Indigo strike : संकट क्यों, और किस पैमाने पर…


हर संकट एक चेतावनी है, सुधार जरूरी है

शाश्वत तिवारी

Indigo strike : IndiGo का यह 2025 का संकट केवल एक O Operational Failure नहीं था। यह भारतीय घरेलू एयर-यात्रा के सिस्टम की कमजोरी, नियोजित विस्तार में लापरवाही, और यात्रियों के प्रति जिम्मेदारी की अनदेखी का उदाहरण था। हजारों यात्रियों की योजनाएँ टूट गईं, ट्रैवल-एजेंसियाँ, एयरपोर्ट प्रशासन और पूरे विमानन क्षेत्र पर असर हुआ। लेकिन इससे यह भी साफ हुआ कि केवल समय पर रिफंड या मुआवजा देना काफी नहीं है। यात्रियों को विश्वास पुनः दिलाना, भविष्य में ऐसे संकटों की रोकथाम, नियमों का कठोर पालन, और ऑपरेशनल पारदर्शिता, ये बातें समूल नीतिगत सुधार मांगती हैं। आने वाले समय में यदि भारत के विमानन क्षेत्र (एयरलाइंस + नियामक) ने इन सब सबकों को गंभीरता से लिया, तो यह सिर्फ एक “इमरजेंसी” नहीं, बल्कि सुधार की शुरुआत बन सकती है।

भारत की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन IndiGo ने दिसंबर 2025 की शुरुआत में अचानक बड़े स्तर पर कई उड़ानें रद्द या विलंबित कर दीं। इस संकट ने, न केवल यात्रियों की योजनाएँ चौपट कीं, बल्कि ट्रैवल उद्योग, एयरपोर्ट व्यवस्थाएँ, और भरोसा-संवेदनशीलता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को भी झकझोरा। यह संकट, चाहे यात्रियों की असुविधा के दृष्टिकोण से हो, या जन-तंत्र में नागरिकों के प्रति ज़िम्मेदारी के Airlines और नियामक दोनों के लिए एक संकेत है कि वृहद् ऑपरेशनल प्रबंधन की अनदेखी लंबे समय में कितना भारी पड़ सकती है।

नए नियम और तैयारियों में कमी, इस संकट की असली वजह थी crew-r o s t e ring (पायलट / क्रू शेड्यूल) में व्यापक असंगति। 2024 में, Directorate General of Civil Aviation (D G C A) ने नए Flight Duty Time Limitation (F D TL) / Rest-norms लागू किए थे। इन नियमों के अनुसार पायलटों और क्रू मेंबर्स को पर्याप्त आराम अवधि मिलनी चाहिए, ताकि fatigue (थकावट) कम हो, ये नियम सुरक्षा व आरामदायक उड़ानों के लिए थे। 

लेकिन, इंडिगो ने अपनी तैयारियाँ पूरे तरीके से नहीं की, पायलटों और स्टाफ की भर्ती सीमित रखी, क्रू-शेड्यूल और विमानों की संख्या में विस्तार करते हुए आवश्यक मानव संसाधन नहीं जोड़ा।  इस तरह नए नियम शुरू होते ही डिज़ाइन किए गए शेड्यूल और वास्तविक क्रू उपलब्धता में द्वंद्व उत्पन्न हो गया, जिसका परिणाम विमानों की उड़ान रद्दीकरण (cancellation) और देरी के रूप में सामने आया। 

