माघ मेले का पहला स्नान पर्व मकर संक्रांति गुरुवार को है। इस दिन ग्रहों के राजा सूर्य दोपहर 2 बजकर 37 मिनट पर शनि की राशि मकर में प्रवेश करेंगे। इसी के साथ देवताओं का प्रभातकाल उत्तरायण शुरू हो जाएगा। संक्रांति पर स्नान दान का पुण्यकाल सुबह 7 बजकर 24 मिनट से शुरू हो जाएगा, जो सूर्यास्त तक रहेगा। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु संगम समेत गंगा-यमुना के विभिन्न घाटों पर आस्था की डुबकी लगाएंगे। साथ ही भगवान सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए जप, तप, श्राद्ध, अनुष्ठान करेंगे। इस अवसर पर घरों में खिचड़ी का पर्व श्रद्धा, उल्लास से मनाया जाएगा। पर्व के उल्लास में लोग परंपरागत रूप से पतंगबाजी का भी लुत्फ उठायेंगे। मकर संक्रांति का पर्व धार्मिक के साथ वैज्ञानिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
सूर्य के उत्तरायण होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
सूर्यदेव ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। सूर्य के उत्तरायण होने से दिन के समय में वृद्धि होने लगती है। प्रकृति का यह परिवर्तन स्वास्थ्य और वनस्पतियों के अनुकूल होता है। इसमें शीत को शांत करने की शक्ति होती है। इसलिए हमारे शरीर में जो रोग प्रतिरोधक क्षमता शीत से दबी रहती है, वह बढ़ने लगती है। सूर्य की तेज होती रोशनी से तन-मन में स्फूर्ति बढ़ जाती है।
गंगाजी का वाहन मकर, स्नान-दान फलदायी
शास्त्रों के अनुसार, गंगा का वाहन मकर है। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा स्नान अधिक फलदायी माना गया है। सूर्य के दक्षिणायन को देवताओं की रात और उत्तरायण को देवताओं का दिन माना गया है। सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, लेकिन मकर राशि में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है।
मकर संक्रांति पर स्नान-दान व पूजन विधान
ज्योतिषाचार्य के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजन-अर्चन करना चाहिए। गंगा घाट या घर में ही पूर्वाभिमुख होकर गायत्री मन्त्र जाप करना चाहिए। तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं और प्रसाद बांटे। पितरों का तर्पण देना चाहिए।
मकर राशि में संक्रांति का संचरण
दोपहर 2 बजकर 37 मिनट
स्नान-दान का पुण्यकाल
सुबह 7 बजकर 24 मिनट से सूर्यास्त तक