विजयी भव:


अक्षत श्रीवास्तव

नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान – दो ऐसे राष्ट्र जिनका जन्म एक ही भूमि से हुआ, लेकिन रास्ते इतने अलग निकले कि एक ने दुनिया को लोकतंत्र, विकास और विविधता का अद्भुत उदाहरण दिया, तो दूसरा कट्टरता, आतंक और राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र बन गया। भारत ने हर मोर्चे पर यह सिद्ध किया है कि वह न केवल शांति का समर्थक है, बल्कि आवश्यकता पडऩे पर युद्धभूमि में अपने शौर्य से इतिहास रचने की क्षमता भी रखता है। जब भी भारत के इतिहास की बात होती है, वह केवल युद्धों और राजनीतिक परिवर्तनों की गाथा नहीं होती, वह एक ऐसी यात्रा होती है जिसमें शांति की तपस्या, पराक्रम की पुकार और राष्ट्र के लिये सर्वस्व त्यागने की असाधारण भावना समाहित होती है।

1947 में जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तब उसे केवल एक आज़ाद राष्ट्र नहीं बनना था, उसे अपने चारों ओर से फैलती कट्टरता, आतंकवाद और विघटनकारी मानसिकताओं के बीच खुद को एक शांति प्रिय लेकिन सशक्त लोकतंत्र के रूप में स्थापित भी करना था। पाकिस्तान, जो द्विराष्ट्र सिद्धांत की उपज था, उसने बार- बार भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दी। पर हर बार जब पाकिस्तान ने भारत के धैर्य की परीक्षा ली, तब भारत ने उसे उसके ही भाषा में उत्तर देकर यह दिखाया कि यह राष्ट्र अहिंसा का पुजारी है, पर कायरता से कोसों दूर है। 1965 का युद्ध जब पाकिस्तान ने छेड़ा, तो उसने सोचा कि कश्मीर में मुस्लिम जनसंख्या का फ़ायदा उठाकर वह एक तथाकथित विद्रोह खड़ा कर सकेगा। पर उसे नहीं मालूम था कि कश्मीर भारत का मस्तक है, और भारत अपने मस्तक पर कोई आंच नहीं आने देगा। भारतीय सेना ने अप्रतिम साहस का प्रदर्शन करते हुये न केवल पाकिस्तान की योजना को विफ ल किया, बल्कि लाहौर तक पहुंचना संभव बना दिया। और फिर आया 1971, जब पाकिस्तान ने बंगालियों पर अत्याचार किया, लाखों लोग पलायन कर भारत आये। भारत ने केवल शरण नहीं दी, बल्कि न्याय भी दिलाया। यह वह युद्ध था जिसमें केवल एक भू-भाग नहीं टूटा, बल्कि भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिये वह किसी भी हद तक जा सकता है। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्म समर्पण, इतिहास का सबसे बड़ा सरेंडर, इस बात का साक्ष्य था कि जब नेतृत्व में स्पष्टता हो और सेना में साहस, तब युद्ध केवल सैनिकों का नहीं होता- वह न्याय का यज्ञ बन जाता है।

1999 का कारगिल युद्ध तो भारतीय सेना की संकल्प शक्ति और अदम्य साहस की चरम सीमा थी। दुर्गम बर्फ ीली चोटियों पर चढ़ते हुये जवानों ने जो अद्वितीय पराक्रम दिखाया, वह केवल युद्ध नहीं, एक त्याग की महागाथा थी। कैप्टन विक्रम बत्रा की अमर पंक्ति- ये दिल मांगे मोर- केवल युद्धघोष नहीं, भारत के प्रत्येक नौजवान के दिल की आवाज़ बन गयी। और यह सत्य है कि सैनिकों के रक्त से सींचा गया कारगिल, भारत के गर्व का प्रतीक बन गया। यह सेना केवल युद्धों में नहीं लड़ती, यह तब भी खड़ी रहती है जब देश को प्रकृति की आपदा से लडऩा हो। केदारनाथ की आपदा में, उत्तराखंड की बाढ़ में, कोविड की विकट परिस्थिति में, हर जगह सेना ने अपने अनुशासन, सेवा-भाव और अद्भुत संगठन क्षमता का परिचय दिया। ये वे योद्धा हैं, जिनके लिये ना दिन मायने रखता है, ना रात … सिर्फ वर्दी, तिरंगा और मातृभूमि का मान।

