बिहार विधानसभा चुनाव 2025-गठबंधनों की ‘जंग’ या होगा ‘बदलाव’


राजीव तिवारी बाबा

लखनऊ। बिहार की राजनीति हमेशा से ही एक जटिल जाल रही है। जाति का जाल और दलीय गठबंधन, लोकलुभावन वादे और आयाराम गयाराम और पलटूराम के मिश्रण के बीच दो चरणों में होने वाले आगामी विधानसभा में यह जाल और उलझा नजर आ रहा है। पारंपरिक रूप से एनडीए (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) और इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) के बीच द्विध्रुवीय मुकाबला रहा है लेकिन इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने खुद को तीसरे विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है। क्या यह गठबंधन ही सत्ता की कुंजी होंगे, या जनता एक नई हवा चाहती है ? क्या प्रशांत किशोर को भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है ? इसका विस्तृत विश्लेषण ‘स्वतंत्र पत्रकार राजीव तिवारी बाबा’ कर रहे हैं इस लेख में….

एनडीए गठबंधन

सत्तासीन गठबंधन एनडीए की बात करें तो गठबंधन की मजबूती लेकिन चुनौतियां बरकरार नज़र आती हैं। एनडीए जिसमें भाजपा, जद (यू), लोजपा (रामविलास), हम (सेक्युलर) और छोटे सहयोगी शामिल हैं, वर्तमान में सत्ता में है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह गठबंधन 2020 के चुनावों में 125 सीटें जीतकर सरकार बना चुका है। अभी दो दिन पहले ही गठबंधन का सीट बंटवारा हुआ बीजेपी नेता और बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “हम एनडीए के साथियों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में सीटों का वितरण पूर्ण किया। B J P-101, J D U-101, L J P (R)-29, R L M-06 और HAM-06; एनडीए के सभी दलों के कार्यकर्ता और नेता इसका हर्षपूर्वक स्वागत करते हैं। बिहार है तैयार, फिर से एनडीए सरकार।

लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर दलों में अंदरखाने हलचल मची हुई है। ‘लोजपा’ के चिराग पासवान और ‘हम’ के जीतनराम मांझी अपनी डिमांड से कम सीटें मिलने से नाराज बताए जा रहे हैं। चुनाव‌ पूर्व के ओपिनिय पोल्स एनडीए को बढ़त दिखा तो रहे हैं मगर ज़मीनी हक़ीक़त में है नितीश कुमार की लोकप्रियता एक मुख्यमंत्री के रूप में गिरी है।केवल 16-23.4% लोग उन्हें सीएम फेस मानते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की चुनाव घोषणा से ठीक पहले शुरू की गयीं लोकलुभावन योजनाएं और उनकी चुनावी रैलियां कितना असर दिखाएंगी ये समय की बात है। कुल मिलाकर, एनडीए ऊपर से तो मजबूत नजर आ रहा है लेकिन नितीश कुमार के प्रति बढ़ती एंटीइनकंबेंसी के बीच जन सुराज का वोट कटवा प्रभाव इसे कमजोर कर सकता है।

इंडिया गठबंधन

इंडिया गठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल, वीआईपी) तेजस्वी यादव के नेतृत्व में जोर-शोर से तैयारी कर रहा है। सीट बंटवारे पर लगभग सहमति हो चुकी है, जिसमें आरजेडी को सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने की उम्मीद है। विपक्ष की एकजुटता के बल पर तेजस्वी की लोकप्रियता अपने चरम पर दिख रही है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के मुताबिक करीब 35-37% लोग उन्हें भावी सीएम मानते हैं।उनका ‘हर घर नौकरी’ वादा युवाओं को लुभा रहा है, और एआई-आधारित वीडियो कैंपेन भी खूब वायरल हो रहे हैं।सी-वोटर पोल में महागठबंधन को 38.3% संभावना बताई गई है, जो एनडीए से थोड़ा ही पीछे है। 36.5% मतदाता मानते हैं कि बिहार के मुद्दों (बेरोजगारी, प्रवासन) को हल करने में विपक्ष बेहतर होगा। कांग्रेस की ‘चार्जशीट’ (नीतीश सरकार पर आरोप पत्र) 9 अक्टूबर को जारी हुई, जो इंडिया गठबंधन के कैंपेन को गति दे रही है। हालांकि, वीआईपी जैसे सहयोगियों की मांगें और वाम दलों की सीमित पहुंच गठबंधन की चुनावी सफलता के लिए एक बड़ी चुनौती हैं।

