संजय पुरबिया
लखनऊ।
फिल्म ‘राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई’ की कहानी का हीरो राधे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट है। 10 साल में 23 ट्रांसफर और 97 एनकाउंटर वाला। सचिन वाजे की याद यहां आना स्वाभाविक है क्योंकि राधे को भी उसका निलंबन खत्म कर पुलिस फोर्स में लाया जाता है। मुंबई में फैल रहे नशीले पदार्थों का कारोबार खत्म करने। फिल्म ये पहले ही सीन में साफ कर देती है कि ये ड्रग्स मुंबई में दिल्ली से आ रही है और इसका सप्लायर ‘राणा’ है। सुशांत राजपूत का संदर्भ भी फिल्म दे ही देती है। पूरी फिल्म में साजिद खान के बनाए फिल्म के टाइटल ट्रैक का इंतजार ही बना रहता है और गाना बजता है आखिर में एंड क्रेडिट्स के साथ। और, जिस ‘सीटीमार’ गाने को लेकर सबसे ज्यादा हल्ला मचा वो गाना ठीक क्लाइमेक्स से पहले आकर फिल्म का जो भी थोड़ा बहुत मज़ा है उसे खराब कर देता है।
सलमान खान की फिल्मों का एक सेट पैटर्न बन चुका है। न सलमान खान इससे बाहर निकलना चाहते हैं और न उनकी कोटरी के निर्देशक उन्हें निकलने दे रहे हैं। उनका गुब्बारा लगातार फूल रहा है। सलीम खान का नाम भी ओपनिंग क्रेडिट्स में आता है। एक कोरियन फिल्म ‘द आउटलॉज’ की इस रीमेक का आइडिया अगर उनका है तो कम से कम पटकथा तो उन्होंने फिल्म की जरूर ही नहीं पढ़ी होगी। फिल्म को ‘वांटेड’ की सीक्वेल का फील देने की कोशिश बहुत की गई है लेकिन बात जमी नहीं। फिल्म की पटकथा बिल्कुल सपाट तरीके से चलती जाती है और जैसा कि अधिकतर कोरियाई फिल्मों में होता है ये हीरो के अलावा किसी दूसरे किरदार पर ध्यान ही नहीं देती।
हिंदी सिनेमा में निर्देशकों के आगे खुद को पूरी तरह समर्पित कर देने वाले कलाकार बहुत हुए हैं। सिनेमा की भाषा में इन्हें ‘डायरेक्टर्स एक्टर’ कहते हैं। सलमान खान ने निर्देशकों की एक नई प्रजाति तैयार की है, ‘एक्टर्स डायरेक्टर’। यानी जो हीरो कहे उन्हें बस यस सर कहना है। अमिताभ बच्चन की बतौर हीरो रिलीज हुई आखिरी फिल्में ऐसे ही बनती थीं। उन्हें 1999 में ‘सूर्यवंशम’, ‘कोहराम’ और ‘हिंदुस्तान की कसम’ के बाद अगले साल ‘मोहब्बतें’ मिल गई थी। यहां ऐसा कुछ हो जाए तो ही अच्छा है। साइकिल पर ‘प्रेम’ की स्टाइल में ‘राधे’ का पिछला पहिया एकदम से रोककर साइकिल 45 डिग्री पर खड़ा करना नॉल्ताल्जिया तो जगाता है लेकिन दर्शक उससे सीधे जुड़ नहीं पाता।
फिल्म में कहने को सितारों की पूरी बारात है। जैकी श्रॉफ, सुधांशु पांडे, गौतम नामदेव, दर्शन जरीवाला, सिद्धार्थ जाधव, अर्जुन कानूनगो, विश्वजीत प्रधान, प्रवेश राणा, शावर अली, इहाना ढिल्लन सब थोक में निपटा दिए हैं इसके निर्देशक प्रभुदेवा ने। किसी भी किरदार का कोई बैकग्राउंड नहीं। किसी का कहानी में होने का कोई स्पष्टीकरण नहीं। बस वह सर्कस की तरह रिंग में आते हैं। करतब दिखाते हैं और निकल जाते हैं। दिशा पाटनी फिल्म की हीरोइन हैं सो उनके लिए अलग से लाइन लिखना जरूरी है नहीं तो काम उनका भी फिल्म में कुछ खास है नहीं। वह धीरे धीरे सिनेमा का शोपीस बनती जा रही है। अपनी इंस्टाग्राम फोटो से कुछ अलग वह बड़े परदे पर भी नहीं कर पा रहीं। फिल्म में सलमान के अलावा अगर किसी ने कुछ किया है तो वह है रणदीप हुड्डा। सीधे मनमोहन देसाई की किसी फिल्म से निकले विलेन। चाकूबाजी भी वैसी। बाल भी वैसे और कॉस्ट्यूम भी डिट्टो वैसा ही।
सलमान खान की फिल्म सिर्फ सलमान खान की फिल्म होती है। उसमें बाकी किसी का ज्यादा कुछ जोर चलता नहीं है। फिल्म का गीत संगीत सब उनका ही सुझाया बनाया होता है। हिमेश रेशमिया के गाने में जैकलीन को मौका मिल गया, ये भी सलमान की ही बदौलत है। वह इस गाने में श्रीदेवी बनने की कोशिश भी पूरी करती हैं लेकिन ये जैकलीन के बस की बात है नहीं। फिल्म का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यही है कि इसे आप ढाई सौ रूपये में घर बैठे पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं। ईद पर पूरे परिवार के साथ जाते तो दो हजार का फटका लगना पक्का था। सलमान को ईद मुबारक कहिए कि उन्होंने अपनी पिछली तीन फिल्मों की तरह इस बार ईद पर अपने फैंस का ये नुकसान होने नहीं दिया। बात आखिर कमिटमेंट की जो ठहरी। और, सलमान ने एक बार कमिटमेंट कर दी तो फिर तो वह…!