पर्व और प्रदूषण

रघु ठाकुर
दिल्ली। इस दीपावली के पूर्व यानि 19 अक्टूबर 25 को देश में 1 लाख से अधिक कारों की बिक्री हुई, ऐसे समाचार मीडिया में आये हैं। जबकि यह केवल धनतेरस का दिन था। दिवाली की खरीद कई दिन चली है क्योंकि पंडितों ने, दो दिन की धनतेरस कर दी है। इस कार और दोपहिया वाहनों की खरीदी में वृद्धि के लिये कई कारण बताये जा रहे हैं।
1. जीएसटी की दरों में कमी होने की वजह से 80 हजार रुपये से 1 लाख रुपये तक प्रत्येक वाहन पर कम हो गये हैं।
2. बैंकों और फायनेंस कंपनियों द्वारा चार पहिया और दो पहिया वाहनों के लिये अति सरलीकृत तरीके से ऋण व्यवस्था शुरू हुई है, यहाँ तक कहा जाने लगा है श्बस एक कॉल-कार आपके द्वार्य और इसलिये अब कारों को खरीदने की होड़ है।
3. 1 नवंबर 2025 को देवउठनी ग्यारस है और शादी विवाह शुरू हो जायेंगे। इसलिये जिन लोगों को शादी विवाह में गाडि़याँ भेंट करना है उनमें से कुछ लोगों ने अभी गाड़ी खरीदना बेहतर समझा ताकि बाद में नंबर न लगाना पड़े।

चार पहिया वाहनों की खरीद पर देश में कार उद्योगपतियों के पास 20 हजार करोड़ रुपया पहुंचा है और अगर 10 प्रतिशत भी मुनाफा मान लिया जाये तो न्यूनतम मुनाफा 2 हजार करोड़ रुपये कार निर्माताओं को तिजोरियों में मात्र एक दिन में पहुँच गया। इनमें से अधिकांश कारों को खड़ी करने के लिये पार्किंग की जगह तक नहीं है।अधिकांश कारें सड़कों पर खड़ी रहती है, जिससे जाम लगता है। नई कारों की गति बहुत तेज होती है और हमारी नई युवा पीढ़ी, जिसका अधिकांश हिस्सा संस्कार विहीन है, वह इतनी तेज रफ्तार से गाडि़यां चलाता है जिससे दुर्घटनायें बढ़ती हैं। इससे कई बार वे खुद भी मरते हैं और कई निर्दोषों को भी मार देते हैं। भारत सरकार की सूचना के अनुसार 1 वर्ष में औसतन एक लाख 72 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं। जिनमें से लगभग 35 हजार से अधिक लोग फुटपाथ व सड़क पर चलने वाले लोग होते है जो मौत के शिकार होते हैं। यह तो एक पहलू हुआ, दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि देश में प्रदूषण इतना बढ़ रहा है और इतना घातक हो चुका है जिसकी कल्पना भी करना कठिन है।
इस बार की दीपावली प्रदूषण की दीपावली बन गयी। देश की राजधानी दिल्ली के अनेक इलाकों में प्रदूषण का स्तर 400 ए.क्यूआई के पार पहुँच गया था, जो व्यक्ति के लिये घातक है। पिछले 2 वर्षों से भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजधानी के में पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था। परंतु इस बार मुख्य न्यायाधीश की बैंच ने र्ग्रीन पटाखों के नाम पर स्वीकृति दे दी। एक कटु सत्य तो यह है कि ग्रीन पटाखे तो कहने के होते हैं वस्तुतरू पटाखे-पटाखे होते हैं जो बहुत धुआं छोड़ते हैं। यह धुआं सड़कों व घरों में भरता है तथा इंसान की जान के लिये घातक हो रहा है। श्वांस की बीमारियां बहुत बढ़ गई हैं। जिस प्रकार के भारी-भारी बम बनाये और चलाये जा रहे हैं, उनसे होने वाले धुयें और ध्वनि प्रदूषण की कल्पना दिल्ली या शहरों में बैठे सत्ताधीशों, महलों के मालिकों, बड़े-बड़े फार्म हाउस के मालिकों को और माननीय न्यायाधीशों को नहीं हो सकती है।
