लेखक: विजय श्रीवास्तव (सहायक आचार्य , अर्थशास्त्र विभाग , लवली प्रोफेशनल विश्विद्यालय)
सह-लेखक: दीपक कौशल
राजनीति कभी कभी ऐसा शून्य छोड़ देती है , जिसे कभी नहीं भरा जा सकता | भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति का निधन ने एक ऐसा ही शून्य बना दिया है | पर हमें भारतीय राजनीति के सबसे विद्वान नेता का स्मरण उनके विचारों, उनकी प्रबंधन प्रणाली पर उनकी गहरी राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि पर विचार करके ही करना चाहिए | वे अटल की तरह ही राष्ट्रीय राजनीति के अजातशत्रु थे तो साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े संकट मोचक | वे इतिहास के महान अध्येयता होने के साथ अर्थ तंत्र के कुशल महारथी थे | वित्त मंत्री रहते हुए उन्होने राजनीतिक वोट बैंक की चिंता न करते हुए कई बार कड़े निर्णय लिए | वे एक अनुशाषित राजनीतिक शैली के प्रखर हिमायती थे | जब वे 2012 में राष्ट्रपति बने तो उन्होंने ऐसे भारत के निर्माण का सपना देखा जो सविंधान , समता और समानता की रक्षा करे | उनके राष्ट्रपति बनते ही वे राजनीति के एक आदर्श शिखर पर पहुंच गए |
राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे अपनी जड़ों को नहीं भूले थे | हम उनकी सोच को उनके ही जादूई शब्दों से समझ सकते हैं , जो उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद प्रथम अभिभाषण में कहे थे ” बंगाल के एक छोटे से गांव के दीपक की रोशनी से दिल्ली की जगमगाती रोशनी तक की इस यात्रा के दौरान मैंने विशाल और कुछ हद तक की अविश्वसनीय बदलाव देखे हैं उस समय में बच्चा था जब बंगाल में अकाल नहीं लाखों लोगों को मार डाला था |वह पीड़ा और दुख मैं भूला नहीं हूं हमने कृषि उद्योग और सामाजिक ढांचे के क्षेत्र में बहुत कुछ हासिल किया है |परंतु सब कुछ उसके मुकाबले कुछ भी नहीं है जो आने वाले दशकों में भारत की अगली पीढ़ियां हासिल करेंगी” वे इतिहास बोध के प्रखर हिमायती थे और और उनका मानना था कि विद्यार्थियों को अपने गौरवशाली अतीत से जरूर सीखना चाहिए | वे विचारधाराओं के मतभेद के बाद भी ” एक समन्यवादी बहुलता के सिद्धांतों पर चलने वाले भारत के नव निर्माण पर जोर देते थे | उनका मानना था कि “हमारा राष्ट्रीय मिशन वही बना रहना चाहिए जिसे महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू सरदार पटेल राजेंद्र प्रसाद अंबेडकर और मौलाना आजाद की पीढ़ी ने भाग्य से भेंट के रूप में हमारे सुपुदृ किया था गरीबी के अभिशाप को खत्म करना और युवाओं के लिए ऐसे अवसर पैदा करना जिसमें पर हमारे भारत को तीव्र गति से आगे ले जाएं भूख से बड़ा अपमान कोई नहीं है |सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्याय संगत आकांक्षाओं का समाधान नहीं हो सकता| हमें उनका उत्थान करना होगा जो कि सबसे गरीब है जिससे गरीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोष से मिट जाए” अगर वे नए भारत से गरीबी को आर्थिक शब्दकोश से हटाने की बात कहते हैं तो एक संतुलित आर्थिक दृश्टिकोण अपनाते हैं , उनका समाजवादी दर्शन नेहरू की सोच स प्रभावित था किन्तु उनके की सत्ता में रहते हुए देश को सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार और रोजगार का अधिकार मिला | वे भारत की असली कहानी में सभी की समान भागीदारी चाहते थे |
