नियोजित युद्ध और नव निर्माण का साम्राज्यवाद


रघु ठाकुर

नई दिल्ली। दुनिया में हथियारों का व्यापार निरंतर वृद्धि पर है। जिनेवा अकादमी की अध्ययन रपट के अनुसार अभी दुनिया में लगभग 25 घोषित-अघोषित, छोटे-बड़े युद्ध या संघर्ष चल रहे हैं। मध्य-पूर्व और अफ्रीका में 12 जगह युद्ध या संघर्ष जारी है। इराक, सीरिया और सूडान इनके मुख्य क्षेत्र हैं। एशिया में पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और म्यांमार में, यद्यपि युद्ध तो नहीं हैं, परंतु अंतर-संघर्ष युद्ध के जैसे हैं। पाकिस्तान में अफ गानिस्तान के तालिबानी अब इतनी संख्या में बढ़ चुके हैं कि वे एक प्रकार से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच युद्ध के पर्याय जैसा बन रहे हैं। चीन में चीनी और रोहिंग्या, म्यांमार में बौद्ध और रोहिंग्या के बीच, संघर्ष हथियारों से हो रहा है। यूरोप में, रूस और यूक्रेन युद्ध को अब लगभग 2 वर्ष होने को आ रहे हैं और युद्ध जारी है। यूरोप और अमेरिका के द्वारा हथियारों की आपूर्ति से यूक्रेन लड़ तो रहा है, परंतु जीतने की स्थिति में नहीं है।

यूरोप या अमेरिका लडऩे को हथियार और पैसा तो दे सकते हैं परंतु सैनिकों का अभाव पूरा नहीं कर सकते। हालांकि अब दुर्घटनाएं महत्वपूर्ण हुई है (1) अमेरिका ने क्यों को बचाने के लिये यूक्रेन को प्रतिबंधित हथियारों की इस्तेमाल की सहमति दी है, (2) नाटो ने भी अब सैनिक युद्ध में से भगत की संकेत दिये और यह दोनों ही मौके युद्ध के विस्तार के लिये हैं। इजराइल और हमास के बीच जारी युद्ध को भी लगभग 7-8 माह होने को हैं और समाप्त या शांति होने के बजाय, नये-नये युद्ध के केंद्र तैयार हो रहे हैं।हमास के समर्थन में, सीरिया ने कुछ हलचल शुरू की थी, परंतु वह कोई बड़ा रूप नहीं ले पाई। ईरान ने हमास के समर्थन में इसराइल पर मिसाइल हमला किया था, जिसे अमेरिकी सैटेलाइट ने पहचान कर गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही यानि इजरायल की सीमा में पहुंचने से पहले ही नष्ट कर गिरा दिया। बाद में इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों के पास हमला किया। परमाणु ठिकाने तो नष्ट नहीं हुये परंतु ईरान को खतरे का संकेत-बल दे गया। उसके बाद ईरान ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के अजरबेजान से आते हुए रास्ते में मृत्यु को लेकर भी पहले इजराइल पर संदेह की उंगलियां उठाई गई थीं, पर वह सही नहीं थीं, वरना युद्ध का एक नया दायरा खुल जाता। अमेरिका की नीति दो मुखी है एक तरफ वह नाटो संधि के अनुसार इजरायल की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और दूसरी तरफ इसराइल को समय-समय पर उपदेश भी देता रहता है। यद्यपि जो बाइडेन ने अभी तीन सूत्रीय नुसख़ा रखा है।

1. इजराइल युद्ध बंद करें

2. हमास इजरायली बंधकों को रिहा करें

3. गाजा पट्टी में हुए विनाश के पुनर्निर्माण का कार्य अमेरिका करेगा

इस प्रस्ताव से कुछ युद्ध बंदी की संभावनाएं बढ़ी है। बताया जाता है कि इस साल दुनिया में ढाई सौ (250) लाख करोड़ रुपए का हथियारों का व्यापार होगा। मतलब भारत जैसे विशाल देश के वार्षिक बजट का 6 गुना। अमेरिका हथियार निर्यातकों में दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है जो 42 फिसदी हथियारों का निर्यात करता है। रूस लगभग 11 फिसदी, फ्रांस भी लगभग 11के आसपास, चीन व जर्मनी प्रत्येक लगभग 5.50 फ ीसदी तक के हथियारों के निर्यातक देश हैं। अभी भारत ने भी कुछ हथियारों के निर्यात करने का सिलसिला शुरू किया है पर वह नगण्य जैसा है। भारत को हथियार निर्यातकों की मुख्य सूची में आने के लिये अभी लंबा समय लगेगा। यूरोप हथियारों का निर्यातक भी है और आयातक भी। यूरोप में पिछले तीस वर्षों में हथियारों की खरीद में लगभग तेरह फिसदी की वृद्धि हुई है। चीन और ताइवान के बीच जो संघर्ष है उसके चलते पिछले दो साल में अमेरिका ताइवान को 17 लाख करोड़ रुपए के हथियार बेच चुका है। ताइवान के लिए अस्तित्व बचाने का संकट है। चीन उसे अपना हिस्सा बता कर कब्जाना भी चाहता है। ऐसा ही संकट यूक्रेन के सामने है। वह अपने देश की आजादी के लिये लड़ रहा है। ऐसा ही अस्तित्व का संकट इजराइल के समक्ष है। अपनी जमीन की वापसी के नाम पर यही संकट फि लिस्तीन का भी है। दुनिया कितनी विचित्र ढंग से चलती है और कितने दोहरे चेहरे की है ! यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि स्वीडन-एक ऐसा देश है जो हथियारों का बड़ा निर्यातक है। वह हथियारों का निर्माता कम है परंतु वह निर्यातक बड़ा है।

