‘ज्ञानेंद्र शर्मा उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान’ से नवाजे गए नवीन जोशी


राजीव तिवारी (बाबा)

लखनऊ।जाने माने पत्रकार स्वर्गीय ज्ञानेंद्र शर्मा के पत्रकारीय जीवन पर चर्चा ने यूपी प्रेस क्लब में पांच दशक की पत्रकारिता के स्वर्णकाल के दर्शन करा दिए। यूपी जर्नलिस्ट गिल्ड की तरफ से आयोजित संगोष्ठी में शहर के  सीनियर सहाफियो ने अपने अग्रज ज्ञानेंद्र शर्मा जी को याद करते हुए अतीत की सुनहरी पत्रकारिता के जिक्र किए।

इंटरनेट, मोबाइल फोन और कंप्यूटर के आम रिवाज के बिना सटीक, निरपेक्ष, संतुलित पत्रकारिता रिफरेन्स, साक्ष्यों और आंकड़ों के धागों से कसी होती थीं। उस जमाने की सहाफत के सुपर हीरो पत्रकार, संपादक और पहले मुख्य सूचना आयुक्त रहे ज्ञानेंद्र शर्मा ने बदलती पत्रकारिता के दौर में नई तकनीक का भी दामन थामा। हाथ से कॉपी लिखने के दौर में कंप्यूटर टाइपिंग को सबसे पहले अपनाने से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के शुरुआती दौर में कैमरे से भी वो बेहिचक रूबरू हुए थे।

 वर्तमान आधुनिक टेक्नोलॉजी के संसाधनों के बिना सूचनाओं और खबरों को वक्त पर पाठकों तक परोसने की कल्पना भी आज की पीढ़ी नहीं कर सकती। पांच दशक की पत्रकारिता के साक्षी पुराने सहाफियों का हुजूम स्वर्गीय ज्ञानेंद्र शर्मा के कलम और उनकी शख्सियत के हर पहलू को बयां कर रहा था।

अर्द्धशताब्दी के लम्बे समयकाल तक  जारी रही *ज्ञानेंद्र जी की कलमनवीसी की यात्रा के सहयात्रियों की इस महफिल में विख्यात पत्रकार नवीन जोशी को ज्ञानेन्द्र शर्मा स्मृति उत्कृष्ट पत्रकारिता के सम्मान से नवाजा गया।* श्री जोशी ने आयोजक वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह से आग्रह किया कि बेहतर होगा कि जिले के अंचलों में पत्रकारिता की लौ को रोशन करने वाले ग्रामीण अंचलों के पत्रकारों को ज्ञानेंद्र शर्मा उत्कृष्ट पत्रकारिता सम्मान के लिए चुना जाए।

कार्यक्रम की खूबसूरत ये थी कि कार्यक्रम के डायस पर जहां नवीन जोशी, राम दत्त त्रिपाठी, शरत प्रधान, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, सुरेश बहादुर सिंह, हेमंत तिवारी ,पी के तिवारी जैसे दिग्गज कलम नवीस थे तो डायस के  सामने प्रदुम्न तिवारी, जगदीश जोशी,हरीश मिश्रा, सिद्धांत कलहंस, घनश्याम दुबे, राजू मिश्रा, दीपक गिनवानी, राजू तिवारी बाबा, अशोक राजपूत,टी बी सिंह, आशु बाजपेई,टी के मिश्रा, जितेन्द्र शुक्ला, संदीप रस्तोगी जैसे लखनऊ की पत्रकारिता के दर्जनों नायाब हीरे दर्शक दीर्घा में थे। 

प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने कहा कि ज्ञानेंद्र जी ने राजनीतिक रिपोर्टिंग को एक नया आयाम दिया। उनकी आलोचना का भी एक अलग सलीका था। पत्रकारिता तो बेमिसाल थी ही  जिन्दगी जीने का उनका शऊर बेमिसाल था। उन्होंने अपनी लाइफस्टाइल में रहन-सहन ,खान पान, नौकरी,दोस्ती यहां तक कि शराब तक में अपनी नंबर वन पसंद के साथ कभी समझौता नहीं किया।