उन्होंने कहा था “वह बात जो हमें कहां लेकर आई है वही हमें आगे लेकर जाएगी भारत की असली कहानी है | इसकी जनता की भागीदारी हमारी धन संपदा को किसानों और काम करो उद्योगपतियों एवं सेवा प्रदाताओं सैनिकों और आसानी को द्वारा आयोजित किया गया है| मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा और सिनागांग के प्रशांत सह्- अस्तित्व में हमारा सामाजिक सौहार्द दिखाई देता है और यह हमारी अनेकता में एकता के प्रतीक है और इसका संरक्षण हमारा कर्तव्य है “|
प्रणव दा विश्व आर्थिक व्वयस्था में शान्ति के लिए नए प्रतिमानों के पक्षधर थे | इसमें उन्होंने अपने इतिहास बोध का भी सार डाला , उनकी दृष्टि में शान्ति समृद्धि का पहला तत्व है ” शांति समृद्धि का पहला तत्व है इतिहास को पराया खून के रंग से लिखा गया है | परंतु विकास और प्रगति के जगमगाते हुए पुरस्कार शांति से प्राप्त हो सकते हैं ना कि युद्ध से 20 वीं सदी के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध के वर्षों की अपनी कहानी है| यूरोप और यही सही मायने में पूरे विश्व में दूसरे विश्वयुद्ध और उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद खुद को फिर से स्थापित किया और परिणाम स्वरुप संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी महान संस्थाओं का उदय हुआ नेताओं ने लड़ाई के मैदान में बड़ी-बड़ी से लाएं उतारी है , और तब उनकी समझ में आया कि युद्ध में गौरव से कई और अधिक बर्बरता होती है| इसके बाद उन्होंने दुनिया की सोच में परिवर्तन करके उसे बदल डाला गांधी जी ने हमें उदाहरण प्रस्तुत करके सिखाया और हमें अहिंसा की परम शक्ति प्रदान की भारत का दर्शन पुस्तकों में कोईअमूर्त परिकल्पना नहीं है | हमारे लोगों के रोजाना की जीवन की फलीभूत हो रहा है जो मान्यता को सबसे अधिक महत्व देते हैं हिंसा हमारी प्रकृति में नहीं है इंसान के रूप में जब हम कोई गलती करते हैं तब हम पश्चाताप और उत्तरदायित्व के द्वारा खुद को उस से मुक्त करते हैं|” उन्होने भारत के लोकतंत्र को विश्व के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में देखा |
वे आधुनिक भारत के ऐसे स्वरुप की कल्पना करते थे जहां राज्य एक दूसरे के साथ सहकारिता के भावना के साथ एक वृहद लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करें | उन्होंने राष्ट्रपति पद को भी जनसेवा का सबसे बड़ा पुरुस्कार बताया | आइये प्रणव मुखर्जी के विचारों पर विमर्श करें और उस शून्य को जो उनके जाने से पैदा हो गया है , उनकी अविरल विचार यात्रा पर विचार करके भरने का प्रयास करें | उनकी सोच एक छोटे से लेख में समेटना सागर की थाह नापना है ! अंत में उनके ही शब्दों में उनके भारत की कल्पना के साथ , भारतीय राजनीति के सबसे बड़े बौद्धिक चिंतक को श्रद्धांजलि ,” मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूं जहां उद्देश्य की समानता से सबका कल्याण संचालित हो जहां केद्र और राज्य केवल सुशासन की परिकल्पना से संचालित हो जहां हर एक क्रांति सकारात्मक क्रांति हो जहां लोकतंत्र का अर्थ केवल 5 वर्ष में एक बार मत देने का अधिकार ना हो बल्कि जहां नागरिकों के हित में बिना भय और पक्षपात के बोलने का अधिकार हो जहां ज्ञान विवेक में बदल जाए जहां युवा अपनी असाधारण ऊर्जा और प्रतिभा को सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रयोग करें जब पूरे विश्व में निरंकुशता समाप्ति पर है | जब उन क्षेत्रों में लोकतंत्र फिर से पनप रहा है , जिन क्षेत्रों को पहले इसके लिए अनुपयुक्त माना जाता था ऐसे समय में भारत आधुनिकता का मॉडल बन कर उभरा है|