ब्यूरो, लखनऊ। सिविल, व्यावसायिक प्रकृति के विवादों को आपराधिक स्वरूप देकर मुकदमा दर्ज कराए जाने के मामलों पर अब अंकुश लगने की उम्मीद है। डीजीपी राजीव कृष्ण ने ऐसे मामलों में सही विवेचना किए जाने व साक्ष्यों के आधार पर ही आरोपपत्र कोर्ट में दाखिल किए जाने का निर्देश दिया है।

कहा है कि इसका उल्लंघन करने वाले पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी। कानपुर के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल प्रवृत्ति के मामले में पुलिस द्वारा आपराधिक स्वरूप देकर गंभीर धाराओं में आरोपपत्र दाखिल किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर डीजीपी ने एक समिति का गठन किया था, जिसने ऐसे मामलों पर नियंत्रण के लिए प्रक्रिया निर्धारित की है। डीजीपी ने प्रक्रिया का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है।
सिविल प्रकृति के मामलों को आपराधिक स्वरूप देकर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराए जाने का चलन बढ़ने की शिकायतें थीं। ऐसे मामलों में विवेचकों द्वारा पर्याप्त साक्ष्य संकलित किए बगैर सरसरी तौर पर बिना कोई विवरण अंकित किए ही आरोपपत्र कोर्ट में प्रस्तुत किए जाने से पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठ रहे थे।ऐसे मामले जो प्रथमदृष्ट्या सिविल प्रकृति के लग रहे हों और उनमें ऐसी संभावना भी हो कि वे आपराधिक प्रकृति के भी हो सकते हैं, डीजीपी ने ऐसे प्रकरणों में प्रारंभिक जांच कराने का निर्देश दिया है।
यह भी कहा गया है कि ऐसे मामले जिनमें तहरीर में उल्लिखित तथ्यों से सात वर्ष से अधिक सजा का अपराध कारित हो रहा हो और विधिक रूप से प्रारंभिक जांच कराए जाने का विकल्प उपलब्ध न हो, तो एफआइआर दर्ज कर आरोपों का गहराई से परीक्षण कराया जाए।संकलित साक्ष्य से जिस धारा का अपराध बने, उसमें ही आरोपपत्र दाखिल किया जाए। आरोपपत्र के सभी कालम स्पष्ट रूप से भरे जाएं और यह भी स्पष्ट किया जाए कि किस आरोपित के विरुद्ध किस धारा के तहत साक्ष्य पाए गए हैं।