बलिया के 315 गांवों के ढाई लाख लोगों की नसों में घुला आर्सेनिक


अफसरों की लापरवाही, परियोजनाओं पर पड़ रही भारी 

आर्सेनिक के संपर्क में आने पर पत्थर भी लाल पड़ जाता है 

मीठा जहर है आर्सेनिक, शरीर को कर देता है खोखला

ब्यूरो,बलियाबलिया के बेलहरी ब्लॉक के गांव गंगापुर के तिवारी टोला के भृगु नाथ पांडेय (52) के शरीर पर काले चकत्ते पड़ गए हैं। पाचन संबंधी समस्याओं से परेशान हैं। सुरेश शाह (40) का परिवार भी चर्म रोग से जूझ रहा है।तिवारी टोला के करीब 50 घरों के 300 लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने के लिए विवश हैं। ये हालात सिर्फ एक गांव के नहीं हैं, बल्कि जिले के 315 गांवों के भी हैं। यहां की करीब ढाई लाख की आबादी की नसों में आर्सेनिक घुल चुका है, जो धीरे-धीरे उनके शरीर को खोखला कर रहा है।

 गांव के रघुनाथ पांडेय कहते हैं कि 2016 में उनके छोटे भाई पप्पू पांडेय की मौत दूषित पानी पीने से हो चुकी है। इसी तरह मां ज्ञानती देवी की भी मौत हो गई थी। भूषण पांडेय कहते हैं, छोटे भाई कपिल मुनि पांडेय के शरीर पर काले चकत्ते पड़ गए थे। सांस की बीमारी हो गई थी। लगातार इलाज के बावजूद कपिल को नहीं बचा पाए।

गांव के सुदामा पांडेय ने बताया कि लाल ततवा का पूरा कुनबा दूषित पानी के सेवन से खत्म हो चुका है। गांव के कपिल मुनि पांडेय, विष्णु गोंड, भारत पांडेय, शांति देवी, नीलम पांडेय, त्रिलोकी पांडेय, पप्पू पांडेय समेत 10 लोगों की मौत का कारण भी आर्सेनिक युक्त पानी पीने से होने वाले दुष्प्रभाव थे। ग्रामीणों का कहना है कि लड़के और लड़कियों की शादी में दिक्कत आती है। लोग उनके गांव में अपने बेटे- बेटियों की शादी नहीं करना चाहते हैं। 

जिले की 940 ग्राम पंचायतों में से 315 के भूजल में आर्सेनिक अधिक मात्रा में है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, आर्सेनिक युक्त पानी के सेवन से फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है। मानव शरीर को छोड़िए, पत्थर भी लाल पड़ जाता है। आर्सेनिक की वजह से जिले में 60 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। हजारों लोग आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी से पीड़ित हैं। सोहांव, दुबहर, बेलहरी, बैरिया एवं रेवती विकास खंड के 55 गांवों में यह खतरनाक स्तर पर है। जाधवपुर विश्वविद्यालय की टीम ने अपनी जांच में यहां के जल में निर्धारित मानक से 140 गुना अधिक आर्सेनिक की पुष्टि की थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानक के अनुसार, आर्सेनिक की प्रति लीटर मात्रा 0.01 मिग्रा होनी चाहिए। मगर भारत सरकार ने 0.05 मिग्रा तय कर रखी है।आर्सेनिक प्रभावित गांवों में शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए ओवरहेड टैंक, आर्सेनिक रिमूवल प्लांट व फिल्टर लगाए गए थे। लेकिन कुछ दिनों बाद देखरेख के अभाव में खराब हो गए। 

इसके बाद हैदराबाद की टीम ने बेलहरी ब्लॉक के पचरूखियां-रामगढ़ के मध्य गंगा नदी में प्लांट बनाने के लिए जगह चिह्नित की। लेकिन 700 करोड़ की यह परियोजना परवान नहीं चढ़ पाई। वर्ष 2017-18 में नीर निर्मल योजना के तहत 37 परियोजनाएं स्वीकृत हुईं। विश्व बैंक से धनराशि भी प्राप्त हो गई।31 मार्च 2020 तक परियोजना को पूरा करना था। मगर 18 परियोजनाओं में समय से काम शुरू नहीं हो पाया। वर्ष 2019 में विश्व बैंक के निर्देश पर जल निगम को धन सरेंडर करना पड़ा। वर्तमान में 3019.32 करोड़ से तीन सतही पेयजल परियोजनाओं पर काम चल रहा है। हनुमानगंज व मनियर सतही पेयजल परियोजना के इंटेक वेल के लिए जमीन का इंतजाम नहीं हो सका है।

मुकीम अहमद, अधिशासी अभियंता, जल निगम ग्रामीण, बलिया ने बताया सतही जल परियोजना के तहत तीन एजेंसियों को अलग-अलग कार्य आवंटित हैं। बेलहरी ब्लॉक में आगामी सितंबर माह से सतही जल परियोजना का संचालन आरंभ हो जाएगा। इसका 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो गया है। इसके बाद लोगों को आर्सेनिक युक्त पानी से मुक्ति मिल जाएगी।

डाॅ. संजीव वर्मन, सीएमओ ने बताया आर्सेनिक से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए कोई विशेष दवा नहीं है। चर्म रोग से ग्रसित लोगों के इलाज के लिए जिला अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टर की तैनाती है। आर्सेनिक से बचाव के लिए पानी को उबाल कर पीना चाहिए। 


सीएमओ डाॅ. संजीव वर्मन ने बताया कि आर्सेनिक युक्त पानी का सेवन करने वालों को चर्म रोग हो जाता है। लगातार सेवन से लोग कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, आर्सेनिक को मीठा जहर कहा जाता है। यह शरीर को धीरे-धीरे खोखला कर देता है। लोगों को सांस संबंधी समस्या भी हो जाती है। इलाज के अभाव में लोगों की जान तक चली जाती है।


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