जहां एक तरफ स्वीडन युद्ध से रक्षा के लिये या युद्ध के लिये हथियार निर्यात करता है, वहीं दूसरी तरफ वही स्वीडन दुनिया में शांति के नाम पर स्थापित नोबेल पुरस्कार भी देता है। यानि मौत और शांति दोनों का एकमुश्त व्यापार का माध्यम है-स्वीडन। वैसे यह भी कहा जाता है कि नोबेल पुरस्कार का अप्रत्यक्ष नियंत्रण अमेरिका की गुप्तचर एजेंसी सीआईए के हाथों में है। दुनिया में हर प्रकार के अपराध, युद्ध, फि रका-परस्ती की फैक्ट्रियों को नियंत्रित करने वाली सीआईए नोबेल पुरस्कार को भी नियंत्रित करती है। अभी तक युद्ध मुख्यता जमीन से लड़े जा रहे हैं आसमान का प्रयोग एक सहायक के रूप में तो होता है परंतु संचालन संचालित करने का केंद्र जमीन पर ही है ईरान की मिसाइलों को, अमेरिकी इजरायली मिशेल ने सरदार से पता कर अपनी एंटी मिसाइल से नष्ट कर दिया परंतु मिसाइल लोगों को छोडऩे या एंटी मिसाइल को छोडऩे वाले केंद्र को जमीन पर ही है पर अब विज्ञान का विकास नए खतरों का भी कारण बन रहा है। विज्ञान ने अंतरिक्ष के ग्रहों के द्वार खोल दिए हैं। शुरुआत तो इसकी अमेरिका, पेंटागन (अमेरिका प्रतिरक्षा विभाग) और नासा ने की थी। परंतु अब ऐसी जानकारियां मिली हैं कि चीन ने भी अंतरिक्ष में अपने सैन्य ठिकाने बनाये हैं तथा वहां से युद्ध की तैयारी कर रहा है। वही रूस भी अपने परमाणु ठिकाने बनाने की तैयारी कर रहा है। अगर यह हो गया तो रुस, अंतरिक्ष में घूम रहे सैटेलाइटों को नष्ट कर सकता है । उनके नष्ट होने का मतलब अमेरिका और दुनिया के संचार-तंत्र का नष्ट होना होगा।

बताया जाता है कि यूक्रेन से युद्ध में रूस ने इलेक्ट्रॉनिक जैनिम क्रूज का इस्तेमाल किया था। जिसको अंतरिक्ष के यंत्रों से नियंत्रित किया गया। इसलिये रूस अमेरिकी दबाव से बाहर है। ताइवान को लेकर भी अभी हाल में चीन के राष्ट्रपति ने भी बयान दिया है कि अगर कोई चीन की ओर देखेगा तो हम उसका सिर फोड़ देंगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके इस बयान का अर्थ चीन के स्पेस में बनाए गए हथियारों के केंद्र से है। अब इस अंतरिक्ष युद्ध की चुनौती के लिए अमेरिका भी सावधान होकर, अंतरिक्ष में नये युद्ध के लिए हथियारों के केंद्र विकसित कर रहा है। अंतरिक्ष के माध्यम से रूस और चीन के द्वारा उसके सैटेलाइट या उसके प्रभाव के देशों के लिए कोई खतरा न हो इस तैयारी में लग गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी अब युद्धों को नया स्वरूप दे रही है। साथ ही हथियारों के प्रयोग के लिए भी मानव विहीन हथियारों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। अंतरिक्ष और नए-नए ग्रह जहां विज्ञान और मानव पहुंच रहे हैं उन्हें हथियारों का केंद्र व नष्ट करने का काम भी परस्पर युद्ध की प्रतिस्पर्धा से शुरू हो गया है। अगर भविष्य में कोई अंतरिक्ष-केंद्रों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युद्ध होगा, तो क्या दुनिया बच सकेगी? यह बड़ा प्रश्न है। परमाणु हथियारों का युद्ध, मानव-विहीन मिसाइलों के द्वारा हो सकता है। परंतु, जहां मिसाइल का हमला होगा, वहां तो मानव ही होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित, मानव-विहीन संचालित मिसाइल क्या इस दुनिया को और मानवता को नष्ट करने का माध्यम बनेंगे ? यह विचारणीय है।