जब तंग गलियों में ये बड़े-बड़े बम फूटते हैं तो कंपन से दीवारें हिल जाती हैं। बीमार व्यक्ति और हृदय रोगियों को घबराहट होती है और अनके लोग हृदयघात के शिकार हो जाते हैं। गलियों में भरा हुआ धुआँ का एक मात्र विकल्प इंसान के नाक,मुँह से शरीर में प्रवेश करना होता है है, त्यौहार के बाद का अध्ययन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि दीपावली के पटाखों के प्रदूषण से श्वास की बीमारियों और पीडि़तो की भारी भीड़ अस्पताल में लाइन लगाये है। यह प्रचार किया गया था कि स्वदेशी के सरकारी आह्वान के कारण स्वदेशी पटाखे चले हैं, परंतु तथ्य यह है कि स्वेदशी के नाम पर अधिकांश पटाखे चीनी होते हैं और अधिकांश चतुर पटाखा व्यापारियों ने चीन के पटाखों पर मेड इन इंडिया का लेबल चिपका दिया तथा भारी मुनाफे में पटाखे बचे।
इस बार भारत की सरकार और सरकारी पार्टी ने भी पटाखों के लिये जोरदार अभियान चलाया और यहाँ तक कहा जा रहा है कि अब सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा पटाखों पर लगाई गई रोक सनातन के खिलाफ थी। इसी आधार पर भीतर-भीतर एक हिन्दू मानस बनाने का अभियान भी चलाया जा रहा है। देश के प्रमुख मीडिया में दीपावली पर्व के गौरवशाली वर्णन, इतिहास और भगवान राम के साथ उसका रिश्ता जोड़कर लोगों को उत्साहित किया गया, ताकि लोग जमकर पटाखे खरीदें और फोड़ें। कई लोगों के मन में एक प्रकार की अंतर धार्मिक प्रतिद्वंदिता भी इस जुनून में पैदा हो गई थी कि इस उत्साह से लोग और अधिक पटाखे फोड़े। उन्हें अगले दिन या भविष्य की चिंता नहीं थी कि अगले दिन की सुबह उनके घरों के बुजुर्गों की क्या स्थिति होगी? उनके खुद के स्वास्थ्य पर क्या असर होगा, बस एक प्रकार का जुनून था।
योजनाबद्ध ढंग से पर्व-संस्कृति अभियान के नाम से यह प्रचारित किया जा रहा है कि पर्व को जोर-शोर से मनाना ही राष्ट्रवाद है और भारत व सनातन की जीत है। दुनिया में सभी देशों में यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका में लोग पर्व अपने-अपने धर्म के आधार पर मनाते हैं, उनके कुछ तार्किक और ऐतिहासिक पक्ष भी होते हैं। सिख भाई पंजाब में लोहड़ी का पर्व मनाते हैं जो उनकी फसल कटाई और अच्छी खेती और काम के बाद का सुख पर्व होता है। केरल में भी ओणम जैसे पर्व मनाये जाते हैं। इसका संबंध वहाँ के संपन्न और सफलता से होता है। ईसाई भाई भी बड़ा दिन यानि 25 दिसंबर को मनाते हैं। जो सुख और समृद्धि का दिन है। मुस्लिम भाई साल में दो बार ईद का पर्व मनाते हैं, बौद्ध भी बोधि उत्सव मनाते हैं। इस प्रकार लगभग सभी धर्मों में कुछ न कुछ पर्व मनाने की परंपरा है जो लोगों को सामूहिक आनंद और खुशी देते हैं तथा उत्साह से भरते हैं। परंतु भारत में कुछ दिनों से पर्वों की संख्या निरंतर वृद्धि पर है। खोज खोजकर नये-नये पर्वों को मनाने के लिये प्रेरित किया जा रहा है।