भारतीय सेना केवल पुरुषों की ही नहीं रही। अब बेटियां भी रणभूमि में उतर चुकी हैं। स्क्वाड्रन लीडर अवनी चतुर्वेदी जब मिग- 21 उड़ाती हैं, तो वह केवल विमान नहीं उड़ातीं, वह हर भारतीय लड़की के सपनों को उड़ान देती हैं। कैप्टन भावना कंठ, लेफ्टिनेंट जनरल माधुरी कानिटकर और कैप्टन शिखा सुरभि जैसी वीरांगनाएं यह दिखाती हैं कि भारत की शक्ति अब आधी आबादी में नहीं, सम्पूर्ण नारीशक्ति में निहित है। भारत अब वह राष्ट्र नहीं जो बेटियों को सीमित देखना चाहता है, यह वह राष्ट्र है जो बेटियों को सीमा पर देखना चाहता है। भारत का नेतृत्व आज न केवल कूटनीतिक मंचों पर बल्कि युद्धनीति, सुरक्षा और रक्षा में भी स्पष्टता और कठोरता के साथ निर्णय ले रहा है। जब सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के माध्यम से भारत ने आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, तब विश्व को यह संदेश मिला कि भारत अब सहने वाला नहीं, प्रत्युत्तर देने वाला राष्ट्र है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे नेताओं के नेतृत्व में यह संदेश स्पष्ट हुआ कि आतंकवाद और वार्ता साथ नहीं चल सकते। आज भारत न केवल युद्धनीति में, बल्कि रक्षा निर्माण, तकनीक और वैज्ञानिक उपलब्धियों में भी आत्म निर्भर हो रहा है। तेजस लड़ाकू विमान, अर्जुन टैंक, ब्रह्मोस मिसाइल, और स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत,ये सब उस भारत के प्रतीक हैं जो अब रक्षा क्षेत्र में भी आत्म निर्भर भारत का स्वप्न साकार कर रहा है।

सैनिकों की ज़िंदगी सिर्फ सीमा पर नहीं बीतती,वह हर पल, हर क्षण एक युद्ध है। ठंडी में जमती सांसे, गर्मी में जलता लहू, और हर त्यौहार, हर होली- दीवाली बिना परिवार के बिताना, यही एक सैनिक का जीवन होता है। पर वे कभी शिकायत नहीं करते, क्योंकि उनके लिये भारत कोई भौगोलिक इकाई नहीं, वह मां है और मां की सेवा में कोई शर्त नहीं होती। एक सैनिक की डायरी में लिखी पंक्तियां आज भी हर पाठक की आंखें नम कर देती हैं… ना जाने कब लौटूंगा, मंा, पर तिरंगा जरूर लिपटकर आयेगा… तेरे आंचल की जगह अब कंधे पर राइफ ल का भार है… हमारे जवान देश की सीमाओं की रक्षा ही नहीं करते, वे हमारे भविष्य की नींव भी बनाते हैं। जब हम चैन की नींद सोते हैं, तब वे सीमा पर गोलियां सह रहे होते हैं। जब हम तिरंगा लहराते हैं, तब याद रखना चाहिये कि वह तिरंगा उन शहीदों के रक्त से सना है, जिन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया, ताकि यह राष्ट्र नतमस्तक ना हो। भारत आज जहां खड़ा है, वह केवल नेतृत्व का फल नहीं, वह उन अनगिनत बलिदानों की नींव पर बना हुआ राष्ट्र है। वीरता भारत की रगों में बहती है, त्याग इसकी आत्मा है, और सेना इसकी संकल्पशक्ति।

आज जब पाकिस्तान अपने ही राजनीतिक अराजकता और आतंकवाद की आग में जल रहा है, तब भारत अपने विज्ञान, रक्षा, कूटनीति, महिला सशक्तिकरण और लोकतंत्र के पथ पर अडिग और अजेय खड़ा है। भारत आज न केवल अपने दुश्मनों से, बल्कि अपनी कमजोरियों से भी लड़ रहा है और विजयी हो रहा है। इसलिये, इस युग में जब चुनौतियां केवल सीमाओं पर नहीं, विचारों में भी होती हैं , भारत की सेना, भारत की बेटियां और भारत का नेतृत्व तीनों मिलकर वह त्रिशूल हैं, जो हर बाधा का संहार करने में सक्षम हैं।जय जवान, जय किसान केवल एक नारा नहीं,वह भारत की आत्मा है। वह आत्मा जो मरती नहीं, वह भावना जो थमती नहीं। वह भारत जो झुकता नहीं, क्योंकि उसकी सेना कभी हारती नहीं।


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