संजय श्रीवास्तव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मई-जून की तपीश हर कोई झेल नहीं पाता। इन दो महिनों में सरकारी विभाग के अफसरों को गर्मी कम, पसीने से तर होने पर भी ठंड़ का अहसास ज्यादा हो रहा है। सभी की चाहत है कि विभागीय मंत्री, विभागाध्यक्ष या ‘ऊपर’ से सेटिंग कर ऐसी जगह पोस्टिंग (नई तैनाती) मिल जाये, जहां की कुर्सी पर बैठकर काम कर ‘हम बनेंगे करोड़पति‘ का गेम पूरे मनोयोग से खेला जाये…। एक बार बड़ा जिला मिला तो कम से कम तीन साल के लिये सिर्फ नोटों की गर्मी का आनंद उठायेंगे। यही वजह है कि आजकल अफसर ‘डीएनडी’ और ‘हाई एप्रोच’ के दम पर सारे दांव खेल रहे हैं। ये नजारा सभी सरकारी विभागों में देखने को मिलेगा। होमगार्ड विभाग की बात करें तो यहां पर भी जबरदस्त तरीके से ट्रांसफर के नाम की फसल काटने की पूरी तैयारी चल रही है।

राजपत्रित संवर्ग के कुल 20 प्रतिशत पदों का ही ट्रांसफर हो सकता है। उस आधार पर कमांडेंट के 71 पदों के सापेक्ष लगभग 14 अधिकारियों का ट्रांसफर किया जाना तय है। सीधी बात करें तो शतरंज की चाल की तरह 14 कमांडेंटों के नाम की गोटियां हर दिन हटाई और बिछाई जा रही है। जिला कमांडेंटों की चाहत है कि उन्हें किसी सूरत पर ‘बड़का जिला’ में तैनाती मिल जाये…। कोई ‘डीएनएडी’ (डू नाट डिस्टर्ब )की राह पर चलने वाले अफसर को पकड़ रहा है तो कई ‘हाई एप्रोच’ का थाह ले रहे हैं कि कौन है वो, जिसके एक फोन से विभागीय मंत्री और विभागाध्यक्ष उनके ‘सपनों’ को हकीकत में बदल दें…। वैसे भी इस विभाग में थाह लेने वाले एक से बढ़कर एक नायाब प्रमोटी कमांडेंट हैं। द संडे व्यूज़ जब ‘डीएनडी’ और ‘हाई एप्रोच’ की गहराई में जाकर अफसरों को छेड़ा तो अधिसंख्य का यही जवाब रहा…गुरु तीसरी आंख को तो सब पता है…। बड़े जिले कितने में मिलते हैं और ‘ऊपर’ तक किस राह से सब कुछ जाता है…। बड़ा सवाल ये है कि आखिर ‘ऊपर’ वाला वो शख्स कौन है,जिसने पूरी बैटिंग सजा दी है और उसके मोहरे शासन से लेकर मुख्यालय पर बैठा एक अधिकारी है।
क्रमश :