IndiGo वर्षों से “lean-staffing” / “non-poaching” / “pay-freeze” जैसी रणनीतियाँ अपना रहा था। यानी स्टाफ संकटन (हायरिंग) पर अंकुश, ताकि लागत कम रहे। लेकिन इसने आवश्यक सुरक्षा/शेड्यूल लचीलापन (flexibility) गंवा दिया। इसके अतिरिक्त एयरलाइन ने अपनी बेड़े (fleet) और नेटवर्क (routes + frequency) दोनों में विस्तार किया। शायद इसलिए कि डिमांड रहा है, लेकिन मानव संसाधन (पायलट, क्रू) उसी अनुपात में नहीं बढ़ाया गया। अन्य कारणों में तकनीकी समस्याएँ और एयरपोर्ट स्तर पर भीड़, baggage-handling समस्याएं भी बताई गई हैं।  हजारों प्रभावित दिसंबर 1–8 के बीच अकेले मुंबई एयरपोर्ट पर 905 फ्लाइट्स रद्द और 1,475 से अधिक उड़ानों में देरी हुई, जिससे करीब 2.6 लाख (260,000) यात्री सीधा प्रभावित हुए। देशभर में कुल मिलाकर, संकट के दौरान 3,400 — 4,000+ फ्लाइट्स रद्द हुए।  उदाहरण के लिए 5 दिसंबर को अकेले लगभग 1,600 उड़ानें रद्द हुईं। 

6 दिसंबर को 11 बड़े एयरपोर्ट्स पर 570+ उड़ानें रद्द, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, लखनऊ आदि शामिल। 

लखनऊ (जहाँ हम हैं) के Chaudhary Charan Singh International Airport पर 4 दिसंबर को 6–7 फ्लाइट्स रद्द हो गईं, जिनसे दर्जनों यात्री प्रभावित हुए। कई लोग घंटों एयरपोर्ट पर कतार में खड़े रहे, लेकिन उन्हें कोई ठोस सूचना नहीं दी गई। हजारों लोग काम, परिवार, शादी-व्यवहार, हनीमून, ट्रैवल प्लान्स इत्यादि सब प्रभावित हुए। कई यात्राएँ रद्द हो गईं, महत्वपूर्ण कार्यक्रम मिस हुए।उदाहरण के लिए एक समाचार में बताया गया कि करीब 650 नवविवाहित जोड़ों की हनीमून उड़ानों के रद्द होने से हनीमून यात्रा असंभव हो गई। ट्रैवल एजेंसियों को भी भारी आर्थिक व प्रतिष्ठात्मक नुकसान हुआ। 

इसके अलावा देरी और रद्दीकरण की वजह से कई लोग अपने अन्य जुड़ी हुई यात्राएँ, कनेक्टिंग फ्लाइट्स, होटल-ट्रैवल बुकिंग इत्यादि बदलने या रद्द करने पर मजबूर हुए। जिससे न केवल बड़े पैसों की हानि हुई, बल्कि मानसिक तनाव और असुविधा भी। रिपोर्ट्स बताती हैं कि 9,000 से अधिक बैगेज में देरी हुई। एयरपोर्ट पर यात्रियों की साझा भीड़, स्लो सेवा, काउंटर-कॉनफ्यूजन, और कर्मचारियों व कुछ स्थानों पर यात्रियों के बीच झड़प या झुंझलाहट जैसी स्थिति बनी। कई यात्रियों ने सोशल मीडिया पर अपने गुस्से और निराशा को  किया। 

ट्रैवल एजेंसियों, होटलों, कॉन्यूक्शन सर्विस प्रोवाइडर्स, कनेक्टिंग ट्रांसपोर्ट क्षेत्र, सब प्रभावित हुए। आर्थिक मुआवज़ा रिफंड और भरोसे का संकट खड़ा होने पर सरकार (वायु यात्रा विभाग) ने आदेश दिया कि, रद्द या प्रभावित उड़ानों का पूरा रिफंड दिया जाए, और कोई reschedule-fee न लिया जाए। रिपोर्ट के अनुसार 21 नवम्बर–7 दिसंबर के बीच करीब 9,55,591 P N R s रद्द/रिफंड हुए, जिसमें लगभग ₹827 करोड़ का भुगतान हुआ। इसके बावजूद कई यात्रियों ने अभी तक रिफंड / बैगेज / समर्थन न मिलने की शिकायत की है। कई लोग ठहरने, खाने, संपर्क-सुविधा आदि के अभाव में पड़े रहे। संकट बढ़ने पर सरकार ने एक चार-सदस्यीय उच्च-स्तरीय जाँच समिति गठित की, जो हादसे की जड़ खोजने, जवाबदेही तय करने और भविष्य के लिए सुधार सुझाने के लिए काम करेगी।  इसके साथ ही 24×7 हेल्पलाइन स्थापित की गई, ताकि प्रभावित यात्रियों की शिकायतें सुनी जा सकें, रिफंड , विकल्प , सहायता प्रदान की जा सके। सरकार ने कहा है कि किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी, यदि एयरलाइन ने अपने दायित्वों का पालन नहीं किया तो, regulatory action लिया जाएगा। वहीं, IndiGo ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है और स्वीकार किया है कि crew shortage, technical issues, और नए नियमों के काम करने में असमंजस के कारण यह संकट हुआ। 

