भाजपा के साथ सहयोगी दलों का भी इम्तिहान


.मझवां सीट पर अपनादल- एस ने झोंकी ताकत

. नई दोस्ती के साथ रालोद की होगी दूसरी परीक्षा

. कैंपेनिंग में निषाद पार्टी को कटेहरी की जिम्मेदारी

योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। प्रदेश की नौ सीटों पर हो उप-चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के साथ उसके सहयोगियों का भी इम्तिहान है। भले इन उप-चुनावों में किसी भाजपा ने किसी सहयोगी दल को कोई सीट न दी हो,बावजूद इसके उनके प्रभाव वाले निर्वाचन क्षेत्रों में उसके प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित कराने की जितनी जिम्मेदारी भाजपा सरकार के मंत्रियों, पदाधिकारियों को है उतनी ही सरकार में शामिल सहयोगी दलों की भी है। इसीलिए चुनाव प्रचार में भाजपा मंत्रियों के साथ- साथ सहयोगी दलों के मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों को लगाया गया है।

केन्द्र और प्रदेश सरकार में शामिल अपनादल-एस तथा राष्ट्रीय लोकदल के कोटे के मंत्री अपने दल के पदाधिकारियों के साथ अपने- अपने क्षेत्र में भाजपा का कमल खिलाने के लिये जी-जान एक किये हुये है। केन्द्र की एनडीए सरकार में तीसरी बार मंत्री तथा अपनादल-एस की मुखिया अनुप्रिया पटेल और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री और उनके पति आशीष पटेल को मिर्जापुर की मंझवा सीट पर भाजपा का कमल खिलाने का दायित्व है। अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से तीसरी बार यहां से सांसद चुनी गयी हैं और ओबीसी प्रभाव वाले इस क्षेत्र में भाजपा ने सुचिस्मिता मौर्य को उम्मीदवार बनाया है। सुचिस्मिता 2017 में यहां से विधायक रह चुकी हैं। 2022 में उनका टिकट काट दिया गया था। इस बार सपा ने यहंा पूर्व सांसद रमेश बिंद की पुत्री डॅा. ज्योति बिंद को मैदान में उतारा है। 2022 में इस सीट पर भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद निर्वाचित हुए थे उनके भदोही से सांसद बन जाने के बाद हो उप-चुनाव में भाजपा ने सुचिस्मिता मौर्य पर दांव लगाया है। जबकि बहुजन समाज पार्टी ने दीपक तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। सपा और भाजपा के ओबीसी प्रत्याशियों के बीच अकेले ब्राम्हण प्रत्याशी होने से राजनीतिक समीकरण में उलट फेर होने की संभावनाओं से राजनीतिक विश्लेषकों का इंकार नहीं है।

अनुप्रिया और आशीष पटेल के प्रभाव वाले क्षेत्र में यदि कमल खिलने के बजाए साईकिल दौड़ी या हांथी चिंघाड़ा तो एनडीए में उसकी स्थिति असहज होगी। इस संभावना से इंकार नहीं है क्योकि यह क्षेत्र उन्हीं के प्रभाव वाला माना जाता है। रालोद के सामने मीरापुर बचाने का जिम्मा केन्द्र और प्रदेश सरकार में शामिल राष्ट्रीय लोकदल की भी इस उप-चुनाव में जिम्मेदारी कम नहीं है। लोकसभा चुनाव से पूर्व रालोद ने सपा से गठबंधन तोड कर एनडीए में शामिल होने का निर्णय लिया था। लोस चुनाव में भाजपा ने रालोद को दो सीटें दी थी जिनमें बिजनौर और बागपत मे उसके उम्मीदवारों ने जीत दर्ज करायी थी। साथ ही प्रदेश में सरकार में उसके कोटे के विधायक अनिल कुमार को कैबिनेट मंत्री बनाया गया और लोकसभा चुनाव के बाद जयंत चौधरी स्वयं केन्द्र में मंत्री बने। 2012 में मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से सपा के सहयोग से रालोद ने अपनी जीत दर्ज करायी थी। तब यहां से चंदन चौहान निर्वाचित हुये थे, जिनके बिजनौर से सांसद चुने के बाद यहंा उप-चुनाव हो रहा है।

भाजपा ने सहयोगी दलों में केवल रालोद को एक सीट दी है। यहां पर रालोद ने पूर्व विधायक मिथिलेश पाल को उम्मीदवार बनाया है जबकि उनके सामने पूर्व सांसद की पुत्रवधू सुम्बुल राणा सपा प्रत्याशी के रूप में डटी हैं। बसपा ने शाहनजर को उम्मीदवार बनाया है। रालोद के प्रभाव वाले इस क्षेत्र में बड़ी संख्या मुस्लिमों की है। किसी उम्मीदवार की हार-जीत में वे निर्णायक भूमिका निभाते हैं। निषाद के भी जिम्मे है कटेहरी की जिम्मेदारी योगी सरकार के सहयोगी दल निषाद पार्टी का भले इस उप-चुनाव में कोई उम्मीदवार न हो लेकिन उसके मुखिया डॅा. संजय निषाद सरकार में कैबिनेट मंत्री है। वे उप-चुनाव में मझवां सहित एक दो और सीटे मांग रहे थे लेकिन भाजपा ने उनकी नही मानी और मझवा से अपना उम्मीदवार उतार दिया।

भाजपा ने उन्हे कटेहरी विधानसभा के हो रहे उप-चुनाव में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव के साथ लगाया है। लोकसभा चुनाव में संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद संतकबीर नगर से एनडीए उम्मीदवार थे लेकिन सपा के लक्ष्मीकांत निषाद ने हरा दिया था। बावजूद इसके भाजपा ने एनडीए में सहयोगी होने के नाते कटेहरी में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव के साथ उन्हे भी यहां प्रचार अभियान में लगाया गया है।


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