जन सुराज : तीसरा विकल्प या वोट कटवा

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) ने 2022 में अपनी यात्रा शुरू की जिसमें उन्होंने करीब 5,000 किमी पैदल चलकर 5,500 गांवों का दौरा किया। पार्टी ने सभी 243 सीटों पर स्वतंत्र रूप से लड़ने का ऐलान किया है और 9 अक्टूबर को पहली लिस्ट (51 उम्मीदवार) जारी भी कर दी। लिस्ट में समाज के स्वच्छ छवि के विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गज प्रभावशाली लोगों को जगह मिलने से जन सूराज का तीसरे विकल्प का दावा मजबूत होता दिख रहा है। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘स्कूल बैग’ शिक्षा और युवाओं पर फोकस दर्शाता है।

रणनीतिकार से राजनेता बने 

किशोर, दलीय गठबंधनों की राजनीति के विकल्प के जवाब में कहते हैं “यह जन सुराज और जनता का गठबंधन है, एनडीए या इंडिया से अलग।” ओपिनियन पोल्स में जेएसपी को 7-13.3% वोट शेयर और 2-5 सीटें मिलने का अनुमान है। जबकि सीएम फेस के रूप में प्रशांत किशोर की लोकप्रियता 9-23% से गठबंधन के नेता चिंतित नजर आ रहे हैं। जिसे मानने से पीके साफ इन्कार कर देते हैं। लेकिन किशोर एनडीए की हार की भविष्यवाणी करने से नहीं चूकते हैं। भविष्य में जेएसपी की स्थिति मजबूत हो सकती है अगर यह जाति-आधारित राजनीति से ऊपर उठकर मुद्दों (शिक्षा, रोजगार) पर फोकस रखे और जनता तक उनकी बात सही तरीके से न सिर्फ पहुंचे बल्कि वोट के दिन तक जनता के दिमाग में रह सके।

आम जनता का रुख

चुनाव और नतीजों में बस अब एक माह ही बचा है। अभी भी जनता का मूड मिश्रित नज़र आ रहा है। सोशल मीडिया पर चर्चाओं से साफ नज़र आ रहा है कि युवा बेरोजगारी और प्रवासन से तंग हैं। नितीश कुमार एंटीइनकंबेंसी का शिकार बन सकते हैं तो तेजस्वी ओवर कांफिडेंस का। जबकि पीके को स्वच्छ छवि के बावजूद चुनावी राजनीति में नया होने का नुक़सान उठाना पड़ सकता है। एनडीटीवी के चुनावी चौपाल में युवाओं ने नीतीश, तेजस्वी और किशोर तीनों पर सवाल उठाए।

महिलाओं का वोटर टर्नआउट बढ़ रहा है (कुछ सीटों पर पुरुषों से 20% ज्यादा), जो एनडीए को फायदा दे सकता है। जबकि चुनाव जीतने पर हर परिवार को सरकारी नौकरी के तेजस्वी के ऐलान से युवाओं का इंडिया गठबंधन के प्रति रुझान बढ़ा है।‌

दिलचस्प ये है कि करीब 28% मतदाता (अनिश्चित) दोनों गठबंधनों से नाराज हैं, जो जन सुराज को मौका दे सकते हैं। एबीपी के पोल ट्रैकर में तेजस्वी नंबर वन हैं, लेकिन किशोर का 9% समर्थन चौंकाने वाला है। एक्स पर एक बहस “क्या जन सुराज स्पॉइलर बनेगी?” में जनता जन सुराज को तीसरा विकल्प और किशोर को सीएम उम्मीदवार मान रही है लेकिन सीमित। पोल्स में किशोर को दूसरा स्थान मिला है (23%), जो दर्शाता है कि युवा और ऊपरी जातियां उन्हें विकल्प मान रही हैं।

एक्स पर समर्थक कहते हैं, “पीके बिहार का केजरीवाल बनना चाहते हैं, लेकिन वोट कटवा न बनें।” यात्रा और ग्रासरूट मोबिलाइजेशन से जेएसपी ने ‘क्लीन पॉलिटिक्स’ की छवि बनाई है। अगर जेएसपी 10% से ज्यादा वोट लाई, तो यह किंगमेकर बन सकती है। जनता सतर्क है। परिवर्तन चाहती है, लेकिन धोखे से डरती है। 

निष्कर्ष : त्रिकोणीय जंग के आसार

यह चुनाव ‘मदर ऑफ ऑल इलेक्शंस’ है। एनडीए की ‘स्थिरता’, इंडिया की ‘आक्रामकता’ और जन सुराज का ‘बदलाव’।14 नवंबर को काउंटिंग के बाद साफ होगा कि बिहार ‘डबल इंजन’ पर चलेगा, ‘हर घर नौकरी’ पर, या ‘स्कूल बैग’ की नई शुरुआत पर। जनता का रुख युवाओं पर निर्भर है, जो जाति से ऊपर उठकर मुद्दों को प्राथमिकता दे रही है। इतिहास गवाह है, बिहार में गठबंधन टूटते हैं, वादे भूल जाते हैं। क्या 2025 बदलाव लाएगा? इंतजार कीजिए 14 नवंबर का।


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