लखनऊ। लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व एम.एल.सी सुनील सिंह निजीकरण की घोषित सरकारी नीति के बावजूद सरकार द्वारा निजीकरण व्यवस्था को किए जाने मनसा के पीछे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि चंद् कारपोरेट घरानों को अप्रत्याशित लाभ पहुंचाने के लिए न सिर्फ बिजली, बल्कि कोयला, तेल, रेल, बैंक, बीमा, स्वास्थ्य, रक्षा, शिक्षा आदि सहित संपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण सरकार द्वारा किया जा रहा है सच्चाई यह है कि आर.एस.एस भाजपा का विकास का मॉडल राष्ट्रीय संपत्ति को बेच कर उसे बर्बाद करने का मॉडल है जो राष्ट्रवाद के नाम पर बढ़-चढ़कर प्रचारित किया गया जिसका कि अब पूरी तरह से भंडाफोड़ हो चुका है सरकार की इस तरह की निजीकरण की नीति की कड़ी निंदा होनी चाहिए।
देश की सार्बजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के निजीकरण को कौड़ियों के भाव निपटाया जाएगा
इंडियन ऑयल के पूर्व चेयरमैन संजीव सिंह ने रिलायंस की सेवा ग्रहण कर ली है। मुकेश अम्बानी द्वारा संचालित तेल एवं रसायन समूह के अध्यक्ष के रूप में भारी मुनाफा कमा रही हिंदुस्तान पेट्रोलियम,भारत पेट्रोलियम के बाद इंडियन ऑयल को भी निजीकरण के रास्ते पर खड़ा कर देश की सार्बजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के निजीकरण को कौड़ियों के भाव निपटाने के लिए तैयारी कर ली गई है ? श्री सिंह ने कहा कि पूर्व में भारत पेट्रोलियम के अधिकारी भी रिलायंस जॉइन कर चुके है। जिसके बाद भारत पेट्रोलियम बिकने के लिए बाजार में खड़ा कर दिया गया है। 1971 में सीमा पर युद्ध के समय निजी तेल कंपनियों द्वारा तेल उपलब्ध कराने से इनकार करने पर उनका राष्ट्रीयकरण किया गया था। वर्तमान में सामरिक रूप से भारत संचार निगम लि0 तथा तीनो तेल कंपनियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सुनील सिंह ने कहा कि सभी क्षेत्रों को निजी करण करने के पीछे एक घोटाला भी है।
सुनील सिंह ने कहा कि नीति के अंतर्गत बिजली हरित क्रांति के माध्यम से अन्य के क्षेत्र में हमारे कृषि प्रधान देश को न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाने पर के लंबे अरसे से किसानों को सिंचाई के सस्ते साधन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सुनील सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा सभी क्षेत्रों को निजी करण करने का फैसला हैरानी भरा है चाहे, रेल ,परिवहन, थर्मल, ऊर्जा, पैट्रोलियम आदि में भारी मुनाफा हो रहा है। फिर भी निजी करण का फैसला गरीब, आम जनों व किसानों के हितों के विरुद्ध है। कमाने वाले निजी निवेशकों से सार्वजनिक बैंकों द्वारा सरकार की नीति के तहत उपलब्ध कराए गए ऋण की वसूली की प्रभावी व्यवस्था नहीं की जा रही है बल्कि लाखों करोड़ों रुपयों एन.पी.ए में डाले जाने की तैयारी की जा रही है।