लेखक: डा. विजय श्रीवास्तव (गांधी विचारों के अध्धेयता और लवली प्रोफेशनल विश्विद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक)
सोशल मीडिया में आजकल कुछ तथाकथित विद्वान जी डी पी के गिरने पर इसे मोदी का अनर्थशास्त्र कह रहे हैं , किन्तु ये जी डी पी का गिरना अनर्थशास्त्र का प्रथम प्रवेश नहीं है | आज से 100 वर्ष पहले ही आधुनिक सभ्यता के अहिंसा के नायक गांधी जी इसे पहचान चुके थे | किन्तु गांधी का अनर्थशास्त्र “मोदी के वर्तमान अनर्थशास्त्र से भिन्न है और चिंतन की एक अलग धारा है | आइये समझते हैं |
क्या गांधी के विचारों पर केवल विमर्श किया जा सकता है आत्मसात नही किया जा सकता , यह प्रश्न आज के समय में जितना प्रासंगिक है उतना ही गांधी के समय में भी था वर्तमान समय में जिन आर्थिक एवं सामजिक अलगावों से मनुष्य जूझ रहा है उसका चिंतन गांधी के दर्शन में पहले से ही मौजूद है | गांधी ने अनायास ही अपनी कालजयी रचना हिन्द स्वराज में पाश्चात्य सभ्यता शैतानी सभ्यता नही कहा था |उनका यह दृष्टिकोण कहीं न कहीं आने वाले युगों को अनैतिक संभ्यता के प्रति सावधान करने के लि था | लेकिन गांधी केवल शब्दों का जाल बुनने वाले एक आदर्शात्मक लेखक और चिंतक नही थे |वे अपने चिंतन की विशिष्ट अहिंसक धारा को जीते भी थे और शायद इसीलिये वे उस युग में जब समूचा विश्व पश्चिम के भोगवादी विकास मॉडल के मोहपाश में फंसा हुआ था ,उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को अहिंसक जीवन शैली के माध्यम से एक समता आधारित समाज निर्माण का सपना दिखाया |उन्होंने संभ्यता क़े प्रश्न की व्याख्या करते हुए पश्चिम के आर्थिक चितंन को अनर्थशास्त्र की संज्ञा दी थी पर विडम्बना यह है कि गांधी के इस अनर्थशास्त्र के गूढ़ रहस्य को समकालीन आर्थिक चिंतक न समझ सके और उसे हाशिये पर धकेल दिया परिणाम यह हुआ कि आजादी के छः दशकों के बाद भी हम २०वीं सदी की की आर्थिक व्याधियों का उन्मूलन नही कर पाए हैं| तो क्या गांधी की प्रासंगिकता को केवल उनके संभ्यता के प्रति दृष्टिकोण से समझा सकता है एक बात जो उल्लेखनीय है कि, गांधी की इस आर्थिक चिंतन धारा को विनोबा और जे सी कुमारप्पा ने समझा और कई सामाजिक और दैनिक कार्यों में अपनाया और सफलता भी अर्जित की विनोबा का भूदान आंदोलन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है किन्तु गंभीर प्रश्न यह है कि जबकि गांधी के आर्थिक और सामाजिक दर्शन के सफल प्रयोग हमारे सामने हैं तो फिर क्यों भारतवर्ष ने गांधी के अंहिसक अर्थशास्त्र के बजाय अनर्थशास्त्र की व्याधियों को स्वीकार कर लिया |
स्वतत्रंता प्राप्ति के पश्चात गांधी के विचारों पर विमर्श तो हुए लेकिन वे विमर्श चौराहों पर लगी मूर्तियों और अकादमिक ग्रन्थों के तौर पर पुस्तकालयों की शोभा बढ़ाते रहे और उन विचारों को जनमानस से दूर ही रखा गया जबकि नितांत आवश्यकता यह थी कि संभ्यता के प्रति उस विचार को जनांदोलन बना दिया जाए वास्तव में गांधी के विचार का प्रथम अनुपालन व्यक्तिगत स्तर से ही शुरू होता है ,जहां आवश्क्ताओं को न्यूनतम करने की आवश्यकता होती है , ये सोच अर्थव्यवस्था को सत्याग्रह, न्यासिता, श्रम की महत्ता , अपरिग्रह और विकेन्द्रीकरण से मिलती है और ये सब मिलाकर एक अहिंसक चक्र का निर्माण करते हैं , ये सारे घटको में एक भी घटक का विचलन अर्थशास्त्र को हिंसक बना देता है और अनर्थशास्त्र का भयानक चेहरा सामने आता है जहां व्यकित न केवल स्वंय के बल्कि सामजिक अलगाव में फंस जाता है व्रद्धि तो होती है पर मानव का नैतिक पतन हो जाता है और समाज में संघर्ष और असमानताएं बढ़ती है , उत्पादन के साधनों पर पूंजीवादी शक्तियों का कब्जा हो जाता है और मशीन आधारित उत्पादन व्यवस्था में श्रम का शोषण प्रारम्भ हो जाता है और ऐसा लोकतांत्रिक देशों में भी हो सकता है |गांधी का यह स्पष्ट मानना था केंद्रीकृत उत्पादन व्यव्यस्था और लोकतंत्र साथ साथ नही चल सकते और और गांधी ने संभ्यता के प्रश्न की व्याख्या इस आधार पर भी की है ।