गोष्ठी की शुरुआत यूपी प्रेस क्लब के पूर्व सेक्रेटरी वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह के संबोधन से हुई। श्री सिंह ने स्व. शर्मा के साथ बिताए दिनों को याद करते हुए कहा कि स्व. शर्मा पत्रकारिता की खुली किताब थे। जिसे पढ़कर आज के युवा सच्ची पत्रकारिता सीख सकते हैं। उन्होंने बताया कि स्व. शर्मा आज के दौर की पत्रकारिता के गिरते स्तर को लेकर चिंतित रहा करते थे। खासकर इस बात पर कि युवा पत्रकारों में सीखने की ललक खत्म होती जा रही है।

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने स्वर्गीय शर्मा को याद करते हुए उन्हें अपना गुरु बताया। उन्होंने कहा कि वह मेजर असाइनमेंट पर हमेशा अच्छे से अच्छा आउटपुट चाहते थे। स्वर्गीय शर्मा आज की तुलना में पत्रकारिता के गूगल थे। किसी भी खबर पर उनका रेफरेंस बहुत ही जोरदार रहता था। वह मीटिंग में पूरी तैयारी से आते थे। उनसे नई पीढ़ी को सीखना चाहिए।

बीबीसी के पूर्व संवाददाता वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने बताया कि उस जमाने में स्वर्गीय शर्मा ने अपने आप को तकनीक के हिसाब से बहुत अपडेट रखा था। वह अपनी खबरों को खुद ही टाइपराइटर पर टाइप किया करते थे। इमरजेंसी के दौरान में उनकी लेखनी बहुत धारदार थी। वह हमेशा जन पक्षधर पत्रकारिता किया करते थे।

स्व. ज्ञानेंद्र शर्मा के पारिवारिक मित्र डॉ. वीके मिश्रा ने उनसे अपने व्यक्तिगत लगाव की स्मृतियों को ताजा किया। उन्होंने कहा की सहनशीलता और भरोसा जैसे मानवीय गुण उन्होंने ज्ञानेंद्र शर्मा से ही सीखा। उनकी अनुपस्थिति से हमारे आसपास एक बड़ा शून्य बना है। स्वर्गीय शर्मा के भाई हरेंद्र शर्मा ने स्मृतियों को ताजा करते हुए बताया कि उनकी पढ़ाई से लेकर नौकरी तक बड़े भाई के रूप में स्व. शर्मा ने जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी किया। उनके पुत्र अनुपम शर्मा ने कहा कि ज्ञानेंद्र शर्मा ने पत्रकारिता के अलावा आरटीआई के क्षेत्र में भी बहुत काम किया। वह हर फील्ड के माहिर थे।

वरिष्ठ पत्रकार जगदीश जोशी ने उनके साथ बिताए अपने कार्यकाल के अनुभव को साझा किया। उन्होंने बताया कि स्व. शर्मा पत्रकारिता के अलावा बैडमिंटन और टेबल टेनिस का भी शौक रखते थे और अक्सर लखनऊ क्लब में मिल जाया करते थे। एक संपादक के रूप में ज्ञानेंद्र जी से उन्हें बहुत सीखने को मिला। वरिष्ठ पत्रकार मुदित माथुर में कहा कि स्व. शर्मा एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनसे हर कोई सीखता था। वह राजनीति में होने वाली उठा पटक पर बारीक नजर रखते थे और भविष्य की गतिविधियों के घटनाक्रम पर पकड़ रखते थे। अगर किसी सहयोगी की स्टोरी उनको मिल जाती थी तो उसे और निखार देते थे। उन्होंने इस बात का विशेष जिक्र किया कि स्व. शर्मा के नियमित कॉलम ‘प्रसंगवश’ के टाइटल को पूर्व राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने अपनी किताब में लिया।

वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह ने कहा कि आज की पत्रकारिता की तुलना में स्वर्गीय शर्मा सौ पत्रकारों पर भारी थे। एक रिपोर्टर के तौर पर वह जोरदार पत्रकार तो थे ही, संपादक के तौर पर भी उन्होंने अपनी बेहतरीन छाप छोड़ी।

लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे रमेश दीक्षित ने स्व. शर्मा के संग बिताए दिनों को याद करते हुए बताया कि वह एकमात्र ऐसे पत्रकार थे जो राजनेताओं की आंखों से आंखें मिलाकर बात करते थे। उन्होंने पॉलिटिकल रिपोर्टिंग के मानक तय किए जिनका मुकाबला आज भी कोई नहीं कर सकता। मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में उनके कार्यकाल की भी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वह हर फन में माहिर थे। पत्रकारिता के साथ-साथ मित्रता और परिवार का दायित्व भी उन्होंने बखूबी  निभाया।

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने कहा कि जब उन्होंने अपनी पहली किताब लिखी तो उसमें सहयोग के लिए और सबसे पहले स्वर्गी शर्मा के पास ही गए क्योंकि उन्हें पता था कि उनके पास जो जानकारी होगी और किसी और के पास नहीं मिलेगी। उनसे उन्होंने पत्रकारिता के सही वैल्यू सीखे। उन्होंने वाकई सच्ची पत्रकारिता की जबकि आज के दौर में चाटुकारिता, पत्रकारिता पर भारी है।

वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र अग्निहोत्री ने कहा कि स्व. शर्मा मूल्य के धनी पत्रकार थे। उन्होंने भोपाल से पत्रकारिता की शुरुआत की। उनकी स्मरण शक्ति बहुत जबरदस्त थी और साहित्य पर भी उनकी जबरदस्त पकड़ थी।

वरिष्ठ पत्रकार प्रद्युम्न तिवारी ने बताया कि उन्होंने विधानसभा की रिपोर्टिंग स्व. शर्मा से ही सीखी। जूनियर साथी को भी साथ में लेकर चलने की कला स्व. शर्मा में भरपूर थी। 

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने स्वर्गीय शर्मा के साथ के दिनों के चर्चा की।‌ एक प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे स्व. शर्मा ने एक लाइन में यह कह कर बहस समाप्त करवा दी थी कि ‘पत्रकार को निष्पक्ष होकर नहीं बल्कि निरपेक्ष होकर लिखना चाहिए।’ 

अंत गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी ने उनके साथ बिताए दिनों की याद ताजा करते हुए कहा कि उनके साथ रिश्तों की व्याख्या नहीं की जा सकती। वह अंतरंग रिश्ते को समझते थे और उसके हिसाब से जीवन जीते थे। महफिलों में शेर-ओ- शायरी के बीच में उनके चुटकुले लोगों को बहुत पसंद आते थे। उन्होंने स्व. शर्मा के जन्मदिन पर लिखी एक कविता भी सुनाई। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की गिरावट से स्वर्गीय शर्मा चिंतित रहा करते थे।

सुरेश बहादुर सिंह ने कहा कि स्वर्गीय शर्मा द्वारा कायम की गई उत्सवधर्मिता परंपरा को वह कायम रखेंगे। यह सम्मान हर साल पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले पत्रकारों को दिया जाएगा।

संगोष्ठी के दौरान वरिष्ठ पत्रकार घनश्याम दुबे, हरिश मिश्र, उमेश रघुवंशी, दीपक गिडवानी, मनमोहन व राजू मिश्र के अलावा टीबी सिंह, अशोक राजपूत, राजीव तिवारी बाबा, अजय त्रिवेदी, राजेश मिश्र, आशु बाजपेई, सुनील दिवाकर, रोहित श्रीवास्तव के साथ ही बड़ी संख्या में स्व. शर्मा के परिजन, मित्रगण व शुभचिंतक भी मौजूद रहे।


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