हमारे देश में करीब पचहत्तर प्रतिशत लोग किसान और मजदूर वर्ग से आते हैं। आज जो लोग हमारे देश के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, आज उन्हीं वर्गों के लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है। उनमें से ज्यादातर खाने तक को मोहताज होते जा रहे हैं। जो देश के पेट को पालते रहे हैं, आज उनके पेट को पालने वाला कोई नहीं दिख रहा है। किसानों को सड़कों पर आकर अपनी मांग मनवाना तथा पूर्णबंदी से मजदूरों के दैनिक जीवन बेहाल हो चुका है।
आय का कोई भी स्रोत नहीं बचा है। ऐसी हालत में कितने दिन और कैसे जीएंगे ये लोग। देश के अमीर वर्गों के पास तो विरासत की भी संपत्ति है। बहुतों के पास सरकारी नौकरी है। ऐसे सुरक्षित लोग तो आराम से कई साल तक अपना जीवन सहज तरीके से जी लेंगे। लेकिन गरीब क्या करेंगे? जो लोग दिन-रात, सर्दी-गरमी, धूप-छांव मेहनत करते हैं, उनकी दैनिक कमाई कितनी है, यह किसी से छिपा नहीं है। मुश्किल से उनका जीवन चल पाता है। अलग-अलग वर्गों की आय और जीवन-स्तर में बहुत बड़ा फासला है। इतनी दोहरी नीति क्यों लागू की जाती है। जो लोग और वर्ग समूचे देश को खिलाने का जिम्मा लेता है, उनके साथ इतना अन्याय क्यों किया जा रहा है? आज पूरे देश का किसान रो रहा है, क्योंकि न तो उनके फसलों को अच्छी कीमत दी जा रही और न ही उनके लिए कोई दूसरा उपाय ही किया जा रहा है। सत्ता की लालच में सरकार गरीबों को मसल रही है। देश की जनता तो आर्थिक रूप से इतनी कमजोर हो चुकी है कि वह सरकार के खिलाफ बोल भी नहीं सकती। आज देश के मजदूर वर्ग कर्ज में डूब चुके है, कर्ज चुकाने में असमर्थ लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा ले रहे हैं। अगर समय रहते सरकार ने कुछ नहीं किया तो आने वाले दिनों में समाज और देश कसौटी पर होगा।
लेखक: विजय कुमार शर्मा