New delhi news: राजधानी की हवा लगातार खतरनाक श्रेणी में लटकी है। जबकि एमसीडी की मशीनें बढ़ीं, चालान बढ़े, टीमें तैनात हुईं, लेकिन हवा साफ नहीं हुई। एमसीडी का दावा है कि उसने इस साल वायु प्रदूषण से मुकाबले के लिए अब तक की सबसे बड़ी कवायद शुरू की है, मगर जमीन पर हालात बताते हैं कि नतीजे बेहद कमजोर हैं। धूल, सीएंडडी कचरा, कचरा जलाना और स्थानीय स्रोत आज भी लगभग उसी ताकत से हवा को जहरीला बना रहे हैं, जैसे पहले बनाते थे।

इतना कुछ किया पर सब नाकाम
एमसीडी के अनुसार, उसके पास 6,130 किमी सड़कें हैं जिन पर धूल रोज जमा होती है और यही दिल्ली के प्रदूषण का सबसे बड़ा हिस्सा बनती है। उसने 52 मेकेनिकल रोड स्वीपर्स लगा रखे हैं, 150 टन तक धूल रोज उठाई जा रही है, 167 वॉटर स्प्रिंकलर और 28 मोबाइल एंटी स्मॉग गन भी तैनात हैं। ग्रेप के समय इन मशीनों का ऑपरेशन समय भी बढ़ा दिया गया। लेकिन हवा में धूलकणों की मात्रा कम नहीं हुई। कई इलाकों में स्वीपर मशीनें आधी क्षमता पर चल रहीं, स्प्रिंकलिंग अनियमित और मैनुअल सफाई अब भी मुख्य आधार है। मशीनरी बढ़ाने के दावे तो हैं, मगर मशीनें कितनी जगहों पर कितनी बार और कितनी कुशलता से चलीं।
जुर्माना तक लगाया
एमसीडी ने जनवरी-अक्तूबर तक 1,582 चालान, 2.69 करोड़ का जुर्माना लगाया। वहीं सर्दियों को देखते हुए एमसीडी ने 356 टीमें और 1385 अधिकारी मैदान में उतारे हैं। खुले में कचरा जलाने पर 379 चालान, सीएंडडी पर कड़े दंड वाले आंकड़े कागज मजबूत करते हैं। लेकिन हवा में सुधार नहीं हुआ।
दूर करनी होगी ये कमी
बताया जा रहा है कि टीमें मौके पर देर से पहुंचती हैं, रात में निगरानी बेहद कमजोर, कचरा जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ती रहीं और कई क्षेत्रों में ग्राउंड-स्टाफ की संख्या काम के मुकाबले कम है। इस कारण दिल्ली के प्रदूषण हॉटस्पॉट आनंद विहार, नरेला, बवाना, ओखला आदि लगातार ‘पुअर’ से ‘सीवियर’ श्रेणी के बीच झूलते रहते हैं और 13 हॉटस्पॉट पर मल्टी-एजेंसी एक्शन प्लान लागू है।