रघु ठाकुर
नई दिल्ली। इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय से लेकर मीडिया तक कुत्तों के आतंक की चर्चा तेज है। समूचे देश में 2024 में लगभग सैतीस लाख पंद्रह हजार कुंत्तों के काटने की घटनायें हुई और काफी लोग इसके चलते मौत के शिकार हुये हैं। देश की राजधानी दिल्ली की हालत यह है कि पाश कॉलोनियों के बगीचों में घूमने वाले अफसरों को भी अब कुत्ते अपना शिकार बना रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे आवारा कुत्तों के भय से घरों में कैद हैं और उनके माता-पिता उनके लिये भयभीत है। दूसरी तरफ , राजधानियों और महानगरों तक में पर्याप्त मात्रा में रेबीज की रोकथाम की उपलब्धता नहीं है, ग्रामों व कस्बों की तो चिंता किसे है ? यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। देश की सर्वोच्च अदालत दिल्ली की कुत्ता समस्या को समाधान करने के लिये परेशान है। एक तो यह ही विचित्र है कि कुत्तों की समस्या को लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा है और इससे सर्वोच्च न्यायालय के कई दिन इस समस्या पर सुनवाई में जाया हो रहे है।

अंतराष्ट्रीय पटल की तर्ज पर देश में पैट लवर्स की एक नई उच्च मध्यवर्गीय बिरादरी पैदा हुई है, जो सड़क के आवारा कुत्तों को खिलाना अपना पशु प्रेम मानते हैं। वैश्विक संस्थाओं के प्रभाव में भारत सरकार ने भी एनिमल प्रोटेक्शन के नाम एक कानून बना लिया। परिणाम स्वरूप इन आवारा कुत्तों की संख्या भारी बढ़ गई है। ये आवारा कुत्ते, अब केवल काट ही नहीं रहे, बल्कि बच्चों को तो पूरा चीथकर खा रहे हैं। ये, वाकायदा दो पहिया वाहन वालों के पीछे दौड़ते हैं,जिसके परिणाम स्वरूप कई गंभीर दुर्घटनाएं हो रही है। जब कुत्तों के काटने पर पीडि़तों की संख्या बढ़ी, और विशेषता जब, राजधानी और महानगरों के लोग कुत्तों के शिकार होना शुरू हुये तब मीडिया में खबरें आना शुरू हुई। उच्च वर्गीय परिवारों के लोग पार्कों में घूमते हुये भी कुत्तों के शिकार होने लगे, तब सरकारें और मीडिया कुछ सावधान हुआ और न्यायपालिका भी सक्रिय हुई। कुछ वर्ष पहले देश में यह निर्णय हुआ था कि कुत्तों का परिवार नियोजन किया जाये और उन्हें वैक्सीन लगाई जाये जिससे उनकी पैदावार की संख्या कम हो जाये, परंतु यह सोच व निर्णय भी अव्यावहारिक था। आखिर इतने बड़े देश में नगर निगम या नगर पालिकाओं के अल्प कर्मचारी जो निगम का मूल काम तो कर नहीं पाते वे कैसे इन आवारा कुत्तों को पकड़ेंगे, जिनकी संख्या लाखों में है ? तथा जिन्हें पकडऩा भी आसान नहीं था बल्कि जोखिम भरा था। क्या कुत्तों के पीछे बेचारे कर्मचारी वैक्सीन लेकर दौड़ते और अगर वे काटते तो क्या वेक्सीन उन्हें बचा पाती। यह घोर अमानवीय और मूर्खता पूर्ण निर्णय व कल्पना थी।
हमारे देश की अफसर शाही और सत्ताधीश कितने जमीन से कटे है, यह इसका प्रमाण है। और यह निर्णय अंतत: लगभग असफल हुआ। अब दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की बेंच उन चार याचिकाओं की सुनवाई कर रही है जो लंबित है। यहां तक कि मुख्य न्यायाधीश ने भी कहा है कि मैं खुद इसे देखूंगा ? इसी बीच एक और निर्णय किये जाने की चर्चा है कि इन आवारा कुत्तों के लिये शेल्टर होम बनाये जायें और अब मीडिया ने भी यह खोज शुरू कर दी है कि किस शहर में कितने शेल्टर होम बने हैं और कितने शहरों में नहीं बने। ये शेल्टर होम कितने जमीन पर बनेंगे, वहां कुत्तों को खाना कौन व किस फंड से देगा, वहां कितने कर्मचारी होंगे, बीमारी फैलने पर कैसे इलाज होगा आदि प्रश्नों पर विचार किये बगैर यह नया शगुफ़ा छोड़ दिया गया। जबकि सरकारी आंकलन के अनुसार देश में 1 करोड़ 53 लाख आवारा कुत्ते हैं। हमारा समाज कितना मानवीय समाज है हमारे देश की संस्थाएं कितनी संवेदनशील हैं कि वह आवारा कुत्तों के लिये शेल्टर होम बनाने के लिये तैयार हैं जबकि देश में करोड़ों भिखारी और बेरोजगारों के लिये शेल्टर होम नहीं है। जो थोड़े बहुत रैन बसेरा हैं वे भी अपर्याप्त हैं। सरकारी व अन्य सूत्रों के अनुसार अभी अकेले दिल्ली में 3 लाख आवारा कुत्ते हैं अब इनके लिये सूचनाओं के अनुसार लगभग 3000 शेल्टर होम लगेंगे। इन शेल्टर होम के लिये कर्मचारी लगेंगे, जमीन की आवश्यकता होगी और एक भारी खर्च इस पर होगा। एक शेल्टर होम में, केवल 100 मेहमान कुत्तों की व्यवस्था होगी। इसी आधार पर समूचे देश में 1 लाख 53 हजार शेल्टर होम की आवश्यकता होगी।