6 दिसंबर को कंपनी ने कहा कि वे नेटवर्क को reboot कर रहे हैं। यानी शेड्यूल और रोस्टर नए सिरे से तैयार कर रही हैं, और अगले कुछ दिनों में सामान्य संचालन पुनः शुरू करने की कोशिश कर रही है। साथ ही स्टाफ़िंग (क्रू) वृद्धि, रिफंड प्रक्रिया, बैगेज डिलीवरी, alternate travel suggestions आदि व्यवस्थाएँ शुरू की गई हैं।  कुछ यात्रियों ने यह आरोप लगाया कि एयरलाइन ने नियमों के लागू होने से पहले ही अपरेशन बढ़ा दिया। लागत बचाने के लिए, पायलटों और क्रू को पर्याप्त नहीं रखा, और अब नीतिगत फिसलन के कारण यात्रियों के हितों को भारी नुकसान हुआ। ये प्रतिक्रियाएँ सिर्फ व्यक्तिगत अनुभव नहीं थे, बल्कि जनता के विश्वास और विमान यात्रा की विश्वसनीयता पर असर डालने वाले संकेत थे।

यह घटना दिखाती है कि बड़े पैमाने पर नेटवर्क विस्तार के समय, केवल विमानों की संख्या बढ़ाना पर्याप्त नहीं। मानव संसाधन, क्रू मात्रा, शेड्यूल लचीलापन, back-up plans, बेजबागेज लॉजिक आदि पर समुचित विचार और तैयारी होनी चाहिए। नए F D TL / rest-norms लागू करना सुरक्षा व यात्रियों की भलाई के लिए था। लेकिन नियमों को कुशलता से लागू करने के लिए एयरलाइन को समय से पूर्व योजना बनानी चाहिए थी। नहीं कि last-minute scramble। यह बताता है कि लाभ (कम खर्च, अधिक उड़ानें) और सुरक्षा , सेवाओं के बीच संतुलन बनाना कितना जरूरी है।

यह संकट साबित करता है कि regulator (D G C A) और सरकार को airlines की योजनाओं, रोस्टर, शेड्यूल और स्टाफिंग पर समय-समय पर निगरानी रखनी चाहिए। केवल नियम जारी करना पर्याप्त नहीं। एक बार जब परिवार, हनीमून, बिजनेस-ट्रिप्स, कनेक्टिंग यात्राएँ बिगड़ जाएँ, तो यात्रियों की पकड़ उड़ जाती है। जैसे यात्रा करना एक सेवा है, उसी तरह “विश्वास” भी एक सेवा है। अगर एयरलाइन समय पर सूचना, रिफंड, बैगेज हैंडलिंग आदि नहीं दे पाती, तो खोया हुआ विश्वास फिर से पाना बेहद मुश्किल हो जाता है।

भविष्य में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए चाहिए कि एयरलाइन पहले से alternate flights / standby crew / over-booking buffers बनाए रखें। यात्रियों को तुरंत, स्पष्ट और t r a n s p a r e n t e सूचना दें।

रिफंड / alternate transport / accommodation विकल्प समय से सुझाएँ।

एयरपोर्ट-स्तर पर baggage, crowd-management, ग्राहक सेवा सुधारें।


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