महाकुम्भ : 66.21 करोड़ श्रृद्धालुओं ने दिखा दिया कि भारत ही है सनातन धर्म का ‘रक्षक’


 संजय श्रीवास्तव

प्रयागराज। धरती पर स्वर्ग की कल्पना करना बेहद कठिन है। यदि कल्पना करें तो ऐसा पावन स्थल,जहां निर्मल गंगा- यमुना- सरस्वती की कलकल बहती धारा हो,गंगा किनारे संत-धर्मात्माओं की महापाठ और करोड़ों की संख्या में श्रृद्धालुओं की आस्था दिखायी दे और सभी एक सुर में विश्व के शांति और कल्याण की कामनाओं की चहुंओर गूंज सुनायी दे…शायद इसे ही धरती का स्वर्ग कह सकते हैं और ये नजारा भारत में उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयागराज में देखने को मिला। महाकुम्भ-2025 में पहली बार 66.21 करोड़ साधु-संत एवं श्रृद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगायी और हर-हर गंगे के उद्घोष के साथ देश में सुख-शांति की कामना की। इस ऐतिहासिक पल का सपना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देखा और इनके सपनों को साकार सरकार में तैनात जाबांज अधिकारियों ने कर दिखाया। डिजीटल महाकुम्भ का खाका योगी के भरोसेमंद कर्मयोगी सीनियर अफ़सर शिशिर सिंह, मृत्युंजय और डीजीपी प्रशांत कुमार ने इस तरह तरह से सजाया कि पूरा विश्व महाकुम्भ को देख अचंभित हो गया। एक बात तो है कि महाकुम्भ का भव्य,दिव्य आयोजन देख कह सकते हैं कि यहां पर आने वाले करोड़ों श्रृद्धालुओं ने डुबकी लगाकर साबित कर दिया कि सिर्फ और सिर्फ भारत की सनातन धर्म का रक्षक है।

45 दिन चले इस महाकुम्भ में छह शाही स्नान हुये। इस बार एआई तकनीक का इस्तेमाल किया गया और श्रद्धालुओं के लिये विशेष सुविधाएं प्रदान की गयीं। महाकुम्भ ने न केवल धार्मिक बल्कि आयोजन में देश- विदेश से आये लाखों श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था और भक्ति का प्रदर्शन किया। शाही स्नान के दिन श्रद्धालुओं का जमावड़ा बहुत अधिक होता है। वे इन दिनों को बहुत ही शुभ मानते हैं। महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में होता है और यह समुद्र मंथन से जुड़ी एक पौराणिक कथा से संबंधित है। कहा जाता है कि जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तो अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी थीं। इन स्थानों पर महाकुम्भ का आयोजन होता है और श्रद्धालु इन स्थानों पर आकर इन अमृत बूंदों से पुण्य प्राप्त करने के लिये स्नान करते हैं। ये पहली बार हुआ कि महाकुम्भ 2025 में पहली बार आर्टिफि शियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया गया। यूपी सरकार ने 500 से अधिक एआई कैमरों के जरिये श्रद्धालुओं की संख्या का आंकलन किया। इन कैमरों में भीड़ घनत्व, हेड काउंट और फेस रिकग्निशन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। इससे प्रशासन को महाकुम्भ में श्रद्धालुओं की संख्या पर नजर रखने में मदद मिली और यह सुनिश्चित किया गया कि हर श्रद्धालु को सही तरीके से व्यवस्था मिल सके।

महाकुम्भ में इस बार 4000 हेक्टेयर,15.812 बीघा का क्षेत्रफ ल शामिल था और इसे 25 सेक्टरों में बांटा गया था। संगम तट पर कुल 41 स्नान घाट बनाये गये थे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये 102 पार्किंग स्थल, 7 प्रवेश मार्ग और 24 सैटेलाइट पार्किंग की व्यवस्था की गयी थी। संगम नोज, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, इस बार और भी बड़ा किया गया। आईआईटी गुवाहाटी के विशेषज्ञों की मदद से यहां 2 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र का विकास किया गया, जिसमें 630 गाडिय़ां पार्क हो सकती थीं। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिये एक प्रमुख आकर्षण बन गया था।

महाकुम्भ की विशालता को देखते हुये यूपी सरकार ने एक अस्थायी जिला महाकुम्भ मेला बनाया था, जिसमें चार तहसीलों के 67 गांव शामिल थे। इस अस्थायी जिले में प्रशासनिक कार्यालय, पुलिस थाने, और चौकियां भी बनायी गयी थीं। इस आयोजन के दौरान सुरक्षा के लिये सात स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी। इसमें एनएसजी कमांडो, यूपी पुलिस के जवान और 300 से अधिक गोताखोर तैनात थे। इसके अलावा, आपात स्थिति से निपटने के लिये वाटर एम्बुलेंस भी उपलब्ध थी। श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये व्यापक सुरक्षा इंतजाम किये गये थे।

महाकुम्भ में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिये 10 लाख से अधिक लोगों के रहने की व्यवस्था की गयी थी। इसमें 2000 टेंट, 42 लग्जरी होटल, 204 गेस्ट हाउस, 90 धर्मशालाएं और 3000 बेड के रैन बसेरे बनाये गये थे। इन सभी सुविधाओं के माध्यम से प्रशासन ने श्रद्धालुओं को सुरक्षित और आरामदायक माहौल देने की कोशिश की थी। इसी तरह, गूगल ने महाकुम्भ के लिये एक विशेष सुविधा शुरू की थी, जिसमें कुम्भ मेला क्षेत्र के प्रमुख स्थानों जैसे पुल, आश्रम, अखाड़े, सड़कों और पार्किंग स्थलों को मैप पर दिखाया गया था। इससे श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र में नेविगेट करने में मदद मिली और वे आसानी से अपने रास्ते पर जा सके।

प्रयागराज महाकुम्भ 2025 ने न केवल एक धार्मिक आयोजन के रूप में महत्व प्राप्त किया, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का सबसे भव्य पर्व बनकर उभरा। इस आयोजन ने तकनीकी उन्नति और पारंपरिक आस्थाओं के संगम को एक साथ दिखाया, जो भविष्य के आयोजनों के लिये एक उदाहरण साबित होगा। आखिर में इतना ही कहेंगे हर-हर गंगे…


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