हमारे देश की एक पशु प्रेमी महिला श्रीमती मेनका गांधी ने यह कहकर कि अगर दिल्ली के तीन लाख कुत्ते शेल्टर हाउस में चले जायेंगे तो भी आसपास से 3 लाख और आ जायेंगे, क्योंकि दिल्ली में 50000 अवैध चिकन सेंटर और मीट की दुकानें हैं। यह वही श्रीमती मेनका गांधी हैं जो आपातकाल के लिये सर्वाधिक जिम्मेवार माने जाने वाले स्वर्गीय संजय गांधी की धर्मपत्नी हैं और उस समय संघ और जन संघ के लोग श्रीमती मेनका गांधी के बारे में क्या-क्या किस्से जेल में सुनाते थे। अब उनकी याद वह नहीं करते। श्रीमती मेनका गांधी ने शेल्टर होम के नुस्खे को देश में बड़े पैमाने पर फैलाने का रास्ता खोल दिया है,क्योंकि समस्या और सीमा तो फैलती ही जायेगी। उनने दिल्ली से सटे गाजियाबाद से आवारा कुत्तों के और अधिक संख्या में याने लगभग 3 लाख आवारा कुत्ते अतिरिक्त दिल्ली में आने का अनुमान लगाया है फिर गाजियाबाद वाले कहेंगे कि अलीगढ़ से कुत्ते आ सकते है, इस प्रकार पूरे देश में कुत्ता शेल्टर होम बनें। अगर दिल्ली में 50000 अवैध चिकन सेंटर है तो उन्होंने बंद क्यों नहीं कराये ? वे तो कई बार केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं। वैसे अवैध चिकिन सेंटर सामान्यत: गरीब आबादियों के पास होते है, पर आवारा कुत्ते तो उन पाश कालोनियों या अफसरों, नेताओं की कालोनियों में भी घूम रहे हैं, जहां अवैध चिकिन सेंटर नहीं है। बल्कि वहां इन आवारा कुत्तों को ये तथाकथित पेट लवर ही खिला कर मजबूत कर रहे हैं और आम आदमी को खतरा पैदा कर रहे हैं। अगर सच कहा जाये तो ये पेट लवर्स कुत्तों के हमलों के लिये जिम्मेवार है।
हमारे देश में 19वीं सदी के मध्य तक यह परंपरा थी कि इन आवारा कुत्तों को नगर निगम जहर देकर मारता था और बाहर फेंक दिया जाता था। जब तक यह परंपरा थी तब तक आवारा कुत्तों की कोई समस्या नहीं थी। अब यह समस्या इन नकली संवेदनशील मित्रों ने खड़ी की है। यह अंतरराष्ट्रीय चोंचले है जो एक वर्ग विशेष के दिखावे के लिये किये जाते है, परंतु देश के लिए यह एक बड़ी समस्या हैं। यूएनओ व वैश्विक संस्थाओं या इन महल पशु प्रेमियों को इसराइल हमास युद्ध में जहां साठ हजार लोग मर चुके हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध में, जहां हजारों निर्दोष लोग व बच्चे मर चुके हैं उनकी चिंता नहीं है पर आवारा कुत्तों की चिंता है? मैं जानता हूं कि मैं जो लिख रहा हूं उससे एक विदेशी दिमाग और नकल वाले समूह की तीखी प्रतिक्रिया होगी और मेरे ऊपर अमानवीय होने का आरोप भी लगेगा, परंतु इससे में भयभीत नहीं हूं ।
1-मेरी यह राय है कि 19वीं सदी के मध्य तक जो परंपरा चल रही थी उसे पुन: स्थापित करना चाहिये। ताकि जिस समस्या से देश परेशान है, माननीय सुप्रीम कोर्ट का समय जाया हो रहा है, जनता का पैसा व्यर्थ जा रहा है, इसका समापन हो सके। दुनिया के कई देशों में, यह समस्या इसलिये नहीं है कि वे मांसाहार में, कुत्ते भी खाते हैं, वे पेट लवर्स नहीं हैं, बल्कि वे भक्षी हैं।
2- यह भी उचित होगा कि जो पेट लवर्स है उनको 10-10 आवारा कुत्तों का अभिभावक नियुक्त कर उन्हें दे दिया जाये, जिन्हें वे अपने घर में रखकर पाल सकें ताकि कुत्ते भी बच जायें और कुत्ता आतंकवाद भी समाप्त हो सके और पेट लवर्स अपना दायित्व भी पूरा कर सकें।
3- इन आवारा कुत्तों को बाघों, चीतों के अभयारण में छोड़ दिया जाये। ध्यान रखना चाहिये कि अब महाभारत काल नहीं है जब कुत्ता युधिष्ठिर के साथ अंत तक रहता है। भूख-प्यास सहता है क्योंकि हिमालय में तो केवल बर्फ ही था। अब तो कलयुग है यहां कब कौन सा कुत्ता अपनी भूख मिटाने को युधिष्ठिर को ही खाने लगेगा, कहना कठिन है?