यदि भारत के त्यौहारों और पर्वों की गणना की जाये तो शायद कई माह के बराबर त्यौहार और पर्व हो जायेंगे, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों की उन्माद अतिरेकी की सहभागिता होती है।कई बार ऐसा लगता है कि शायद इन नये-नये पर्वों और उत्सवों के पीछे राजनीति और बाजार है। क्योंकि पर्वों के नाम पर जो खरीददारी होती है वह बाजार का पेट भरती है और गरीब की जेब खाली करती है। बाजार नियंत्रित कारपोरेट मीडिया को विज्ञापन मिलते हैं, अधिकारी-कर्मचारी को छुट्टियां मिलती हैं। पंडि़तों और पुजारियों को पर्व से काम मिलता है, और राजनीति को खुराक मिलती है, यानि वोट का फायदा होता है। इसलिये पिछले कुछ वर्षों से नये-नये त्यौहार और पर्व खोजे जा रहे हैं तथा उन्हें अतीत की घटनाओं से जोड़कर श्पर्व संस्कृत्यि बताया जा रहा है।
इस बार की दिपावली पर्व श्पंच दिवसीय्य रहा, 2 दिन धनतेरस तीसरे दिन दीपावली चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पाँचवे दिन भाई दूज। अब तो हालात यह हैं कि धनतेरस की खदीदी के लिये कार-कपड़े ट्रेक्टर, मकान, सोना-चांदी आदि के लिये अलग-अलग मुहूर्त बताये जाते हैं। कुल मिलाकर पंडित और पुजारी बाजार के सहायक बन जाते हैं और बाजार बिक्री के मुनाफे की खेती करता है और राजनीति वोट की खेती तैयार कर लेती है। इस दीपावली पर पटाखों के नाम पर कितनी बारूद का इस्तेमाल हुआ है उसकी कल्पना एक आंकड़े से की जा सकती है। दुनिया में हथियारों के बिक्री व संग्रह की जानकारी रखने वाली प्रमाणिक संस्था एसपीआरआई (शिपरी) ने बताया है कि रूस ने यूक्रेन पर औसतन एक दिन में जो हथियार चलायेे जाते हैं उसमें लगभग 20 हजार टन बारूद प्रतिदिन खर्च होता है। जबकि भारत में इस दीपावली के एक दिन में 60 हजार टन बारूद के पटाखे चले। यानि 3 दिन के रूस यूक्रेेन युद्ध के बराबर बारूद के पटाखे चले।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अपने निर्णय पर यानि पटाखे के प्रतिबंध को हटाकर अनुमति देने पर स्वतरू विचार करना चाहिये था। परंतु ऐसा लगता है कि मुख्य न्यायाधीश महोदय एक याचिका की सुनवाई में भगवान विष्णु के बारे में तार्किक टिप्पणी करने के बाद हुई प्रतिक्रियाओं से मानसिक रूप से प्रभावित हो गये हैं। राकेश किशोर नामक वकील ने जो हरकत की और पीठ पर जूता फेंका तथा मुख्य न्यायाधीश महोदय की टिप्पणी को सनातन का अपमान बताने का प्रयास किया। इस प्रचार से मु. न्यायाधीश महोदय इतने अधिक मानसिक रूप से प्रभावित हो गये कि उन्होंने न सनातन और पर्व संस्कृति के नाम पर पटाखा चलाने की जनविरोधी खेल की खुली छूट दे दी।
मेरी राय में उन्होंने सनातन विरोधी होने के प्रचार के भय से ऐसा निर्णय किया है जो स्वतरू सनातन की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। अयोध्या में दीपावली उस दिन मनायी गयी थी जिस दिन भगवान राम रावण को हराकर वनवास से लौटे थे, वह केवल एक महान घटना का स्वागत था। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों ने या कृष्ण ने कोई दीपावली नहीं मनाई। किसी शास्त्र में ऐसा कृष्ण द्वारा जीत का पर्व मनाने का कोई उल्लेख नहीं है। पर्व मानवीय उत्साह की प्रतिक्रिया होती है। और उसे बाजार के हाथों, अतार्किकता के हाथों या अंधविश्वास के हाथों में सौंपना गलत व कमजोर निर्णय है। जो अपनी ही समाज, को नुकसान पहुँचा रहा है।