दुनिया के हथियारों के उत्पादक और निर्यातक देश अपनी संपन्नता और विलासिता के लिए हथियार निर्यात पर निर्भर हैं। हथियारों के निर्यात के लिए युद्ध और संघर्ष जरूरी है। इसलिये अब हथियार निर्यातक देश और कंपनियां योजनाबद्ध ढंग से उन स्थानों या मुद्दों को चयनित कर रही हैं, जहां अगर अभी युद्ध है-तो उसे और बढ़ाया जाए, जहां अभी युद्ध नहीं है वहां युद्ध कराया जाये। जहां बड़े युद्ध की संभावना न हो, वहां, ऐसे अंतर-संघर्ष शुरू कराए जाएं जो घोषित युद्ध न हो परंतु अघोषित युद्ध जैसे हों। युद्ध रहेंगे तो-हथियार रहेंगे। हथियार रहेंगे तो हथियार बनाने वाले देशों का वर्चस्व रहेगा। इसलिए युद्ध पैदा करना, शांति के तत्वों को नष्ट कर युद्ध की आग फैलाना आज की सभ्यता के विकास की लाचारी है। हथियारों के मालिक विश्व के अघोषित तानाशाह बनेंगे जो क्रमश: कमजोर देश की आजादी को हथियारों से नष्ट कर या नष्ट होने के बाद पुनर्निर्माण के नाम पर अपने नियंत्रण में सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से ले लेंगे। यह विश्व साम्राज्यवाद या वैश्विक उप निवेशवाद का एक नया रूप सामने आ रहा है। 18 वीं सदी में सीधे सैन्य शक्ति से कब्जा जमा कर गुलाम बनाना होता था फि र 20वीं सदी में, आर्थिक साम्राज्यवाद आया। इसका मुख्य हथियार विश्व व्यापार संगठन बना तथा उसके माध्यम से दुनिया को एक करने के नाम पर, बाजारों व उत्पाद केंद्रों पर कब्जा कर, देश की निर्वाचित सत्ताओं को, साहूकारी, गुलामी से गुलाम बनाया। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड इसी का एक हिस्सा है और अब चुकी विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से, कमजोर और गरीब देशों को लूटने की चरम सीमा पार हो चुकी है गरीबी, कर्ज और भोग विलास में फं सा गरीब देश, एक ऐसे गरीब व्यक्ति का रूप ले चुका है जहां बस हड्डियों का कंकाल तो है पर मांस ,रक्त कुछ भी नहीं बचा है। अत: यह एक नए साम्राज्यवाद का अवतरण हुआ है नियोजित युद्ध और पुनर्निर्माण का साम्राज्यवाद।

यूक्रेन, इजराइल, फिलिस्तीन, कालांतर में ताइवान आदि ऐसे ही युद्ध साम्राज्यवाद के शिकार होंगे। रूसी सैन्य खुफि या श्ग्रुय्य अब उन देशों में आगजनी व हिंसा की घटनायें प्रायोजित कर रही हैं, जो यूक्रेन के पक्ष में हैं। ब्रिटेन के लंदन के बाहरी इलाके मेें यूक्रेन को आपूर्ति करने वाली गोदाम में आगजनी की घटना के पीछे श्श्गू्य्र्य की भूमिका बताई जा रही है। पौलेंड, नार्वे, स्लोवाकिया ऐस्वेनिया में भी ऐसी ही घटनायें हुई हैं। याने युद्ध का दायरा फैल रहा है। रूस, चीन, उत्तरकोरिया भी एक धुरी बनी हैय और दूसरी तरफ अमेरिका-यूरोप और नाटो ये विश्व युद्ध के दो संभावित पक्ष बन रहे हैं। पर महत्वपूर्ण यह है कि क्या दुनिया के रंगीन व गरीब देश इस नये श्श्नियोजित युद्ध साम्राज्यवाद्य्य के खतरे को समझकर अपनी आजादी को, वास्तविक रूप में बचाने को तत्पर होंगे या फिर इस नयी गुलामी के शिकार बनेंगे। भले ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपनी अज्ञानतावश या षडयंत्रवश यह कहें कि महात्मा गांधी को दुनिया ने रिचर्ड एटेनवरो की फिल्म के बाद जाना, परंतु गांधीजी तो अपने जीवनकाल में ही 1909 में श्हिंद स्वराज्य के माध्यम से दुनिया को इस युद्ध-विलासी सभ्यता और हथियारों के प्रति, सावधान कर चुके थे। और इस खतरे को समझकर ही डॉ. लोहिया ने बालिग मताधिकार से निर्वाचित, विश्व संसद का सुझाव दिया था।


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