
आचार्य राम महेश मिश्र
लखनऊ। सबसे पहले हमने उन्हें 1984 में लखनऊ स्थित आवास विकास परिषद के मुख्यालय पर समीप से देखा था। लाल सुर्ख चेहरा। विश्वास से युक्त नम्र वाणी। अधिकारियों को कड़े आदेश देते समय भी पूरी भद्रता। अद्भुत व्यक्तित्व। याद है, वह गर्मी का समय था और उस समय वह सफेद कुर्ता और चूड़ीदार पाजामा पहने थे। श्री नारायण दत्त तिवारी उन दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

बाद में अनेक अवसर मिले उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को देखने के। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री आवास पर एक बार 31 दिसंबर की देर संध्या हम और देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति डॉ.एस.पी.मिश्र पहुंचे। अन्दर जब उन्हें बताया गया कि कुलपति जी आए हैं, तब उनने विधानसभा के विशेष सचिव को तब तक हम लोगों को अटेंड करने के लिए भेजा, जब तक मुख्यमंत्री जी उस कक्ष में न आ जाएं। यद्यपि वहां उसके पहले पावर कारपोरेशन के सीएमडी जैसे वरिष्ठजन विराजे थे। हमने महसूस किया, शिक्षाविद के नाते उन्होंने यह सम्मान कुलपति जी को दिया था।
हम और डॉक्टर मिश्र जी उनका सम्मान करने हेतु गुरुदेव का अंगवस्त्र और शांतिकुंज का प्रसाद लेकर पहुंचे थे। हम उन्हें वह भेंट करते, उसके पूर्व मिलन कक्ष के प्रवेश द्वार पर खड़े-खड़े उन्होंने अपने सहायक की ओर देखा और एक हाथ फैलाया। तत्काल एक बुके उनके हाथ में आया और वह पुष्प गुच्छ उन्होंने हमारे वाइस चांसलर को भेंट किया। उसके उपरान्त हमारा सम्मान उन्होंने ग्रहण किया। तत्पश्चात उन्होंने अन्य अधिकारियों से भेंट की। ऐसे थे श्रीयुत एन.डी.तिवारी जी।
एक बार मुख्य सचिव उत्तराखण्ड के सभागार में वह मुख्य आसन पर थे। प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा ने बताया कि नैनीताल अंचल के अमुक पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज ने अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रीय सेवायोजना में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने पूछा, वहां से कौन आए हैं ? प्रोफेसर पाण्डेय का नाम सुनकर उन्होंने जिज्ञासु होकर देखा, वह कहां बैठे हैं ? वह उनसे काफी दूरी पर राउंड टेबल पर बैठे थे, उनके ठीक पीछे हम बैठे थे। हमने देखा, सीएम ने हाथ बढ़ाया, हाथ में बुके आया और वह धीमी चाल से डॉक्टर पाण्डेय की ओर चल पड़े। हमने पाण्डेय जी के कंधे में हाथ लगाकर कहा- उठिए और तुरन्त मुख्यमंत्री जी के पास आप पहुंच जाइए। ज्ञातव्य हो, श्री तिवारी जी उन दिनों अस्वस्थ थे और उन्हें सहारा देकर कुर्सी से उठाया गया था। तब भी वह प्रोफेसर साहब की ओर स्वयं चल पड़े थे।
क्या हर तरह से सक्षम, विकास पुरुष कहे जाने वाले वरिष्ठ राजनेता, जो चार बार दो प्रान्तों में मुख्यमंत्री के अलावा भारत के वित्त मंत्री जैसे बड़े पद पर रह चुके हों, से ऐसी विनम्रता की उम्मीद आप आज कर सकते हैं ? …लेकिन जनता भी बड़ी महान होती है। ऐसे तिवारी जी को उनके क्षेत्र की जनता ने लोकसभा चुनाव में तब हराया, जब वह प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। बाद में वह दक्षिण भारत के एक प्रान्त के श्रीराज्यपाल बने। वहां उनके साथ एक कलंक भी चस्पा हुआ। एक पारिवारिक मामला पहले भी हो चुका था। वित्तीय कदाचार जैसी बात उनके बारे में कभी नहीं सुनी गई। यह महारोग बाद की राजनीतिक पीढ़ी में बढ़ता देखा गया।
हमें नई दिल्ली में आदरणीय श्री नारायण दत्त तिवारी जी की श्रद्धांजलि सभा में भाग लेने का अवसर मिला था। आज 100वीं जन्म जयंती पर उनकी प्राणवान जीवसत्ता को हमारे हार्दिक भाग्योदय नमन।