अनर्थशास्त्र !!! कुछ लोग यह प्रश्न पूछ सकते हैं कि ये क्या बला है , भला कोई एक स्थापित विषय का ऐसा नामकरण कैसे कर सकता है ? अर्थशास्त्र के चिंतन से ये अनर्थशास्त्र का बीज कहाँ से गया? अकादमिक जगत के आर्थिक बौद्धिकों को ये बात ज्यादा अखर सकती है और वे अपने चिंतन की भिन्न धारा के माध्यम से इस नामकरण या यू कहें इस व्यांग्यात्मक विरोध के लिए असहमति जता सकते हैं तो हम उसे सहर्ष स्वीकार करने को तैयार हैं.| वैसे जिन लोगों को लगता है कि ये प्रथम प्रवेश में ये शब्द हमने प्रयोग किया है तो वे भृम में हैं , चौर्य विद्या का भरपूर इस्तेमाल करते हुए ये शब्द महात्मा जी के चिंतन से उड़ाया है चलिए पाठकों दूसरा भृम भी दूर किये देते हैं जो लोग ये समझ रहे हैं कि वे एक अकादमिक शोध युक्त अध्धययन करने जा रहे हैं, तो ये उनके आशाओं पर कुठाराघात कर सकता है वास्तव में ये अकादमिक में सामाजिक विज्ञान के चिंतन के संदर्भ में एक पूर्ण गप्प और व्यंग्य है। वर्तमान की आर्थिक समस्यायों को गांधी के विचारों चश्मे से देखने का एक प्रयास भी भले ही वो चश्मा आज कुछ धुंधलापन लिए हो पर उसकी प्रमाणिकता और रोशनी आज भी उतनी ही उज्जवल है |
हम अनर्थशास्त्र को परिभाषित करने के लिए मुख्यतः आपका ध्यान तीन बिंदुओं की ओर ले जाना चाहते हैं , प्रथम यह कि अनर्थशास्त्र की परिभाषा अर्थशास्त्र की परिभाषा के बिलकुल विपरीत नही है और न ही अर्थशास्त्र की किसी परिभाषा को अपना समर्थन प्रदान करती है। दूसरा यह है कि इस अनर्थशास्त्र का किसी भी अकादमिक शोध और कार्य से कुछ भी लेना देना नही है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि अनर्थशास्त्र का यह पहलू केवल गांधी जी के धुंधले चश्मे को ही प्रथम बार नजर आया तो इसका अर्थ यह है कि गांधी के विचार अनर्थशास्त्र के कई पहलुओं की व्याख्या करते हैं अनर्थशास्त्र की आर्थिक अवधारणा एक जटिल प्रकिर्या है , इस अवधारणा की व्याख्या को अहिन्सा के चश्मे से देखा और समझा जा सकता है |विचारणीय बात यह है कि गांधी ने हमें जिन अंर्थशाष्त्र की कुरीतियों के खिलाफ चेताया था ,हमारे नीति नियंताओं ने विकेन्द्रित सोच की तिलांजली देकर समाज को इन कुरीतियों के जाल में फंसा दिया है। कोई भी अर्थशास्त्र जो मानव जाति के समता मूलक कल्याण की अवलेना करता है वह एक हिंसक प्रवत्ति का परिचायक है। गांधी को स्मरण करने के लिए हमें उनकी प्रतिमाओं पर माला चढ़ाने की अपेक्षा उनके विचारों को प्रायोगिक रुप में अपनाना होगा तभी जाकर हम गांधी के नैतिक अर्थशास्त्र के उच्चतम पहलुओं को प्राप्त कर सकेंगें ।
वास्तव में हमें आर्थिक सुधारोँ की अपेक्षा आर्थिक चिन्तन में सुधार की आवयश्कता है महान गांधीवादी विचारक जे सी कुमारप्पा के स्थायी आर्थिक सिद्धान्तों पर भी पुनः मनन चिंतन की जरुरत है उन्ही के शब्दों में ” विकेन्द्रीकृत ग्राम आधारित सामुदायिक उत्पादन पद्धति ही एक समता मुलक सामजिक व्यवस्था का निर्माण कर सकती है और ये भी एक संयोग ही है कि दोनों महान आर्थिक चिंतकों गांधी और कुमारप्पा की पुण्यतिथि भी एक है। नीति निर्माता शायद थोड़ा ध्यान भी कुमारप्पा और गांधी के प्रायोगिक और रचनात्मक विचारों की ओर दे दें, तो असमानता के भयावह कैंसर से आर्थिक जगत को मुक्ति मिले । बशर्ते विचार पुस्तकालयों में शोभित न हो अपितु जनमानस में एक क्रांतिकारी विचार का रूप ले लें । महामारी के दौर में एक अंहिसक सभ्यता को पाने के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा ।