
शाश्वत तिवारी
Lucknow : SIR फॉर्म क्या आया पूरा समाज पानी पूरी वाली लाइन की तरह खड़ा हो गया। तीन अक्षरों का फॉर्म, लेकिन इतना गहरा कि अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोगों का “हम तो सब जानते हैं” वाला भ्रम फट से टूट गया। इसे रिश्तों की रियलिटी चेक ही कहा जाए तो गलत नहीं होगा, SIR ने साफ बता दिया कि मां-बाप, दादा-दादी ही असली रिश्ते हैं, बाकी सब “जान-पहचान सूची” में आते हैं और मज़ेदार बात ये कि, बेटियाँ शादी के बाद कितनी भी दूर चली जाएँ, रिश्ता मायके से ही साबित होता है। कागजों में, समाज में, और दिल में।

टूटे हुए रिश्तों में अब नेटवर्क सिग्नल वापस आ गया है, सालों से बात न करने वाले लोग अब फॉर्म भरवाने के नाम पर बीवी के मायके जा रहे हैं, बेटियाँ गाँव लौट रही हैं, लोग दस्तावेज़ ढूँढते-ढूँढते वंश-वृक्ष खोज रहे हैं। SIR ने वो रिश्ते जोड़ दिए जो व्हाट्सऐप भी नहीं जोड़ पाया। SIR के आगे हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सब एक ही काउंटर पर लाइन में खड़े, एक ही पेन से फॉर्म भरते हुए, देखे जा रहे हैं। SIR ने वो कर दिया जो नेताओं की रैलियाँ नहीं कर पाई सबको एक ही नाव में सवार कर दिया।
पुरानी यादें को सदैव संभाल कर रखते तो आज हो रही परेशानी कभी नहीं होती। रिमाइंड मोड में लोग आज फिर वही जगह ढूँढ रहे, जहाँ माँ-बाप रहा करते थे, दादा-दादी की छाया थी और बचपन की धूल थी। किराएदार अपने मां-बाप का नाम उसी मकान मालिक से पूछ रहे हैं। जिसे कभी किराया देना पड़ता था। इतिहास अब फेसबुक पोस्ट नहीं, घर-घर की खोज बन गया है। शिक्षा की असली औकात सामने आ गई है। SIR ने बता दिया, यह दुनिया पैसा नहीं, दस्तावेज़ माँगती है। शिक्षा सिर्फ नौकरी नहीं, अपना वंश और पहचान जानने की योग्यता भी है।
पुरखे सिर्फ फोटो नहीं एक अति महत्वपूर्ण साक्ष्य भी हैं। SIR ने साबित कर दिया कि मां-बाप मरकर भी काम आते हैं, वे कागज़ों में, यादों में, और वंश में ज़िंदा रहते हैं। इसलिए उन्हें याद करो, सम्मान दो, और अपनी जड़ें बच्चों को भी बताओ।आज से सच सबसे चुभता है, जब किसी से पूछा, “तुम्हारे दादा-दादी, नाना-नानी का नाम?” तो आधे लोग नेटवर्क खोजते हैं, बाकी आधे गूगल नहीं, मम्मी को कॉल करते हैं। ये सिर्फ जानकारी नहीं, कटी हुई जड़ों की निशानी है। SIR अभी शुरू हुआ है, आगे कितने किस्से, कितनी कहानियाँ और कितने राज खुलेंगे, बस इंतज़ार करिए, देश भर में वंशावली का महाकाव्य लिखने वाला है।