990 में समर्थन क्यों नहीं किया? आपकी पार्टी ने ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का समर्थन किस आधार पर किया। वर्ष 2011 में हुई जनगणना की जाति संख्या की रपट प्रकाशित क्यों नहीं कराई? वर्तमान भाजपा सरकार और उसकी मातृ संस्था आरक्षण के पक्ष में नहीं है। बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व जब देश में जातीय जनगणना की बात उठी तो संघ के इशारे पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने यह कहकर तथ्यों को छुपाने का प्रयास किया कि हमारा विश्वास तो युवा, गरीब, किसान,मजदूर नामक जातियों में है। याने जो भाषा 1950 के दशक में साम्यवादी मित्र बोलते थे वह भाषा जातिवाद पर पर्दा डालने के लिए प्रधानमंत्री व भाजपा ने बोलना शुरू किया। परंतु अब जब भाजपा 400 पार के नारे से घटकर 240 पर सिमट गई तब संघ में भी हलचल हुई व भविष्य के खतरे सामने आने लगे। हाल ही में संघ ने केरल में अपनी बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया कि जातीय जनगणना हो सकती है बर्शते वह राष्ट्रीय हित में की जाये। यह शब्दावली केवल अपने अपराध को छुपाने वाली शब्दावली है और संघ के इस अघोषित अनुमति के बाद यह संभावना बढ़ी है कि अब सरकार जातीय जनगणना करायेगी। परंतु इन सवालों की चर्चा भी उस अमेरिका में अर्थहीन है जहां आज भी रंगभेद प्रभावी है और गोरे अधिकारी सरेआम काले की गर्दन पर पैर रखकर जान ले लेते हैं। क्या किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिका के बाहर किसी दूसरे देश में अपने देश के रंगभेद की चर्चा की है? तीसरा बिन्दु तो और भी अनुचित है, जिसमें कि राहुल गांधी ने कहा कि विषय यह है कि क्या कोई सिख अपना धर्म मान सकता है, कड़ा और पगड़ी पहन सकता है आदि। यह तो कोई सामान्य व्यक्ति, क्या भारतीय, क्या विदेशी और कोई सिख भाई कह देगा कि भारत में सिख भाईयों को, जैन-बुद्ध और मुस्लिम भाईयों को, अपनी धार्मिक परिपाटियों को मानने पर कोई रोक नहीं है। यह इसलिये भी उनका आश्चर्यजनक कथन लगा, क्योंकि सिख ही क्या बल्कि सभी धर्मों के मामले में कांग्रेस पार्टी का अतीत साफ – सुथरा नहीं है। कांग्रेस सरकार के जमाने में ही राम मंदिर मेें मूर्तियां रखी गई थीं, फिर ताला खोला गया था और उसका जो अंत होना था वह सबके सामने हैं। कांग्रेस के जमाने में ही मेरठ, भागलपुर में भयानक दंगे हुए थे जिनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम भाई मारे गये थे और बर्बाद हो गये थे। कांग्रेस सरकार के जमाने में ही तत्कालीन मप्र और वर्तमान छग में जैन मुनि आचार्य तुलसी के पंथवालों ने दंगे किये थे और 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद किस प्रकार सिख समाज के ऊपर हमले, हत्यायें और लूटपाट हुई थी, उसे कौन भुला सकता है। सिखों की नृशंस हत्या के बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी से इन हत्याओं को लेकर प्रश्न पूछा गया था तो वह बोले कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन हिल जाती है्य्य और उसके बाद के घटनाक्रम सभी को पता है। नेता प्रतिपक्ष के जिम्मेदार पद पर और कांग्रेस पार्टी के शासक परिवार के अंग रहते हुए कम से कम राहुल जी को इन जख्मों को कुरेदने की आवश्यकता नहीं थी। उनके इन कथन के परिणाम कितने दूरगामी और भयानक हो सकते हैं, शायद यह कल्पना उन्होंने नहीं की। हालांकि भाजपा के प्रवक्ताओं ने उनके बयान के बाद उन्हें राष्ट्रद्रोही कहना शुरू कर दिया। मैं उन्हें राष्ट्रद्रोही तो नहीं मानता हूं परंतु उनके इस बयान को गैर जिम्मेदाराना, गैर जरूरी और देश की छवि के साथ-साथ उनके दल की छवि भी बिगाडऩे वाला मानता हूँ। शिवसेना (एकनाथ) के एक विधायक ने तो यह सार्वजनिक बयान दिया है कि जो श्री राहुल गांधी की जीभ काटेगा, उसे वे 11 लाख रुपये देंगे। यह बयान, अलोकतांत्रिक, अनुचित व आपराधिक है। अच्छा होता कि मुख्यमंत्री श्री शिंदे स्वत: अपने पक्ष के विधायक के विरुद्ध कार्यवाही करते तो इससे उनकी लोकतांत्रिक छवि भी मजबूत होती। परंतु उनसे अपेक्षा अर्थहीन है। रवनीत सिंह बिटटू रेल राज्यमंत्री भारत सरकार के हैं तथा पुराने कांग्रेस के रहे हैं ने कहा कि राहुल गांधी हिन्दुस्तानी नहीं है। श्री बिटटू कांग्रेस से भाजपा में गये हैं तथा संभव है कि भाजपा में अपने नंबर बढ़वाने के लिये वे