तार- तार हुई सदनों की मर्यादाएं . संसद में कांग्रेस और भाजपा के सांसदों में धक्का मुक्की .
विधानसभा में अभद्रता पर उतारू विधायक हुआ सत्र से निष्कासित
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। पिछले सप्ताह संसद और देश की सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की विधानसभा में जो कु छ भी घटा उससे संसदीय इतिहास मे एक और काला अध्याय जुड़ गया। संसद में सदन में प्रवेश को लेकर भाजपा और कांग्रेस सांसदों धक्कामुक्की हुई इसमें भाजपा के दो सांसद गंभीर रूप से घायल हुये तो एक महिला सांसद के साथ अभद्रता हुई। इस घटनाक्रम में सत्तापक्ष के निशाने पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी रहे। धक्का मुक्की और हांथापाई में जहां भाजपा के सांसद मुकेश राजपूत घायल हुये तो दूसरे सांसद प्रताप सारंगी को इतनी चोट लगी कि उन्हे टांके लगवाने पड़े। हालांकि इस हाथापाई और धक्का मुक्की में कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिानुर्जन खरगे भी चोटिल हुये। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में शीतकालीन सत्र के दौरान सपा सदस्यों के शोर-शराबे और हंगामें के कारण एक सदस्य अतुल प्रधान को उनके आचरण के चलते वहां के सुरक्षाकर्मियों से बलपूर्वक बाहर ही नहीं कराया गया बल्कि शेष सत्र के लिये उन्हें निष्कासित कर दिया गया।
हालांकि विधानसभा में इस तरह की घटना कोई नई नहीं थी। इससे पूर्व मायावती के शासन में 21 फ रवरी 2011 को निकाय चुनाव संबंधी संशोधन विधेयक लाये जाने पर सदन में धरना दे रहे सपा विधायक को सुरक्षाकर्मियों के जरिये बाहर किया गया था। पहले बात संसद की। विरोधी दलों पर हमला बोलने वाले राहुल गांधी ने जिस तरह संसद में भाजपा सांसदों के साथ बर्ताव किया उसे एक काले अध्याय के रूप में जाना जायेगा। एक ओर कांग्रेस के सदस्य संसद में जय भीम के नारे लगा कर प्रदर्शन कर रहे थे तो दूसरी ओर उसके नेता संविधान की धज्जियां उड़ाते अराजकता पर आमादा थे। राहुल गांधी को इतिहास उन्हें विपक्ष के ऐसे नेता के रूप में याद करेगा, जिन्होने मर्यादाओं और लोकतांत्रिक परम्पराओं को तार- तार किया। संसद में घटी उक्त घटना यह भी दर्शाती है कि भविष्य में सांसदों को राहुल गांधी से सतर्क रहने की जरूरत है। वैसे तो संसद में अब तक माइक तोडऩे पर्चे फ ाडऩे या शोर मचाने जैसे वाक्ये सामने आते थे लेकिन अब जिस तरह धक्का मुक्की होने लगी है उसने भारत की संसदीय प्रणाली पर सवालिया निशान भी खड़ा कर दिया है। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं था जब संसद और यूपी की विधानसभा में इस तरह का मंजर पेश आया हो। दोनों ही सदनों में हाथापाई, धकका मुक्की से लेकर खून-खराबे तक पहुंच चुकी है।
वर्ष 1998 में 13 जुलाई को एनडीए सरकार के कार्यकाल में उस समय कानून मंत्री रहे थंबई दुरई ने जब लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया तो राजद सांसद सुरेन्द्र प्रसाद यादव ने स्पीकर रहे जीएमसी बालयोगी से बिल की प्रतियां लेकर फ ाड़ दी थी। इसी तरह साल 2007 में मेरीटाइम यूनिवर्सिटी को कोलकाता से चेन्नई स्थानांतरित करने का बिल लोकसभा में पेश करने के दौरान यूपीए सरकार के सहयोगी दल रहे द्रमुक और वामदलों के सांसदों में मारपीट हुयी थी। उस समय मार्शल को बुलाकर सांसदों को बाहर किया गया था। साल 2008 में 5 मई को यूपीए सरकार में कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज द्वारा महिला आरक्षण विधेयक पेश करने के दौरान सपा सदस्यों ने बिल छीनने का प्रयास किया। धक्का मुक्की के दौरान ही सपा संासद अबु आजम ने कांग्रेस की रेणुका चौधरी को धक्का दे दिया।
इससे पूर्व 1989 में 15 मार्च को ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट के मामलें में 63 सांसदों को उनके असंसदीय आचरण के लिये साथ निलंबित किया गया था। 1988- 89 में ही कैग रिपोर्ट में रक्षा सौदों में प्रतिकूल टिप्पणी पर सरकार से इस्तीफे की मांग हुयी। सांसद सत्यगोपाल मिश्र ने स्पीकर के माइक्रोफ ोन को उखाड़ कर फेंक दिया था। इसी तरह साल 2017 में तेलांगाना विरोधी सांसदों ने माइक उखाड़े थे, शीशे तोड़े और काली मिर्च का स्प्रे किया। इस घटना के बाद 17 सांसदों को निलंबित किया गया था। और अब…