बिहार। विश्वेश तिवारी दिनांक 15 अगस्त 2020 को नेबुआ नौरंगीया थाना छेत्र के लीलाधर छपरा गांव निवासी व बिहार के एक प्रतिष्ठित कॉलेज भुवन मालती शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्रतिष्ठित प्रधानाचार्य सचिदानंद तिवारी की प्रशाशन व बिहार मोतिहारी के लोगों के लापरवाही की वजह से तडप कर रोड पर ही मौत हो गयी।
दरअसल यह पूरा मामला बिहार प्रांत की मोतिहारी का है जहां से 15 अगस्त को प्रोफेसोर डॉक्टर सचिदानंद तिवारी अपने कॉलेज से झण्डा रोहण करके किसी काम से कहीँ जा रहे थे। बेतिया के आगे पीपरा चौक पर सचिदानंद तिवारी किसी काम वस रुक गये। सूत्रों के मुताबिक सचिदानंद को अचानक चक्कर आ गया और वो वही गस्स खाकर गिर गये। मगर बिहार के बेतिया के लोगो की निर्दयीता तो देखीये। बेहोस होकर गिरे सचिदानंद को उठाकर अस्पताल ले जाना या पुलिस को इस घटना का संज्ञान देना तो छोड़ो, बेसूद पड़े प्रोफेसर के रुपये पैसे तक उनके जेब से निकाल लिया।
करीब घण्टे भर के बाद कोई सज्जन व्यक्ति वहां खडी भीड देखकर उस पूरे मामले की जानकारी ली, और फिर बेतिया पुलिस के संज्ञान में डाला। मगर पुलिस को तो अपनी सरदर्दी कम करनी थी। तो उसने भी मामले मे कोई जांच कराये बिना प्रोफेसर को मृत घोषित कर दिया।
अपको बता दें की सचिदानंद तिवारी शुरु से ही पढाई में अव्वल थे।बचपन से ही वो अपने देश और यहां के लोगों के लिये कुछ करना चाहते थें। शिक्षक बनकर समाज को कुछ देने की चाह में उन्होने कई अलग-अलग राज्यों के महाविद्यालयों में सेवा प्रदान की और समाज के होनहार बच्चों के उज्जवल भविष्य का कामना मन में लिये निस्छल सेवा प्रदान करते रहें। यहां तक की वो अपने खाली समय में मुक्बधीत बच्चों को भी शिक्षा प्रदान करते थें। मगर उनको क्या पता था की जिन लोगों के लिये वो इतनी मेहनत कर रहे हैं वो खुद उनके जान के दुश्मन बन जायेंगे। डॉक्टर सचिदानंद तिवारी के दो 6 साल के जुड़वा बच्चे हैं। अब सवाल यह उठता है की जिस व्यक्ति ने अपना आधा जीवन लोगों को शिक्षा प्रदान करने में लगा दिया अब उनके बच्चों का कौन ध्यान देगा? क्या शिक्षकों के प्रती समाज का कोई दायित्व नहीं बनता? क्या बिहार पुलिस भी अपनी बिहार की जनता की तरह मुक दर्शक बनकर रह गयी?